गरिमापूर्ण जीवन

 इलमा अज़ीम 
समाज की असली शक्ति उसकी न्यायप्रियता, समता और गरिमा में निहित होती है। जब कोई वर्ग शोषण का शिकार होता है, श्रमिकों को उनके परिश्रम का उचित मूल्य नहीं मिलता, जाति, धर्म, लिंग या आर्थिक स्थिति के आधार पर भेदभाव किया जाता है, तब सभ्यता का आधार हिलने लगता है। 


सामाजिक न्याय का अर्थ केवल कानूनी संरचनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी व्यवस्था है, जहां हर व्यक्ति को समान अवसर, गरिमा और अधिकार प्राप्त हों। यह केवल संविधान की किताबों में दर्ज कोई सिद्धांत नहीं, बल्कि एक जीवंत विचारधारा है, जो हर इंसान को बराबरी का हक दिलाने की वकालत करती है। आज, दुनिया तेजी से बदल रही है, लेकिन यह बदलाव तभी सार्थक होगा जब इसका लाभ हर व्यक्ति तक समान रूप से पहुंचे। श्रमिकों को उनका अधिकार मिले, पर्यावरणीय नीतियां गरीब और पिछड़े वर्गों को नुकसान पहुंचाने के बजाय उन्हें लाभ दें, और आर्थिक सुधार ऐसे हों, जो समाज के सभी तबकों को सशक्त करें। 
विकसित देशों में भी श्रमिकों का शोषण होता है, महिलाएं समान अवसरों से वंचित रहती हैं और धार्मिक व जातिगत भेदभाव अभी भी कायम है।


 डॉ. भीमराव अंबेडकर, महात्मा गांधी और अन्य समाज सुधारकों ने सामाजिक न्याय की मजबूत नींव रखी, जिसे हमें और अधिक सुदृढ़ करना है। सामाजिक न्याय को स्थापित करने के लिए सबसे प्रभावी साधन शिक्षा और जागरूकता हैं। जब हर नागरिक शिक्षित होगा, तभी वह अपने अधिकारों के प्रति सजग हो पाएगा। सरकार को ऐसी नीतियां लागू करनी चाहिए, जो गरीब और वंचित वर्गों को आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से सशक्त करे। न्यूनतम मजदूरी का पालन, श्रमिकों के हितों की रक्षा, महिलाओं के लिए समान कार्यस्थल नीति, बच्चों के लिए शिक्षा का अनिवार्य प्रावधान—ये सभी कदम सामाजिक न्याय की दिशा में मजबूत आधार तैयार कर सकते हैं।
 लेखिका एक स्त्रतंत्र पत्रकार 

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