कांग्रेस-आप सत्ता संघर्ष के मायने

- योगेंद्र योगी
देशहित के नाम पर सत्ता संघर्ष में लगे इंडिया गठबंधन में अब रस्मी अदायगी मात्र बची है। दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव में इस गठबंधन की रही-सही कसर भी पूरी कर दी है। दिल्ली में कांग्रेस और इंडिया गठबंधन का हिस्सा आम आदमी पार्टी न सिर्फ एक-दूसरे के खिलाफ मुकाबला कर रही हैं, बल्कि सत्ता की इस दौड़ में दोनों दलों के नेता एक-दूसरे की छिछालेदार करने में भी पीछे नहीं हैं। दिल्ली के सीलमपुर में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने विधानसभा चुनाव के लिए पहली रैली के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की रणनीति को बीजेपी जैसा बताया। क्षेत्रीय स्तर पर कांग्रेस नेता अरविंद केजरीवाल के खिलाफ बोलते रहे हैं, लेकिन यह पहला मौका था जब राहुल गांधी ने सीधे तौर पर अरविंद केजरीवाल पर वार किए।
पिछले कई दिनों से दोनों ही राजनीतिक दल एक-दूसरे पर बीजेपी से मिले होने का आरोप लगा रहे हैं। कांग्रेस और आप आपस में ही जब विरोधी की भूमिका निभा रही हैं, ऐसे में भाजपा को दोनों के खिलाफ ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ रही है। भाजपा दोनों ही दलों की चुटकियां लेकर गठबंधन की खिल्ली उड़ाने में लगी है। राहुल गांधी ने कहा कि केजरीवाल जी आए और कहा कि दिल्ली साफ कर दूंगा, भ्रष्टाचार मिटा दूंगा, पेरिस बना दूंगा। अब हालात ऐसे हैं कि भयानक प्रदूषण है। लोग बीमार रहते हैं। लोग बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। जैसे मोदी जी झूठे वादे और प्रचार करते हैं, वैसे ही झूठे वादे केजरीवाल करते हैं। उन्होंने कहा कि इन दोनों में कोई फर्क नहीं है। उन्होंने कहा कि जब मैं जातिगत जनगणना की बात करता हूं, तो नरेंद्र मोदी जी और केजरीवाल जी के मुंह से एक शब्द नहीं निकलता।
ऐसा इसलिए क्योंकि दोनों चाहते हैं कि देश में पिछड़ों, दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों को भागीदारी नहीं मिले। राहुल गांधी के बयान पर आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने भी पलटवार किया और कहा कि राहुल गांधी ने उन्हें गाली दी। केजरीवाल ने यह भी कहा है कि उन्होंने राहुल गांधी पर एक लाइन बोली, लेकिन जवाब बीजेपी वालों की ओर से आ रहा है। करीब सात महीने पहले ही दोनों पार्टियां लोकसभा चुनाव एक ही गठबंधन में रहकर लड़ी थीं, हालांकि उसके बाद हरियाणा विधानसभा चुनाव दोनों अलग-अलग लड़े, लेकिन शीर्ष नेतृत्व के स्तर पर ऐसे जुबानी हमले पहले सुनाई नहीं पड़े थे। केजरीवाल ने कहा कि क्या बात है…मैंने राहुल गांधी जी पर एक ही लाइन बोली और जवाब बीजेपी वालों से आ रहा है। बीजेपी को देखिए कितनी तकलीफ हो रही है।


