वर्तमान परिवेश और मानसिक स्वास्थ्य
- डॉ. ओपी चौधरी
मानसिक स्वास्थ्य का संबंध मानव कल्याण से है और जो मानव संबंधों के सभी क्षेत्रों को प्रभावित करता है। सामान्य शब्दों में मानसिक स्वास्थ्य का मतलब उस स्वास्थ्य से है जिसका संबंध मन या मानस से होता है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति वह है जो स्वयं खुश रहे, अपने आस-पास,पड़ोस के लोगों के साथ शांति और आनंदपूर्वक रहे, अपने परिवार का पालन- पोषण, अपने मूल कर्तव्यों का निर्वहन पूरी निष्ठा और नैतिकता के साथ करते हुए समाज के लिए भी कुछ योगदान दे। वास्तव में यह एक ऐसी योग्यता है जिससे व्यक्ति को अपना स्वभाव सहज और सरल बनाने, अपनी अभियोग्यता का सजगता के साथ उपयोग, सामाजिक रूप से उचित व्यवहार करने तथा अपने स्वयं को प्रसन्नचित रखने में सहायता मिलती है। मानसिक रूपसे स्वस्थ व्यक्ति विभिन्न परिस्थितियों के साथ अनुकूल समायोजन स्थापित करने में सक्षम होता है। कुल मिलाकर मानसिक स्वास्थ्य व्यक्ति की संवेगात्मक, भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक स्थिति को दर्शाता है कि वह अपने जीवन में कठिनाइयों का सामना कैसे करता है, अपने संबंधों को कैसे संभालता है, अपने संवेगों को कैसे प्रबंधित करता है और अपने उद्देश्यों को कैसे प्राप्त करता है।
स्वस्थ शरीर-स्वस्थ मन एवं स्वस्थ मन-स्वस्थ शरीर एक दूसरे के पर्याय हैं।स्वस्थ शरीर है तो मन स्वस्थ रहेगा, लेकिन यदि मन बीमार है तो शरीर कभी भी स्वस्थ नहीं रह सकता है। मन की गति अत्यंत तीव्र है, मन चंचल और अदृश्य है; इससे जुड़ी समस्याएं कई बार दूसरों को नजर नहीं आती और इंसान अंदर ही अंदर इनसे घुटता रहता है।व्यक्ति समस्या को जानते हुए भी अनभिज्ञ बना रहता है-लोकभय के कारण।किन्तु इससे आगे बढ़िए,आप स्वयं अपने मन की समस्याओं को पहचानिए और इनका मनोवैज्ञानिक हल दूढ़ने में जुट जाइए।वर्तमान परिवेश में भौतिकवादी सोच, बढ़ता हुआ औद्योगिकीकरण,सामाजिक ढांचे में लगातार तीव्र गति से परिवर्तन,सांस्कृतिक बदलाव और निरंतर तेजी से बदलती जीवन शैली के कारण लोग मन के रोगी होते जा रहे हैं, जिससे लोगों के मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट आई है।विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक 87 प्रतिशत बीमारियां मनोवैज्ञानिक हैं,और आने वाले दशक में सम्पूर्ण जनसंख्या का एक तिहाई भाग किसी न किसी रूप में मानसिक तनाव, चिन्ता व अवसाद से प्रभावित होगा। हर जगह काफी संघर्ष व गलाकाट प्रतियोगिता है, जो मानसिक विकार उत्पन्न कर रही है। हमें स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के साथ सकारात्मक विचारों के साथ जीना चाहिए।हमें अपनी अनावश्यक जरूरतों को,प्रदर्शन की भावना को,अनावश्यक दिखावे को नजरंदाज करना सीखना होगा।
आज की परिस्थिति में मानसिक स्वास्थ्य को समझना जरूरी है और उसके प्रति सजग भी रहना चाहिए।हमें अपने काम में तन्मयता और पूरी निष्ठा के साथ संलग्न रहना चाहिए।हम जिस समाज में रह रहे हैं, उसके प्रति उत्तरदायी होना चाहिए।एक सर्वेक्षण के अनुसार हममें से हर छठा व्यक्ति मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी किसी न किसी समस्या का सामना कर रहा है।मादक द्रव्यों से जुड़ी समस्या भी है जो विकृति पैदा कर रही है।आंकड़े बताते हैं कि पूरे हिन्दुस्तान में लोग एक वर्ष के दौरान लगभग सवा सौ करोड़ लीटर शराब पी जाते हैं,जबकि हमारे पड़ोसी राज्य बिहार में नीतीशकुमार जी की सरकार ने शराब बंदी लागू की है।अपने देश में शराब की खपत में बढ़ोत्तरी निरंतर हो रही है, यह भी कई प्रकार की विकृतियों को जन्म देती है,मानसिक अस्वस्थता का एक बड़ा कारण है।
