गांवों में विकास अनुकूलता का परिदृश्य

- डा. जयंतीलाल भंडारी
इन दिनों ग्रामीण भारत में परिवर्तन और किसानों के बदलते जीवन विषयों पर प्रकाशित हो रही विभिन्न अध्ययन रिपोर्टों में यह तथ्य रेखांकित हो रहा है कि भारत के ग्रामीण परिवेश में सकारात्मक परिवर्तन हो रहा है और इससे किसानों की आमदनी के साथ किसानों का जीवन स्तर बढ़ रहा है। हाल ही में 6 फरवरी को प्रकाशित मैकिन्से ग्लोबल फार्मर्स इनसाइट सर्वे 2024 में कहा गया है कि भारतीय किसान तेजी से डिजिटल पेमेंट को अपना रहे हैं। वर्ष 2024 में भारत में 40 फीसदी किसानों के द्वारा रुपयों का भुगतान डिजिटल माध्यम से किया गया है, वहीं वर्ष 2022 में केवल 11 फीसदी किसान ही डिजिटल भुगतान का इस्तेमाल कर रहे थे।
किसानों के बीच डिजिटल भुगतान का चलन बढऩे का कारण सस्ता डाटा और यूपीआई सेवा को माना गया है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2022 में देश में फसल बीमा का इस्तेमाल करने वाले महज 8 फीसदी किसान थे, वह वर्ष 2024 में बढक़र 37 फीसदी हो गए हैं। इसमें सबसे अधिक योगदान प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का है। यह भी पाया गया है कि 11 फीसदी किसान वर्ष 2024 में जैविक उत्पादों का इस्तेमाल कर रहे हैं, जबकि वर्ष 2022 में 2 प्रतिशत किसान ही जैविक उत्पादों का इस्तेमाल कर रहे थे। इस रिपोर्ट का यह निष्कर्ष भी महत्वपूर्ण है कि भारत के किसान औपचारिक ऋण की ओर बढ़ रहे हैं। वर्ष 2024 में 36 फीसदी किसानों ने बैंक से कर्ज लिया, जो वर्ष 2022 में केवल 9 फीसदी था। वहीं, 26 फीसदी किसानों ने सब्सिडी वाले सरकारी ऋण का उपयोग किया, जबकि वर्ष 2022 में यह आंकड़ा सिर्फ एक फीसदी था। रिपोर्ट ने यह भी बताया कि भारत के 53 फीसदी किसान फसल चक्रीकरण जैसे टिकाऊ खेती के तरीकों को अपनाने के लिए सरकारी सब्सिडी पर निर्भर हैं।


सरकार इस दिशा में कई तरह से सहायता प्रदान कर रही है, जैसे कि लागत में छूट, कार्बन क्रेडिट से आय बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन आदि। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि मार्च 2024 तक, भारत में 95.44 करोड़ इंटरनेट ग्राहक थे। इनमें से 39.83 करोड़ ग्रामीण इंटरनेट ग्राहक थे। इसी परिप्रेक्ष्य में हाल ही में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) रिसर्च के द्वारा जारी रिपोर्ट भी महत्वपूर्ण है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मुख्य रूप से गरीबों को सीधे, लाभान्वित करने वाले सरकारी सहायता कार्यक्रमों के सकारात्मक प्रभावों और विकास के कारण गरीबी में कमी आई है। गरीबी में कमी शहरी इलाकों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में अधिक तेजी से हुई है। जहां वर्ष 2011-12 में ग्रामीण गरीबी 25.7 प्रतिशत और शहरी गरीबी 13.7 प्रतिशत थी, वहीं वर्ष 2023-24 में ग्रामीण गरीबी घटकर 4.86 प्रतिशत और शहरी गरीबी घटकर 4.09 प्रतिशत पर आ गई। इस रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 14 सालों में आमदनी बढऩे से जहां शहरों में हर माह प्रतिव्यक्ति उपभोक्ता खर्च (एमपीसीई) 3.5 गुना हो गया, वहीं यह ग्रामीण इलाकों में करीब चार गुना हो गया है। वर्ष 2009-10 से 2023-24 के बीच शहरी इलाकों में एमपीसीई 1984 रुपए से बढक़र 6996 रुपए और ग्रामीण इलाकों में यह खर्च 1054 रुपए से बढक़र 4122 रुपए हो गया। ऐसे में शहरों की तुलना में गांवों की ग्रोथ ज्यादा है। नि:संदेह ग्रामीण एवं कृषि विकास के विभिन्न अभियानों के कारण देश में ग्रामीण गरीबी में तेजी से कमी आ रही है। यह पिछले वर्ष 2024 में घटकर पांच प्रतिशत से भी कम रह गई है। साथ ही ग्रामीणों की आमदनी और क्रयशक्ति बढ़ी है।


