खैर, छोड़िए इस बात को....
- कृष्ण कुमार निर्माण
बीमार होना कभी भी अच्छा नहीं होता लेकिन शरीर है तो निश्चित रूप से इस पर हर समय का प्रभाव पड़ेगा,सो कोई भी आदमी हो,बीमार तो पड़ ही जाता है।सो पिछले दिनों ईश्वर की कृपा से मुझे भी यह अवसर मिल गया।अब खींसे मत निपोरिएगा क्योंकि आप कहेंगे कि ईश्वर की कृपा से कैसे?तो जनाब दुनिया का ऐसा कोई भी काम नहीं जो बिना ईश्वर की कृपा के संभव हो,जैसे कि संतजन बताते हैं कि ईश्वर की कृपा के बिना तो पत्ता भी नहीं हिलता,तो ईश्वर की कृपा के बिना मैं बीमार कैसे हो सकता था?खैर,छोड़िए इन बातों को,बात यह है कि मैं भी बीमार हो गया।जैसे कि मेरी आदत है कि अक्सर में छोटी-मोटी बीमारी को सीरियस नहीं लेता पर अबकी बार बीमारी ने मुझे जाने क्यों सीरियस ले लिया और मुई ऐसे चिपक गई जैसे दिले-जानाँ अपने प्रेमी को चिपक जाती है?वैसे जिंदगी में ऐसी कोई प्रेमिका तो नसीब नहीं हुई पर बीमारी चिपक गई।खैर,छोड़िए इस बात को।हुआ यों कि मैंने अनसिरियसली लेते हुए किसी केमिस्ट शॉप से ही दवाई ले ली मगर ये क्या मुई बीमारी तो और ज्यादा लवली तरीके से चिपक गई।
खैर,छोड़िए इस बात को भी,फिर मैं एक बीमारी विशेषज्ञ चिकित्सक महोदय के पास गया।सबसे पहले तो पूरे चार सौ मुझसे वहीं झाड़ लिए गए,जहाँ पर्ची कटी,उस वक्त ऐसा लग रहा था कि पर्ची नहीं,किसी ने सरेआम मेरी जेब ही काट ली और उस पर हुआ ये कि विषय विशेषज्ञ महोदय बिना कोई जाँच-पड़ताल किए,सिर्फ मुझसे पूछ-पाछकर हजार की दवाई लिख दी,मरता क्या ना करता,दवाई ले आया क्योंकि बीमारी रूपी प्रेमिका जो चिपकी थी,उसे भी हटाना था?पर आप यकीन मानिए उन दवाइयों से बीमारी उतरने की बजाय ज्यादा ही चिपक गई थी।पर मुझे यह जरूर लगा कि आखिर ये जनाब डॉक्टर साहब पढ़ाई किस चीज की करते हैं,जब तीमारदार को ही सब कुछ पूछकर दवा देनी है तो कम से कम अपनी फीस तो कम कर दें?आखिर एक गरीब,मजदूर कैसे फीस दे पाएगा?नहीं,जनाब उनके लिए आयुष्मान कार्ड है,अरे बाबू,उनकी जो हालत है बस पूछिए मत।
खैर,छोड़िए इस बात को क्योंकि ये पब्लिक है सब जानती है।मुझे आखिरकार
दूसरे डॉक्टर के पास जाना पड़ा,वहाँ भी वही हुआ पर गनीमत यह रही कि वहाँ फीस कम लगी पर दवाइयां उन्होंने भी इतनी बांध दी,इतनी तो शायद बीमारी भी नहीं थी,क्या करता झोला भर लाया और एक तरफ दवाइयां देखूँ,एक तरफ खुद को देखूँ,वैसे इस देखने-दिखाने के चक्कर में यह अच्छा हुआ कि इस बीमारी के दौरान खुद को देखने का मौका जरूर मिला,दूसरों को देखने का अवसर तो हम हाथ से कहाँ जाने देते हैं? इन भारी-भरकम झोला भर दवाइयों से भी राहत नहीं मिली,जबकि जिन साहब से ये दवाइयां लाया था,वो भी पारंगत,प्रकांड थे।वैसे एक गजब की बात यह भी थी कि दोनों ही परांगत आरक्षण की श्रेणी से बाहर थे।
दूसरे डॉक्टर के पास जाना पड़ा,वहाँ भी वही हुआ पर गनीमत यह रही कि वहाँ फीस कम लगी पर दवाइयां उन्होंने भी इतनी बांध दी,इतनी तो शायद बीमारी भी नहीं थी,क्या करता झोला भर लाया और एक तरफ दवाइयां देखूँ,एक तरफ खुद को देखूँ,वैसे इस देखने-दिखाने के चक्कर में यह अच्छा हुआ कि इस बीमारी के दौरान खुद को देखने का मौका जरूर मिला,दूसरों को देखने का अवसर तो हम हाथ से कहाँ जाने देते हैं? इन भारी-भरकम झोला भर दवाइयों से भी राहत नहीं मिली,जबकि जिन साहब से ये दवाइयां लाया था,वो भी पारंगत,प्रकांड थे।वैसे एक गजब की बात यह भी थी कि दोनों ही परांगत आरक्षण की श्रेणी से बाहर थे।
खैर,छोड़िए इस बात को क्योंकि जो हम कहना चाहते हैं वो समझ ही गए होंगे,क्योंकि आजकल हर कोई बहुत समझदार है।अब एक और डॉक्टर के पास गया,वहाँ फीस नाम की कोई पर्ची-वर्ची नहीं कटती थी,थे ये भी डिग्रीधारी पर इन्होंने भी दवाइयों का पुलिंदा बांध दिया।वैसे इतनी दवाइयां लाने भर से बीमारी को भाग जाना चाहिए था और मैंने तो सबकी दवाई खाई भी है।खैर,छोड़िए इस बात को,फिलवक्त हम ठीक-ठाक हैं पर यह हमें नामुलम कि किसकी दवाई से ठीक हुए हैं,पूरे ठीक तो नहीं हुए हैं।हाँ,इतना यकीन है कि हम ईश्वरीय अनुकंपा से ही ठीक हुए हैं जी।
लेकिन इस दौरान फ्री के डॉक्टरों की तो लाइन ही लग गई,जिसका भी कॉल आया और उसे लगा कि महोदय का स्पीकर गड़बड़ में है तो जाहिराना तौर पर कॉल करने वालों ने समझ ही लिया कि ये बीमार हैं,सो उन दर्जनों महाशयों ने भी अपनी-अपनी दवाइयां बता दी।खुशी की बात यह थी कि इन सबकी दवाइयों के लिए कोई पर्ची नहीं थी और ये सब महंगी भी नहीं थी।खैर,छोड़िए इस बात को पर यह बात समझ नहीं आई कि इतनी बड़ी-बड़ी डिग्री लेकर भी मरीज से ही पूछकर दवाई क्यों देते हैं?तिस पर आरक्षण वालों को गाली क्यों देते हैं?
खैर,छोड़िए इस बात को,वैसे पत्ते की बात तो यह है कि आदमी बीमार ही ना हो।मगर आजकल तो बीमारी घर-घर में हैं।हर आदमी के पास है बस बीमारी को जो पसंद आए,उसे लग जाती है। खैर,छोड़िए इस बात को,मुहब्बत करते रहे क्योंकि मेरा पैगाम मुहब्बत जहाँ तक पहुँचे।
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