घटती महंगाई से बढ़ेगी आर्थिकी
- डा. जयंतीलाल भंडारी
हाल ही में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार भारत की खुदरा मुद्रास्फीति फरवरी 2025 में घटकर सात महीने के निचले स्तर 3.61 प्रतिशत पर आ गई, जबकि खाद्य मुद्रास्फीति लगभग दो वर्षों में पहली बार 4 प्रतिशत से नीचे आ गई है। यह महत्वपूर्ण है कि खुदरा मुद्राफीति में पिछले साल अक्टूबर के बाद से ही गिरावट आ रही है। अक्टूबर महीने में यह 10.87 फीसदी के स्तर पर थी। ऐसे में समग्र मुद्रास्फीति दर भी कुछ समय तक ऊंची बनी रही और भारतीय रिजर्व बैंक के लिए नीतिगत जटिलताओं का परिदृश्य निर्मित हुआ था। उल्लेखनीय है कि रिजर्व बैंक महंगाई और ब्याज दर में संतुलन बनाए रखने की नीति पर लगातार आगे बढ़ा और फिर उपयुक्त पाए जाने पर विगत 7 फरवरी को आरबीआई के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने रेपो रेट में 0.25 फीसदी की कटौती कर इसे 6.25 फीसदी किया है। अब महंगाई और घटने से भारतीय रिजर्व बैंक की आगामी अप्रैल 2025 बैठक में ब्याज दरों में अधिक कटौती की उम्मीदें मजबूत हो गई हैं। इतना ही नहीं, इस समय इस बात के भी संकेत उभरकर दिखाई दे रहे हैं कि अर्थव्यवस्था में मांग और खपत बढ़ाने के लिए वित्त मंत्रालय इसी वर्ष 2025 में लघु बचत योजनाओं की ब्याज दरों को घटा सकता है। बचत योजनाओं की ब्याज दरों में कटौती से लोग धन खर्च करने के लिए आगे बढ़ेंगे। इसमें कोई मत नहीं हैं कि ब्याज दरें अधिक होने से उपभोक्ता कर्ज लेने से पीछे हट रहे थे और कर्ज की अधिक लागत से उद्यमी भी विस्तार की योजनाओं के लिए तत्परता नहीं दिखा रहे थे।
ऐसे में नए फैसलों से लोगों की क्रयशक्ति और खपत बढऩे से विकास दर को गति दी जा सकेगी। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि लंबे समय तक ऊंचे स्तर पर रहने के बाद देश में खुदरा मुद्रास्फीति के काफी नीचे आने के पीछे एक प्रमुख कारण बेहतर कृषि उत्पादन भी है। हाल ही में जारी 2024-25 में प्रमुख फसलों के उत्पादन के दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक खरीफ में पिछले साल से 7.9 फीसदी अधिक खाद्यान्न उत्पादन होने का अनुमान है और रबी की खाद्यान्न उपज में भी 6 फीसदी बढ़ोतरी की संभावना है। इससे गेहूं, चावल और मक्के की फसल का उत्पादन रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच सकता है। साथ ही अन्य खाद्यान्नों तथा मोटे अनाज, तुअर और चना का उत्पादन भी रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच सकता है। इसी तरह फल और सब्जी उत्पादन में भी तेज वृद्धि होगी। फल और सब्जी उत्पादन के मद्देनजर भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। अनुमान के मुताबिक 2024-25 में बागवानी फसल उत्पादन 36.21 करोड़ टन रह सकता है, जो 2023-24 की तुलना में 2.07 फीसदी ज्यादा होगा। इतना ही नहीं, वर्ष 2024-25 की सकल घरेलू उत्पाद में (जीडीपी में) कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में 4.6 फीसदी वृद्धि हो सकती है। पिछले साल यह वृद्धि दर 2.7 फीसदी थी। यहां यह उल्लेखनीय है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की फरवरी 2025 की बुलेटिन और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) की रिसर्च रिपोर्ट 2025 में एकमत से कहा गया है कि अब देश में आर्थिक गतिविधियों में तेजी के जोरदार संकेत विकास दर को बढ़ाने वाले सकारात्मक संदेश हैं। सरकार के पूंजीगत खर्च बढऩे, ग्रामीण मांग के साथ-साथ शहरी मांग में सुधार तथा महंगाई में कमी से अर्थव्यवस्था को बल मिल रहा है। आरबीआई के