केजरीवाल की घोषणा
इलमा अजीम
आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक एवं दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ‘महिला सम्मान राशि’ और ‘संजीवनी’ नामक दो प्रमुख योजनाएं घोषित की हैं। उन्होंने पात्र महिलाओं को 1000 रुपए माहवार देने का आश्वासन दिया है और सत्ता में आने के बाद यह राशि 2100 रुपए तक बढ़ाने का वायदा भी किया है। ‘संजीवनी’ के तहत 60 साल सेे ज्यादा उम्र वाले बुजुर्ग सरकारी और निजी अस्पतालों में मुफ्त इलाज करा सकेंगे। पूरा खर्च सरकार वहन करेगी।
ऐसी चुनावी घोषणाएं पश्चिम बंगाल, मप्र, हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड सरीखे 10 राज्यों में की जा चुकी हैं, लेकिन नौकरशाही ने न तो कोई सवाल उठाया और न ही सरकारी विभागों ने इन घोषणाओं के खिलाफ विज्ञापन देकर उन्हें खारिज किया। दिल्ली में ‘आप’ की ही सरकार है। बेशक मुख्यमंत्री केजरीवाल के बजाय आतिशी हैं। जाहिर है कि केजरीवाल ने जिन योजनाओं की घोषणाएं कीं, उन्हें मुख्यमंत्री आतिशी का भी समर्थन है, लेकिन दिल्ली सरकार के संबंधित विभागों ने एक विज्ञापन जारी कर कहा है- सरकार ऐसी कोई स्कीम नहीं चला रही। इतना ही नहीं, महिला और स्वास्थ्य विभागों ने दिल्ली के लोगों को आगाह किया है कि ‘अस्तित्वहीन’ योजनाओं में पंजीकरण के नाम पर व्यक्तिगत जानकारी साझा न करें। कोई व्यक्ति या राजनीतिक दल ऐसे फॉर्म भरवाता है अथवा निजी जानकारी मांगता है, तो यह ‘धोखाधड़ी’ है।
इन योजनाओं की कोई सरकारी अधिसूचना भी जारी नहीं की गई है।’’ जाहिर है कि विज्ञापन का स्पष्ट संकेत केजरीवाल और ‘आप’ की तरफ है। यह कैसा मजाक है? दिल्ली सरकार अपने ही खिलाफ काम कर रही है अथवा लोकतांत्रिक व्यवस्था को खारिज किया जा रहा है? किसी भी चुनाव से पहले राजनीतिक दल ‘रेवडिय़ों’ के आश्वासन देते हैं अथवा योजनाओं की घोषणा करते हैं। ऐसे ही चुनावी वायदों पर जनता वोट देती है। यह लोकतांत्रिक अधिकार कैसे छीना जा सकता है? कुछ हालिया सालों के उदाहरण गौरतलब हैं।
हिमाचल में 2022 के चुनाव से पहले और कर्नाटक में 2023 के चुनाव से पहले महिलाओं में नकदी राशि बांटने की घोषणाएं कांग्रेस ने की थीं। दोनों ही राज्यों में भाजपा सत्तारूढ़ थी। भाजपा ने छत्तीसगढ़ और ओडिशा में महिला वोट बटोरने की खातिर ऐसी ही घोषणाएं की थीं। दोनों राज्यों में क्रमश: कांग्रेस और बीजू जनता दल की सरकारें थीं, लेकिन चुनावों के बाद भाजपा दोनों ही राज्यों में सत्तारूढ़ हुई।
इन तमाम संदर्भों में किसी भी सरकारी विभाग और मंत्रालय ने ऐसी घोषणाओं को न तो खारिज किया और न ही विज्ञापन जारी करने का दुस्साहस किया। आखिर दिल्ली में ऐसा क्यों हुआ? क्या जनादेशी सत्ता नौकरशाही के सामने बौनी है? क्या केंद्र सरकार के इशारे पर दिल्ली के उपराज्यपाल ने विभागों को ऐसी हरकत के लिए बाध्य किया? उपराज्यपाल भी केंद्र सरकार के एजेंट हैं।दरअसल दिल्ली सरकार की नौकरशाही उपराज्यपाल के संरक्षण में है। अफसर मुख्यमंत्री तक की बात नहीं सुनते, लिहाजा ऐसी हरकत करना बड़ा सामान्य है।
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