दिसम्बर में पूछूंगा कि क्या हाल है...
- कृष्ण कुमार निर्माण
बहरहाल शुक्रिया कहने का ही मन कर रहा है क्योंकि बकौल हरिवंश राय बच्चन कि-
जो बीत गई सो बात गई। बड़ी प्यारी लंबी कविता है यह उनकी। क्योंकि एक और वर्ष बीत गया। बहुत सारी यादें छोड़ गया। ठीक उसी तरह जैसे कि वो एक फिल्मी गीत है कि-
आदमी मुसाफिर है, आता है, जाता है, आते-जाते रस्ते में यादें छोड़ जाता है।
इसी संदर्भ में जिन लोगों को अक्सर अहम रहता है हर बात का, उनके लिए किसी शायर का एक शेर कुछ यों है कि-
कौन कहता है कि वक्त कभी नहीं मरता, हमने देखा है वर्षों को दिसंबर में मरते हुए।
निश्चित रूप से बात यही सच है कि--
वक्त की हर शै गुलाम, कौन जाने किस घड़ी वक्त का बदले मिजाज।
इसलिए जनाब अपना मिजाज हमेशा सरल,सहज रखिए ताकि वक्त आने पर पछताना ना पड़े। जो समय निरंतर बीत रहा है, हकीकत में वो मर ही रहा है क्योंकि जो लौटकर नहीं आता, वही तो मृत कहलाता है।
अतः मित्रों दो हजार चौबीस भी अपनी यात्रा पूरी करके हमसे रुखसत हो गया। बिना किसी माफी के साथ क्योंकि वक्त है कि जो माफी माँगने का अवसर भी नहीं देता है और खुद तो कभी माफी मांगता ही नहीं, यह वक्त की फितरत है। और फिर से खत्म होने के लिए नया साल जिसे हम कहते हैं, आगमन के लिए बिल्कुल दहलीज पर खड़ा है कि जैसे अभी प्रवेश करेगा। निसंदेह शुभकामनाएं देना कतई बुरा नहीं है, दुआएँ होती ही देने के लिए हैं क्योंकि किसी शायर ने तो यहाँ तक कह दिया कि--
जो काम दवा से नहीं होता,वह काम दुआ से होता है।
यानि कि दुआओं में बहुत असर होता है लेकिन कब? तब होता है, जब दुआ देने वाला खुद साफ, सच्चे मन वाला, निस्वार्थ भाव वाला सरल, सहज, शांत, स्थिर मन वाला व्यक्ति तो हो.....। भाव यही है कहने का कि यह एक परंपरा बनी हुई कि जैसे ही एक जनवरी आती है, तो हम सब एक दूसरे को बधाई देते हैं, देनी भी चाहिए लेकिन होता यह है कि फिर पूरे वर्ष हम सबका वही व्यवहार रहता है, जो ठीक-सा नहीं होता।
मतलब साफ यह हुआ कि जो बधाई हम देते हैं,सम्भवतः वह लबों से दी जाती है और दिल उसमें शामिल नहीं होता जबकि दिल शामिल होना चाहिए ताकि वर्ष भर वैसे ही कर्म भी हों, सोच भी हो, विचार भी हों। ध्यान रहे यह दौर एआई का है। तभी तो कहा है कि-
है अँधेरी रात पर दिया जलाना कब मना है?
यानि कि...समय तो आता-जाता रहेगा और यकीन मानिए समय कभी पुराना नहीं होता क्योंकि समय नित नया होता है और निरंतर चलते रहना, इसकी फितरत है, जैसा कि भगवान कृष्ण ने गीता में भी कहा है। यह सही है कि हम समय को कैद नहीं कर सकते, समय को रोक नहीं सकते मगर खुद की तो बदल सकते हैं, खुद को तो रोक सकते हैं और खुद को बदल सकते हैं बेशक समय की बदलना हमारे हाथ नहीं है?कहने का भाव सिर्फ इतना है कि--
बेशक होई सोई जो राम रची राखा।
पर हर हाल में खुश रहना किसने रोका है? बात सिर्फ इतनी है कि जो बात हमारी दुआओं में हो,वह बात हमारे कर्म में भी हो ताकि यह न कहना पड़े कि--
ए जाते हुए लम्हों,जरा ठहरो...जरा ठहरो।
क्योंकि एक भी लम्हा रुकेगा नहीं पल भर के लिए भी...बस यह हम पर ही निर्भर है कि हमें हर लम्हें का आनंद लेना है, हर लम्हें को स्वर्णिम बनाना है, यादगार बनाना है ताकि जब भी समय रुखसत हो, तो वह न केवल हँसते हुए जाए बल्कि हम भी उसे हँसते हुए विदा करें और यह वर्ष बाद नहीं होता बल्कि हर दिन होता है, हर पल होता है, हर लम्हा होता। क्योंकि वो गाना तो याद होगा ही कि--
जो सफर प्यार से कट जाए, वो प्यारा है सफर, नहीं तो गर्दिशों के दौर का मारा है सफर।
तो क्यों इसे गर्दिशों का दौर बनाएं, इसे प्यार का सफर बनाएं, यह निसंदेह हमारे हाथ ही है क्योंकि बाबा हरदेव सिंह जी महाराज ने कहा है कि--
युग सुंदर, सदियां सुंदर गर मानव जीवन हो सुंदर। ताकि फिर अमीर क़ज़लबाश के शेर को ना दोहराना पड़े कि---यकुम जनवरी है नया साल है।
दिसंबर में पूछुंगा क्या हाल है।
बहरहाल जाने वाले वर्ष का शुक्रिया फिर से और नवागत का अभिनन्दन, इसी भावना के साथ कि-
हम सुधरे तो युग सुधरे। आमीन, मेरा पैगाम मुहब्बत, जहाँ तक पहुँचे।
(लेखक,कवि और शिक्षाविद)
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