आज गांवों के लाखों घरों को पीने का साफ पानी मिल रहा है। लोगों को डेढ़ लाख आयुष्मान आरोग्य मंदिरों से बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिल रही हैं। आज डिजिटल तकनीक की मदद से बेहतरीन डॉक्टर और अस्पताल भी गांवों से कनेक्ट हो रहे हैं। पीएम किसान सम्मान निधि के जरिए देश को किसानों को तीन लाख करोड़ रुपए की आर्थिक मदद दी जा रही है। बीते 10 वर्षों में कृषि ऋण साढ़े तीन गुना बढ़ गए हैं। अब पशुपालकों और मछली पालकों को भी किसान क्रेडिट कार्ड दिए जा रहे हैं। बीते 10 वर्षों में फसलों पर दी जाने वाली सब्सिडी और फसल बीमे की राशि को बढ़ाया है। स्वामित्व योजना जैसे अभियान चलाए हैं, जिनके जरिए गांव के लोगों को संपत्ति के दस्तावेज दिए जा रहे हैं।

गांव के युवाओं को मुद्रा योजना, स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया जैसी योजनाओं के जरिए मदद की जा रही है। यह भी महत्वपूर्ण है कि डिजिटल इंडिया, शौचालय, स्वच्छ पेयजल और स्वच्छ ईंधन के लिए उज्ज्वला योजना, सभी घरों में बिजली के लिए सौभाग्य योजना जैसे अभियानों से भी ग्रामीण भारत में गरीबी में कमी आ रही है। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत 80 करोड़ से अधिक गरीब व कमजोर वर्ग के लोगों को मुफ्त खाद्यान्न कार्यक्रम ने ग्रामीण भारत में भी गरीबी को कम करने में अहम भूमिका निभाई है। निश्चित रूप से ग्रामीण भारत में सकारात्मक परिवर्तन, कृषि और ग्रामीण विकास तथा किसानों की आमदनी बढ़ाने के मद्देनजर केंद्रीय बजट 2025-26 एक और आशा किरण लेकर आया है। ग्रामीण विकास मंत्रालय के लिए इस बार केंद्रीय बजट 2025-26 में 188754 करोड़ का प्रावधान किया गया है। नए बजट में कृषि एवं किसान कल्याण का बजट आवंटन 1.71 लाख करोड़ रुपए किया गया है जो पिछले वर्ष के बजट की तुलना में 11 फीसदी अधिक है। केंद्रित कार्यक्रमों और निवेशों के माध्यम से ग्रामीण विकास को आगे बढ़ाने और समृद्धि बढ़ाने के उद्देश्य से जल जीवन मिशन, भारतनेट परियोजना जैसी प्रमुख पहलों की रूपरेखा तैयार की गई है। ये सभी नई बजट व्यवस्थाएं ग्रामीण विकास और किसानों के जीवन स्तर को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाते हुए दिखाई दे सकेंगी। लेकिन हमें अभी भी ग्रामीण भारत के विकास और किसानों की प्रगति के लिए कई बातों पर ध्यान देना होगा।

देश के 95 फीसदी किसान वर्तमान में भी आधुनिक खेती की तकनीक नहीं अपना रहे हैं। इसका कारण सेटअप में लगने वाला समय, ज्यादा लागत, निवेश पर रिटर्न को लेकर स्पष्टता की कमी जैसे कारक हैं। हमें इस तथ्य पर भी ध्यान देना होगा कि भारतीय किसान ऑनलाइन खरीददारी में दुनिया में बहुत पीछे हैं। देश में करीब 42 फीसदी किसानों का कहना है कि उन्हें ऑनलाइन विक्रेताओं से पर्याप्त ग्राहक सेवा और लचीला भुगतान का विकल्प नहीं मिलता है। देश में प्रत्येक किसान परिवार औसतन 74121 रुपए के कर्ज तले दबा हुआ है। 


ऐसे परिवेश को बदलने के अधिक प्रयास किए जाने होंगे। हम उम्मीद करें कि सरकार खास तौर से ग्रामीण गरीबी का सामना कर रहे परिवारों के युवाओं को कौशल प्रशिक्षण और डिजिटल कौशल से सुसज्जित करके रोजगार से सशक्तिकरण का रणनीतिक अभियान आगे बढ़ाएगी। साथ ही हम उम्मीद करें कि सरकार विकसित भारत 2047 के लिए आत्मनिर्भर ग्रामीण भारत के परिप्रेक्ष्य में ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं को और सशक्त बनाने की डगर पर आगे बढ़ेगी, इससे भी ग्रामीणों की आमदनी में तेजी से वृद्धि होगी तथा किसानों को मुस्कुराहट देने का एक और नया अध्याय लिखा जा सकेगा।

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