मानसिक स्वस्थ्य की समस्या 30 से 50 वर्ष की आयु व फिर 60 वर्ष से ऊपर के वय वालों में ज्यादा है। अपने जीवन काल में व्यक्ति की जिन्दगी में कई बार ऐसे दौर आते हैं जब वह मन से बीमार हो सकता है। ऐसे लोग शंकालु प्रवृत्ति,चिन्तित और असुरक्षा की भावना से ग्रस्त रहते हैं।आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति में कमी,जीवन के प्रति उत्साह में कमी,अपने आपको कोसते रहना तथा अपराधभाव से ग्रस्त रहना, संवेगात्मक रूप से अस्थिर रहना और जल्दी ही परेशान हो जाना, निराशा, कुंठा, तनाव, अंतर्द्वंद्व व अन्य मानसिक दबाओं से ग्रस्त रहना, सहनशीलता और धैर्य में कमी, निर्णय लेने की योग्यता में कमी, अपनी उपलब्धियों से संतुष्ट न रहना और अपने या दूसरे के कार्यों में सदैव पूर्णता की तलाश करना,दिवास्वप्नों में खोए रहना, मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति के लक्षण दिखाई पड़ते हैं।केवल 70 प्रतिशत लोगों को ही मानसिक चिकित्सीय सुविधा उपलब्ध है,क्योंकि अभी अपने देश में मानसिक चिकित्सकों की कमी है।इसके सामाजिक व सांस्कृतिक कारण भी हैं।अभी भी लोग मनोचिकित्सक/मनोवैज्ञानिक के पास जाने से कतराते हैं कि पागलपन का तमगा(स्टिग्मा) लग जाएगा, जबकि ऐसा नहीं है यह भी अन्य शारीरिक रोगों की तरह केवल एक मानसिक रोग है।
"सोशल स्टिग्मा" के करण लोग मनोचिकित्सक/मनोवैज्ञानिक के पास उनसे परामर्श लेने में घबड़ाते हैं।लेखक के पास आने वाले अधिकांश लोग अपना नाम उजागर न करने संबंधी निवेदन करते हैं।वैसे भी हमारे पेशे का नैतिक दायित्व है कि हम मानसिक रोगी के स्व का पूरा आदर करें और गोपनीयता बरकरार रखें। मानसिक स्वास्थ्य के प्रति उदासीनता और अज्ञानता तथा जागरूकता की कमी के कारण ज्यादातर मनोरोगी सही इलाज नहीं करवा पाते हैं, और जादू - टोना, ओझा-सोखा, झाड़ -फूंक,तांत्रिकों के चक्कर में फंस जाते हैं।किन्तु आज पूरा विश्व मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूक हो रहा है,और निसंकोच मनोचिकित्सक से इलाज करा रहा है। 'अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन' एवं 'वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ मेन्टल हेल्थ' नामक संगठन मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ाने की दिशा में सार्थक पहल कर रहा है।मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ाने के लिए हमें सभी वर्ग को साथ लेकर चलना होगा।रूढ़ियों व अज्ञानता के कारण अभी बहुत से मानसिक रोगी चिकित्सक के पास नहीं जाते हैं।हमें अपने आत्मसम्मान के साथ दूसरों के भी आत्मसम्मान का ध्यान रखना होगा।आज मानसिक स्वास्थ्य को भी एक प्रोडक्ट के रूप में हमारी आवश्यकता बता करके एक बड़ा बाजार बनाने का प्रयास किया जा रहा है, जो कि गलत है और पेशेगत नैतिक मूल्यों के खिलाफ है।मानव गरिमा को बचाते हुए हमें सभी के मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना है।मानसिक स्वास्थ्य की दिशा में सरकारी प्रयास के साथ एन. जी.ओ. की भूमिका भी महत्वपूर्ण है।आज पूरा विश्व मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूक हो रहा है और तनाव से दूर रहने का प्रयास कर रहा है, क्योंकि इससे कई शारीरिक समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।