एनीमिया के दूसरे प्रकारों से कैसे अलग है एप्लास्टिक एनीमिया
मेरठ । एप्लास्टिक एनीमिया एक दुर्लभ रक्त रोग है। इसमें बोन मैरो असामान्य स्टेम कोशिकाएं बनाता है यह रोग अक्सर पैतृक आधार पर चलता है और आमतौर पर इसका पता बचपन या किशोरवय में लगता है। एनीमिया में शरीर लाल रक्त कोशिकाओं को पर्याप्त मात्रा में नहीं बना पाता, जबकि एप्लास्टिक एनीमिया केवल एनीमिया नहीं है बल्कि इसे पैंसीटोपेनिया कहा जाता है यह एक मेडिकल स्थिति है जिसमें सभी प्रकार की रक्त कोशिकाओं की संख्या में महत्वपूर्ण कमी हो जाती है। इसमें ल्यूकोपेनिया में सफेद रक्त कोशिकाओं की कमी होती है। एनीमिया में लाल रक्त कोशिकाएं कम हो जाती हैं और थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया में प्लेटलेट्स की कमी होती है। यह सभी समस्याएं बोनमैरो के पूरी तरह से काम बंद करने के कारण होती हैं।
केजीएमयू में डीएम क्लिनिकल हीमैटोलॉजी डॉ. एस.पी वर्मा का कहना है कि एप्लास्टिक एनीमिया व्यक्ति के जीवन को काफी प्रभावित करता है। इसमें थकान महसूस होती है चक्कर आते हैं और रोजमर्रा के काम सामान्य रूप से करने में व्यक्ति थकावट महसूस करता है। इससे मरीज को गंभीर रक्तस्राव या बार-बार संक्रमण हो सकते हैं जिससे मरीजों को बार-बार अस्पताल में भर्ती होने और खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। मेदांता हॉस्पिटल, लखनऊ में हीमैटोलॉजी विभाग के निदेशक डॉ. अंशुल गुप्ता कहते हैं एप्लास्टिक एनीमिया के मरीजों की उत्तेरजीविता दर 75-80 प्रतिशत है, लेकिन इस बीमारी का जल्दी से जल्दी इलाज कराना बहुत जरूरी है। कुछ गंभीर मामलों में पूरे बोनमैरो के ट्रांसप्लांट की जरूरत हो सकती है। इससे व्यक्ति के जीवित रहने की संभावना बढ़ सकती है। यह स्थिति व्यक्ति और उनके परिवारों के लिए चिंता का कारण हो सकती है, लेकिन यह एक ऐसी बीमारी है जिसका इलाज संभव है और इलाज का खर्च भी ज्यादा नहीं होता।
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