भारतीय गाँव के बदलते प्रतिमान" विषय पर द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का भव्य आयोजन

मेरठ।  चौधरी चरण सिंह विवि  के समाजशास्त्र विभाग में "भारतीय गाँव के बदलते प्रतिमान" विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का भव्य शुभारंभ हुआ। विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. संगीता शुक्ला ने दीप प्रज्वलित कर संगोष्ठी का उद्घाटन किया। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि पूर्व सांसद राजेंद्र अग्रवाल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक ओमपाल जी, समाजशास्त्र विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. एस. एस. शर्मा, वरिष्ठ प्राध्यापक प्रो. डी. के. रॉय, एवं विभागाध्यक्ष प्रो. आलोक कुमार सहित अनेक शिक्षाविद्, शोधार्थी और विद्यार्थी उपस्थित रहे।

गाँवों की बदलती संरचना पर विशेषज्ञों का विमर्श

संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि ओमपाल जी ने कहा कि "भारत की आत्मा गाँवों में बसती है, लेकिन बदलते सामाजिक और आर्थिक परिवेश में गाँवों की पारंपरिक संरचना में बड़ा बदलाव आ रहा है।" उन्होंने शहरीकरण और औद्योगीकरण के प्रभावों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इन बदलावों से ग्रामीण संस्कृति एवं पारंपरिक मूल्यों में परिवर्तन हो रहा है। विशिष्ट अतिथि राजेंद्र अग्रवाल ने ग्रामीण शिक्षा एवं तकनीकी प्रगति के प्रभावों पर चर्चा करते हुए कहा कि "तकनीकीकरण और सरकारी योजनाओं से गाँवों में नए अवसर पैदा हो रहे हैं, जिससे ग्रामीण जीवन स्तर में सकारात्मक परिवर्तन आ रहा है।समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो. आलोक कुमार ने संगोष्ठी की थीम पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ग्रामीण सामाजिक संरचना, जाति व्यवस्था, कृषि प्रणाली एवं रोजगार के अवसरों में व्यापक बदलाव हो रहे हैं, जो समाजशास्त्र के शोधार्थियों के लिए महत्वपूर्ण अध्ययन का विषय है।

गाँवों की आत्मनिर्भरता एवं महिला सशक्तिकरण पर जोर

कुलपति प्रो. संगीता शुक्ला ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि "भारतीय गाँवों की सामाजिक संरचना में हो रहे बदलावों को समझना समाजशास्त्रियों के लिए अत्यंत आवश्यक है।" उन्होंने शोधार्थियों को इस विषय पर गहन अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया और कहा कि "ग्रामीण भारत का विकास ही समग्र राष्ट्रीय विकास की कुंजी है। पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. एस. एस. शर्मा ने भारत के गाँवों की आत्मनिर्भरता पर चर्चा करते हुए कहा कि "स्मार्ट विलेज योजना एवं कृषि सुधारों से ग्रामीण समाज में सकारात्मक बदलाव आ रहे हैं।" उन्होंने जमींदारी प्रथा एवं किसान आंदोलनों के संदर्भ में गाँवों की बदलती सामाजिक संरचना पर प्रकाश डाला। वरिष्ठ प्राध्यापक प्रो. डी. के. रॉय ने कहा कि आधुनिकता के प्रभाव से गाँवों में शिक्षा, स्वास्थ्य, और महिलाओं की स्थिति में महत्वपूर्ण बदलाव आया है। उन्होंने कहा कि स्वयं सहायता समूहों और सरकारी योजनाओं के माध्यम से ग्रामीण महिलाएँ आत्मनिर्भर बन रही हैं।

शोधार्थियों एवं विशेषज्ञों ने रखे विचार

संगोष्ठी के प्रथम सत्र में शुभी खान ने ग्रामीण समाज में परिवर्तन, कृषि से औद्योगीकरण की ओर बढ़ते रुझान, शिक्षा एवं रोजगार के अवसर, तथा बढ़ते उपभोक्तावाद पर गहन चर्चा की। इस संगोष्ठी में देशभर से शोधकर्ता एवं विषय-विशेषज्ञ भाग ले रहे हैं। दूसरे दिन भी विभिन्न सत्रों में विशेषज्ञों के व्याख्यान और शोध पत्र प्रस्तुत किए जाएंगे। इस अवसर पर समाजशास्त्र विभाग के शिक्षक डॉ. वाई. पी. सिंह, डॉ. डी. एन. भट्ट, डॉ. नेहा गर्ग, डॉ. अरविंद सिरोही, डॉ. दीपेंद्र, डॉ. अजीत सिंह और शोधार्थी रोहित कुमार, आकाश राठी, अंशुल शर्मा, प्रभात मोरल, प्रणय तिवारी, गरिमा राठी आदि उपस्थित रहे।

No comments:

Post a Comment

Popular Posts