गौरतलब है कि कांग्रेस की देश से सत्ता समटेने में जो भूमिका भाजपा ने निभाई है, उसमें आप पार्टी का योगदान भी कम नहीं है। हाल ही में हुए कुछ राज्यों के विधानसभा और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन के बाद आप को एहसास हो गया कि किसी भी तरह का गठबंधन करने से उसे नुकसान ही होगा। दिल्ली की राजनीति में एक मजबूत ताकत रही कांग्रेस पार्टी पिछले दो विधानसभा चुनावों में अपना खाता तक नहीं खोल पाई। वर्ष 2013 में नवगठित आम आदमी पार्टी की सरकार बनने से पहले कांग्रेस ने लगातार पंद्रह साल दिल्ली पर राज किया। कांग्रेस भरसक कोशिश कर रही है कि किसी भी तरह सत्ता वापस मिल जाए, हालांकि आप और भाजपा की दमदार मौजूदगी में इसकी संभावना कम नजर आती है।
कांग्रेस दिल्ली में अपने शीर्ष पर थी, तब उसके पास 40 फीसदी तक का वोट शेयर था। लेकिन 2020 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सिर्फ 4.26 प्रतिशत ही वोट हासिल कर सकी। इससे पहले साल 2015 में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 9.7 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। कांग्रेस 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। कांग्रेस के भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन से वजूद में आई आम आदमी पार्टी कांग्रेस की राजनीतिक ताकत खत्म कर सत्ता तक पहुंची है। आम आदमी पार्टी की फ्री बिजली, फ्री पानी, शिक्षा में सुधार और स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर करने की योजनाओं ने गरीब और मध्यमवर्ग के मतदाताओं को आकर्षित किया।
इस वोटर वर्ग के छिटकने से कांग्रेस दिल्ली की राजनीति में और भी अलग-थलग पड़ गई। भाजपा भी इस वोट बैंक में सेंध लगाने की भरसक कोशिश में लगी हुई है। इसके बावजूद कांग्रेस और भाजपा को आप के खिलाफ विधानसभा चुनावों में सफलता नहीं मिल सकी। दरअसल सत्ता की जो लड़ाई कांग्रेस दिल्ली में भाजपा से लड़ रही है, वही दूसरे राज्यों में दूसरे दलों से लड़ती रही है। यही वजह रही कि इंडिया गठबंधन तिनके की तरह बिखरता रहा है। लोकसभा चुनाव और बाद में हुए राज्यों के चुनावों में कांग्रेस को जो सफलता मिली भी तो गठबंधन के घटक दलों को उसकी कीमत चुकानी पड़ी। ऐसे में घटक दल भी कांग्रेस को फूटी आंख नहीं सुहा रहे हैं।
इंडिया गठबंधन के दलों ने कांग्रेस से चुनावी गठबंधन के प्रयास किए, किन्तु एकता की रस्सी सिरे नहीं चढ़ पाई। इंडिया गठबंधन अस्तित्व में आने के बाद से अस्तित्व बचाने की लड़ाई से जूझ रहा है। दिल्ली विधानसभा चुनावों में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस और उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी ने आप को समर्थन दिया है। यह कांग्रेस को रास नहीं आ रहा है कि गठबंधन के दल ही उसके खिलाफ हो जाएं। इंडिया गठबंधन के तहत एक साथ लोकसभा चुनाव लडऩे वाली आम आदमी पार्टी और कांग्रेस पार्टी अब अलग-अलग चुनाव लड़ रही हैं और एक-दूसरे पर आक्रामक हैं।
दिल्ली में चुनाव अभियान के तेज होते ही कांग्रेस पार्टी अचानक आम आदमी पार्टी पर हमलावर हुई है। पार्टी के जमीनी नेताओं से लेकर बड़े नेता तक, सीधे आम आदमी पार्टी पर निशाना साध रहे हैं। वहीं, दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस दिल्ली में बीजेपी के इशारे पर काम कर रही है। इससे पहले भी कांग्रेस को चुनावों के दौरान इंडिया गठबंधन के घटक दलों के साथ इसी तरह के आरोप-प्रत्यारोपों का सामना करना पड़ा है। उस दौरान भी भाजपा इस गठबंधन पर हमलावर रही है। इतना ही नहीं भाजपा के खिलाफ कई मुद्दों पर गठबंधन के घटक दलों ने कांग्रेस से दूरी बनाए रखी।
इनमें उद्योगपति अडानी का मामला प्रमुख है। कांग्रेस ने भरसक कोशिश की कि इस मुद्दे पर विपक्षी दल उसका समर्थन करें। विपक्षी दलों को अंदाजा था कि यदि इस तरह के किसी भी मुद्दे पर कांग्रेस को समर्थन दिया तो निश्चित तौर पर कांग्रेस को इसका राजनीतिक फायदा होगा, जोकि उनके लिए नुकसानदेह साबित होगा। इसके अलावा कोई भी दल अडानी के भारी-भरकम निवेश से वंचित नहीं रहना चाहता। गठबंधन के घटक यह कदापि नहीं चाहते कि कांग्रेस मजबूत हो। दरअसल ऐसी सूरत में नुकसान घटक दलों का ही होगा। अभी तक उनके सामने सिर्फ भाजपा से अपने राज्यों की सत्ता बचाने की चुनौती है, कांग्रेस यदि मजबूत होती है, तब उससे भी मुकाबला करना पड़ेगा।
कांग्रेस की एक मुश्किल यह भी है कि इंडिया गठबंधन के घटक दलों की तरह वह भाजपा का मुकाबला करने के लिए पूरी तरह हिन्दुत्व विरोधी नहीं हो सकती। कांग्रेस दबे-छिपे तरीके से ऐसे मुद्दों पर भाजपा पर प्रहार करती रही है। इसके विपरीत घटक दल भाजपा की खुलकर खिलाफत करते रहे हैं। घटक दलों का सत्ता का दायरा अपनी पार्टी के संगठन वाले राज्यों तक सिमटा हुआ है, जबकि कांग्रेस सांगठनिक तौर पर भी राष्ट्रीय स्तर की पार्टी है। ऐसे में कांग्रेस कोई भी ऐसा दाव नहीं खेलना चाहती, जिससे राष्ट्रीय स्तर पर उसका नुकसान हो और बहुसंख्यक हिंदू वोट बैंक कांग्रेस विरोधी हो जाए।


यही कारण है कि कांग्रेस हिदुत्व पर हार्डलाइन लेने से बचती रही है। इसमें कांग्रेस का अल्पसंख्यक वोट आड़े आता है, जिसे वह साधे रखना चाहती है। इसके विपरीत घटक दलों की ऐसी कोई मजबूरी नहीं है। इस लिहाज से दिल्ली विधानसभा चुनाव इंडिया गठबंधन की एकता की आखिरी निशानी साबित हो सकते हैं।


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