महंगाई की चुनौती
इलमा अजीम
हाल ही में 11 दिसंबर को भारतीय रिजर्व बैंक के नव नियुक्त 26वें गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा कि वह महंगाई नियंत्रण और विकास दर के बीच उपयुक्त संतुलन बनाने की डगर पर आगे बढ़ेंगे। साथ ही अर्थव्यवस्था के लिए सर्वोत्तम काम करने की कोशिश करेंगे। गौरतलब है कि यद्यपि 12 दिसंबर को घोषित आंकड़ों के अनुसार खुदरा महंगाई दर घटकर 5.8 फीसदी रह गई है, फिर भी यह रिजर्व बैंक के महंगाई के तय दायरे से अभी काफी ऊपर बनी हुई है।
ऐसे में इस समय देश में धीमी विकास दर और महंगाई की चुनौती का परिदृश्य उभरकर दिखाई दे रहा है। बीते दिनों राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2024-25 की दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 5.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि इसके पहले अप्रैल से जून की पहली तिमाही में 6.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। इस सुस्त विकास दर के परिदृश्य से प्रभावित हुए बिना हाल ही में 6 दिसंबर को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक में विकास दर बढ़ाने के लिए ब्याज दर में कमी नहीं करते हुए महंगाई नियंत्रण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष में खुदरा महंगाई के अनुमान को भी 4.5 प्रतिशत बढ़ाकर 4.8 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है।
रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर शक्तिकांत दास ने दिसंबर 2024 की मौद्रिक नीति के निर्णय के परिप्रेक्ष्य में कहा था कि निकट भविष्य में, कुछ नरमी के बावजूद, खाद्य कीमतों पर दबाव बने रहने से चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में मुख्य महंगाई के ऊंचे स्तर पर बने रहने की संभावना है। उन्होंने कहा था कि महंगाई के मद्देनजर वैश्विक अर्थव्यवस्था में अभी बांड प्रतिफल में वृद्धि, जिंस कीमतों में उतार-चढ़ाव और बढ़ते भू-राजनीतिक जोखिम जैसी कई तरह की बाधाएं हैं। साथ ही आयात शुल्क में वृद्धि और वैश्विक कीमतों में वृद्धि के बाद घरेलू खाद्य तेल की कीमतों की बदलती दिशा पर बारीकी से नजर रखने की जरूरत है। प्रारंभिक संकेत पर्याप्त मिट्टी की नमी और जलाशय के स्तर की ओर इशारा करते हैं, जो रबी की बुवाई के लिए अनुकूल है।
ऐसे में चालू वित्त वर्ष 2024-25 की चौथी तिमाही में विकास दर बढऩे की उम्मीद है। नि:संदेह आरबीआई के द्वारा मौद्रिक नीति समीक्षा के तहत महंगाई नियंत्रण को सर्वोच्च प्राथमिकता दिया जाना सही कदम है। खाद्य पदार्थों की महंगाई रोकने के लिए सरकार के द्वारा तात्कालिक उपायों के साथ दीर्घकालिक उपायों पर भी ध्यान दिया जाना जरूरी होगा। इस समय ग्रामीण भारत में जल्द खराब होने वाले ऐसे कृषि उत्पादों की आपूर्ति श्रृंखला बेहतर करने पर प्राथमिकता से काम करना होगा, जिनकी खाद्य महंगाई के उतार-चढ़ाव में ज्यादा भूमिका होती है।
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