आज मेरठ महोत्सव में ग्रैमी अवार्ड से सम्मानित शंकर महादेवन अपनी आवाज का जादू बिखेरेगे
मेरठ। सात हजार से अधिक गाने वाले संगीतकार व 2024 के ग्रैमी अवार्ड से सम्मानित शंकर महादेवन आज विक्टाेरिया पार्क में चल रहे मेरठ महोत्सव में आज अपनी आवाज का जादू बिखेरेंगे। अगले साल 13 फरवरी से प्रयाग राज में हो रहे महाकुंभ से पहले उनका मेरठ में कार्यक्रम आयोजित होने जा रहा है। शंकर महादेवन की कार्यक्रम को लेकर मेरठ ही नहीं आसपास के शहरों के लोगों में क्रेज बना हुआ है। पास व टिकट के लिए मारामारी मची हुई । आज होने वाले कार्यक्रम के लिए पुलिस प्रशासन की सुरक्षा व्यवस्था को दुरूस्त रखना सबसे बड़ीचुनौती होगी।
शंकर महादेवन की बात करे तो बहुत छोटे थे।एक बार वो अपने मामा के यहां गए थे। वहां एक हारमोनियम रखा था. शंकर महादेवन ने हारमोनियम बजाना शुरू कर दिया। उस वक्त तक शंकर ने संगीत का कोई प्रशिक्षण नहीं लिया था। उस रोज पहली बार घरवालों को समझ आया कि बच्चे की दिलचस्पी संगीत में है। शंकर का परिवार मुंबई में रहता था। बाद में शंकर महादेवन ने टीआर बालामनी से कर्नाटक संगीत सीखा। इसके अलावा उन्होंने श्रीनिवास खाले से मराठी भावगीत सीखा। शंकर को वाद्ययंत्रों में वीणा से भी बहुत लगाव था।
मोटी तनख्वाह के बजाय संगीन को चुना
शंकर महादेवन पढ़ाई में भी अच्छे थे। उन्होंने कंप्यूटर साइंस से इंजीनियरिंग की थी। उन्हें अमेरिका में नौकरी मिली। बड़ी कशमकश थी संगीत के रास्ते पर चलें या अमेरिका में मोटी तनख्वाह वाली नौकरी को चुने। इस दुविधा से घरवालों ने निकाला. सीधा सुझाव मिला- अच्छी तनख्वाह वाले इंजीनियर तो सैकड़ों मिल जाएंगे लेकिन इतने कमाल के संगीत वाला कलाकार कैसे मिलेगा? भूलना नहीं चाहिए कि फिल्म इंडस्ट्री हो या शास्त्रीय संगीत की दुनिया दोनों ही जगह अपने पांव जमाना बहुत टेढ़ा काम है। लेकिन शंकर महादेवन ने इसे साधा। ठीक वैसे ही जैसे वो संगीत के सात सुरों को साधते हैं। ग्रैमी अवॉर्ड इसी साधना का नतीजा है।
तमिल, तेलगु ,मलयालम और कन्नड़ फिल्मों में शंकर महादेवन ने संगीतकार ए आर रहमान के रचनाओं के जरिए प्रसिद्धी पाई ।1998 की ब्रेथलेस वह एल्बम है जिसने शंकर महादेवन को पहली बार मशहूर बनाया। ब्रेथलेस ऐसे गीत की निरंतर धारा है जो बिना किसी ब्रेक,छंद, पद्य या जाहिर तौर पर सांस लेने के लिए विराम के बिना आगे बढ़ना है। 1993 में नसीब आजमाने के , 1994 में अरेबिनयन नाइट्स ,पैटी रैप ,उर्वशी-उर्वशी, ऐसा जोखिम, 1995 में खुल्लम खुल्ला,ओ डार्लिग ये है ,घातक फिल्म का गाना कोई जाय तो ले जाए, 1997 में परदेश का ये दिल दिवाना , 1998 में कुछ कुछ होता है में रघुपति राघव ,चायना गेट में छम्मा छम्मा, बीवी नम्बर वन में इश्क सोना है ,1999 हम दिल दे चुके समन में मन माेहिनी, प्रेम धुन 2000 में दुल्हन हम ले जाएंगे के मुझसे शादी करोगी जैसे हजारों गानों में सगीत दिया है। उनकी संगीत का जादू दर्शकों में सिर चढ़कर बोलता है।
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