वैसे प्रायः मानसिक अस्वस्थता का कारण व्यक्ति स्वयं होता है एवं उसका निदान भी उसी के पास होता है, बस जीवन शैली,खान-पान, रहन-सहन में,संगति में थोड़ा परिवर्तन करना होता है।तनाव लेने से समस्या सुलझने के बजाय और बढ़ जाती है।कहावत है कि,"अगर आप तनावग्रस्त रहेंगे तो जल्दी ही भूतकाल की वस्तु बन जाएंगे"।यह एक गंभीर चेतावनी है कि तनावग्रस्तता से हमें जीवन से हाथ धोना पड़ सकता है।इसलिए उन्हें शांत मन से हल किया जाय और आनंदपूर्वक जीवन व्यतीत किया जाय।मानवजीवन को सुखमय एवं आनंदमय बनाने की चाभी एक तरह से व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य में निहित होती है।
वर्तमान परिवेश में मानसिक स्वास्थ्य का महत्व काफी अधिक है,क्योंकि इसमें व्यक्ति के सभी पक्षों -शारीरिक,मानसिक,भावनात्मक, संवेगात्मक, सामाजिक ,सांस्कृतिक,नैतिक आदि सभी के संतुलित और पूर्ण विकास पर ध्यान दिया जाता है।साथ ही उसकी योग्यताओं और प्रतिभाओं के विकास,जीवन लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायक,सामाजिक विकास और प्रगति में सहायक होती है।मानसिक स्वास्थ्य का संबंध व्यक्ति विशेष के मन और मस्तिष्क की उस स्वस्थ अवस्था से है,जिस तरह से उसके शारीरिक स्वास्थ्य का उसके शरीर के अंग प्रत्यंगों की स्वस्थता एवं उसके उचित रूप से क्रियाशील रहने से होता है।इस आशय से एक मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति का व्यक्तित्व और व्यवहार पूरी तरह से संतुलित और समायोजित रहना चाहिए।वैसे अपने आदर्श रूप में पूर्ण मानसिक स्वास्थ्य की प्राप्ति अत्यंत कठिन है,लेकिन एक अपेक्षित स्तर तक उसे बनाये रखने तक अपना उद्देश्य बनाकर चलना ठीक रहता है।
मानसिक स्वास्थ्य को उन्नत बनाये रखने हेतु भौतिकता की ओर से ध्यान हटाकर, योग,प्राणायाम,आध्यात्मिकता और भारतीय संस्कृति के प्राचीन धरोहरों की ओर उन्मुख होने की जरूरत है।हमारे ऋषियों - मुनियों ने मन -मष्तिष्क को स्वस्थ रखने के अनेक उपाय बताये हैं।हमें अधिकारों के साथ अपने कर्तव्यों का भी ध्यान रखना चाहिए,ताकि किसी के अधिकारों का हनन न हो।मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि हम अपने दायित्वों का निर्वहन बखूबी करें,अपना काम पूरा मन लगाकर तन्मयतापूर्वक आनंद से करें।दोस्तों,रिश्तेदारों और परिवार के साथ निरंतर संपर्क बनाए रखना, अपनी भावनाओं को स्वीकर करना,गलतियों को मानना,कृतज्ञ होना और अच्छे और स्वस्थ तरीके से अपनी भावनाओं को व्यक्त करना।नवीन कौशल सीखना,लक्ष्य निर्धारित करना,आत्मविश्वास और आत्मसम्मान बढ़ाने से मानसिक स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है।साथ ही अपने दैनिक जीवन में मनोरंजन और आनंद को शामिल करना अच्छी हॉबी रखना भी मानसिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है।मानसिक स्वास्थ्य को उन्नत बनाये रखने में घर -परिवार,विद्यालय,समाज और धार्मिक-सांस्कृतिक संगठनों के सम्मिलित प्रयास करने की आवश्यकता है।मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए हमेशा दूसरों से स्वस्थ संवाद बनाएं रखें,अच्छे मित्रतापूर्ण संबंध रखें।स्वयं भी स्वस्थ व प्रसन्न रहे और दूसरों को भी मानसिक रूप से स्वस्थ रहने में सहयोग दें।
(से.नि.प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, मनोविज्ञान विभाग
श्री अग्रसेन कन्या पीजी कॉलेज वाराणसी)
No comments:
Post a Comment