द्वारा जारी बुलेटिन में यह कहा गया है कि विकास संकेतक मसलन वाहन की बिक्री, हवाई यातायात, इस्पात खपत आदि देश की गतिविधियों में वृद्धि का संकेत दे रहे हैं और इन गतिविधियों में आगे भी तेजी की संभावना है। कहा गया है कि विकास के चार इंजन कृषि. एमएसएमई, निवेश और निर्यात को बढ़ावा देने को लेकर एक अप्रैल से प्रभावी होने वाले वर्ष 2025-26 बजट में किए उपायों से भारतीय अर्थव्यवस्था की मध्यम अवधि की विकास संभावनाओं को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
कृषि क्षेत्र के मजबूत प्रदर्शन से ग्रामीण मांग को और बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। वित्त वर्ष 2025-26 के केंद्रीय बजट में घोषित आयकर राहत के बीच मुद्रास्फीति में गिरावट के साथ खर्च योग्य आय में वृद्धि को देखते हुए शहरी मांग में भी बड़े सुधार की उम्मीद है। वित्तमंत्री सीतारमण ने जिस तरह आयकर के नए टैक्स रिजीम की व्यवस्थाओं के तहत करदाताओं को अभूतपूर्व राहतों से लाभान्वित किया गया है, उससे खपत तेजी से बढ़ेगी। इसी तरह एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट में यह बात जोर देकर कही गई है कि डोनॉल्ड ट्रंप के अमेरिका के राष्ट्रपति बनने और उनके द्वारा पास्परिक ट्रेरिफ लगाने से निर्मित विपरीत वैश्विक आर्थिक हालात के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था की नई मजबूत आर्थिक संभावनाएं हैं। नि:संदेह देश में महंगाई दर घटने से विकास दर को गति मिल रही है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि जब इस समय दुनिया के कई देशों में महंगाई बेकाबू बनी हुई है, तब भारत में महंगाई घट रही है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रबंध निदेशक क्रिस्टलीना जॉर्जीवा ने स्वीकार किया है कि हम दुनिया में वर्ष 2024 तक महंगाई पर काबू पाने में कामयाब नहीं हुए हैं।
इसलिए अब हम दुनिया में बढ़ती महंगाई को रोकने के लिए हरसंभव नए प्रयास करेंगे। ऐसे में भारत के लिए खास बात यह भी है कि रिजर्व बैंक के मुताबिक 2025-26 में खुदरा मुद्रास्फीति औसतन 4.2 फीसदी रहेगी, जो चालू वित्त वर्ष 2024-25 में 4.8 फीसदी है। ऐसे में कृषि उत्पादन बढऩे से खाद्य महंगाई और ब्याज दर में स्वाभाविक रूप से कमी आएगी और कुल खपत भी बढ़ेगी। यद्यपि खाद्य कीमतों में तेज गिरावट और कम मुख्य मुद्रास्फीति के कारण नीतिगत दरों में कटौती की गुंजाइश बनती है, किन्तु घटती महंगाई और बढ़ते खाद्य उत्पादन को देखकर सरकार को कृषि क्षेत्र में लंबे समय से पसरी हुई चुनौतियों से नजर हटाने से बचना होगा। मौसम की अतिकारी घटनाओं तथा जलवायु परिवर्तन से निर्मित होने वाली समस्याओं पर लगातार ध्यान देना होगा। किसानों को मिलने वाली कीमत और उपभोक्ताओं द्वारा चुकाए जाने वाले मूल्य में भारी अंतर, भंडारण तथा गोदामों की कमी के कारण फसलों की बरबादी, खेत और मंडियों के बीच दूरी और खस्ताहाल सडक़ों जैसी रुकावटों को दूर करने पर निरंतर ध्यान देना होगा।
देश में कृषि आपूर्ति श्रृंखला तैयार करने के लिए निरंतर प्रयास करने होंगे। हम उम्मीद करें कि महंगाई के घटने, खाद्यान्न उत्पादन बढऩे, ब्याज दर में कमी और एक अप्रैल 2025 से प्रभावी होने वाले वर्ष 2025-26 के बजट के तहत मध्यम वर्ग के लिए किए गए टैक्स राहत के अभूतपूर्व उपायों में उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति के साथ, मांग और खपत में वृद्धि विकास दर को तेज रफ्तार देगी। इससे वर्ष 2025-26 में विकास दर भी 7 फीसदी की ऊंचाई पर दिखाई दे सकेगी।
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