समान अवसर चाहिए
हाल में ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा कहा गया है कि लोगों को फ्रीबीज के माध्यम से मुख्यधारा में लाने के बजाय क्या हम परजीवियों का एक वर्ग तैयार नहीं कर रहे? सही मायने में यह टिप्पणी समाज के हर वर्ग के लिए एक सोचनीय प्रश्न का जवाब जानना चाहती है। विशेषकर इस वर्ग से जो देश के लगभग 50 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधत्व करती है महिला वर्ग। हर राजनीतिक पार्टी इस वर्ग की खुशहाली के लिए मुफ्त योजनाओं का सहारा लेकर चलना चाहती है।
हर वर्ष 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है ताकि उनके सम्मान व अधिकारों की बात की जा सके, लेकिन यकीन मानें इस तरह की मुफ्त रिवायतों ने महिलाओं की सही समस्याओं एवं मुद्दों को कहीं पीछे धकेल दिया है। भारत जैसे विकासशील देश में जहां हर दूसरा राज्य मुफ्त योजनाओं के कारण राजस्व घाटे का सामना कर रहा है। इसमें भी चिंतनीय बात यह है कि राज्य कर्ज का अधिकतर हिस्सा सैलरी, पैंशन और मुफ्त की सेवाएं देने में खर्च कर रहे हैं। कुछ योजनाएं तो ऐसी हैं जो सही मायने में आत्मनिर्भर नहीं, बल्कि विशेषकर महिला वर्ग को अप्रत्यक्ष तौर पर परावलंबन बना रही हैं।
समय रहते हर राजनीतिक पार्टी को समझना होगा कि देश के विकास के लिए निर्भर महिला वर्ग नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर महिलाओं की संख्या में वृद्धि करनी होगी। समाज में महिलाओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती आर्थिक तौर पर सक्षम न होना है। उसके पीछे मुख्य कारण शिक्षा का अभाव व अवसरों का कम होना है। हालांकि स्कूल, कॉलेजों में शैक्षिक माहौल दिया जा रहा है, लेकिन विशेषकर हाई स्किल एजुकेशन में महिलाओं का स्तर बहुत नीचे है।
हाल में ही विश्व बैंक की एक रिपोर्ट ‘एजुकेशन, सोशल नाम्र्स एंड मैरिज पैनल्टी’ के मुताबिक भारत में 13 से 14 प्रतिशत स्किल्ड महिलाएं शादी के बाद जॉब छोड़ देती हैं। जबकि गांव में तो महिलाओं के पास स्किल एजुकेशन के अवसर न के बराबर हैं। हमारे समाज के मूल्य अगर समान अवसर की परिस्थितियां बनाएं तो यकीन मानिए जमीनी स्तर पर मुफ्त की रेवडिय़ां महिला वर्ग को बांटने की नौबत ही नहीं आएगी। बस, इच्छाशक्ति की जरूरत है। मुफ्त बांटने से तो कुएं भी सूख जाते हैं, हालांकि वो रखरखाव न होने के कारण सूख भी रहे हैं। बस जागिए, बस सरकार ही नहीं.. हम सब को जागना होगा।
लेखिका स्वत्रंत पत्रकार
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