सामाजिक समरसता का अनोखा स्वरूप है महाकुंभ

- जगतपाल सिंह
भारतीय संस्कृति में सामाजिक समरसता का एक अनोखा रूप कुंभ है जो करोड़ श्रद्धालुओं की श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है। इसमें मानव जीवन के कल्याण के लिए प्रेरणा लेकर श्रद्धालु उस पवित्र त्रिवेणी में स्नान करते हैं और बुराइयों का त्याग कर  अच्छाइयों पर चलने का संकल्प भी लेते हैं । यह वही संकल्प है जो सुर और असुरों के बीच समुद्र मंथन में जहर के साथ अमृत निकला था। उस अमृत को हम अच्छाई का प्रतीक मानकर पूरे मानव समाज के जनकल्याण के लिए अपने जीवन में उतार कर उस पर चलने का प्रण करते हैं।
 इस महाकुंभ में देश से ही नहीं अपितु पूरे विश्व से श्रद्धालु आकर बिना किसी भेदभाव के इस संगम की रेती में गंगा, जमुना और सरस्वती की धारा में स्नान करते हैं और मन से ईर्ष्या, द्वेष को भुलाने का प्रण करते हैं । कुंभ भारतीय संस्कृति में मेला ही नहीं है वह पूरे मानव समाज को जोड़ने के लिए एक सामाजिक व्यवस्था है। यह प्राचीन है इसका स्वरूप समय-समय पर बदलता रहा है, लेकिन इसका वास्तविक अर्थ मानव कल्याण ही है और यह सभी धर्मो का सार भी है। प्रयागराज इलाहाबाद में लगने वाला यह कुंभ एकता और अखंडता तथा समता और समरसता का ऐसा असाधारण संगम है, जहां विविधता में एकता का स्वरूप देखने को मिलता है हजारों वर्षों से चली आ रही इस परंपरा में कोई भेदभाव नहीं कोई, जातिवाद नहीं।


विश्व विख्यात भारतीय संस्कृति का वह अद्भुत नजारा और आध्यात्मिक स्वरूप महाकुंभ में देखने को मिल रहा है। साधु ,संत, अघोरी नागा बाबा महिला साधु और उनके द्वारा सिद्धि मंत्रो से किए जा रहे अद्भुत कार्य श्रद्धालुओं को प्रभावित कर रहे हैं ।अनेक देशों से आए श्रद्धालु सनातन धर्म से प्रभावित होकर सन्यासी हो रहे हैं और पवित्र गंगा में डुबकी लगाकर संगम की रेती पर माथे पर तिलक सिर पर  मोटी चोटी और धोती रामनवमी ओढ़ कर प्रभु श्री राम भगवान, शिव और कृष्ण को समझने का प्रयास करते हुए हर हर गंगे, हर हर गंगे करते नजर आ रहे हैं ।
महाकुंभ का परिदृश्य अद्भुत नजर आ रहा है जहां जगह-जगह भंडारे और प्रसाद वितरण हो रहा है जहां सभी श्रद्धालु एक साथ भोजन करते नजर आते हैं। यह कहना उचित होगा कि सामाजिक समरसता का अनुष्ठान ही प्रयागराज महाकुंभ कुंभ है। करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु पवित्र गंगा के किनारे अनुष्ठान करके अपने और जनकल्याण के लिए प्रार्थना करते हैं और पवित्र गंगा भी इन श्रद्धालुओं को बुराई से निकलकर अच्छाई पर चलने का रास्ता दिखाती है देश में  प्रयागराज उज्जैन नासिक और हरिद्वार में कुंभ का आयोजन होता है दक्षिण में गोदावरी कृष्णा नर्मदा और कावेरी नदी के तट पर पुष्करम होते हैं देश की पवित्र नदियों से हमारी आस्था, निष्ठा, श्रद्धा जुड़ी हुई है महाकुंभ मेकरोड़ों लोग बिना किसी भेदभाव के गंगा में डुबकी लगाकर अपनी मानवता के प्रति आस्था को मजबूत करते हैं और अच्छाई और प्रगति पथ पर चलने का प्रण लेते हैं यूं तो कुंभ के अनेक अर्थ लगाए जाते हैं लेकिन मेरा मानना है कि लोग पवित्र गंगा में स्नान करके शारीरिक और मानसिक बुराइयों को उस गंगा में स्नान करके त्यागते हैं और उसे अमृत रूपी जल को ग्रहण करके अमृत का स्वपान करते हैं। इसलिए हिंदू संस्कृति में गंगा के पवित्र जल की अपनी अलग ही गरिमा है।


यह सही है कि आस्थाओं का संगम कही देखने को मिलता है तो वह भारतीय संस्कृत में ही निहित है, जहां पत्थर को भगवान के रूप में पूजा जाता है। वह पूजनीय पत्थर जिसको भगवान कहा जाता है वही पूजने वाले का कल्याण करके उसके जीवन को सही पथपर चलने का मार्ग दिखाता है। अमरत्व का यह मेला श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिक शुद्धि, पापों का प्रायश्चित, पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति का रास्ता दिखाता है। भारतीय संस्कृति एक जीवन दर्शन है जो मनुष्य को जीवन जीने की तथा समाज में समन्वय स्थापित करने की कला सिखाती है और इसी का दिग्दर्शन जन सैलाब में देखा जा सकता है जो श्रद्धा ,निष्ठा और आस्था का प्रतीक है। 

No comments:

Post a Comment

Popular Posts