चीन से आर्थिक रिश्तों में सावधानी जरूरी
- डा. जयंतीलाल भंडारी
हाल ही में चीन के साथ भारत के नए सैन्य समझौते के बाद भारत को चीन से आयातों के ढेर से बचने के लिए फूंक-फूंक कर कदम रखना जरूरी दिखाई दे रहा है। गौरतलब है कि 31 अक्टूबर को खुशियों के महापर्व दीपावली के दिन भारत-चीन सीमा पर भारत-चीन दोनों देशों के सैनिकों ने एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर दीपावली मनाई। इस खुशी का कारण यह है कि विगत 23 अक्टूबर को रूस के कजान में 16वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से इतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच सार्थक और सफल द्विपक्षीय वार्ता हुई और पांच साल बाद हुई इस वार्ता में दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने पर जोर दिया। दोनों नेताओं ने पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सैन्य गतिरोध को हल करने के लिए समझौते का स्वागत किया और अधिकारियों को लद्दाख में सीमा विवाद सुलझाने के लिए आगे बातचीत जारी रखने के निर्देश दिए। यही कारण है कि इस वार्ता के बाद सैन्य स्तर पर तत्परतापूर्वक क्रियान्वयन के साथ डेमचोक और डेपसांग मैदानी क्षेत्रों में टकराव वाले दो बिंदुओं से सैनिकों की पूर्ण वापसी के बाद अब पेट्रोलिंग शुरू हो गई है।
उल्लेखनीय है कि भारत और चीन के बीच संबंध सामान्य करने की इस वार्ता के सफल और सार्थक होने के पीछे एक बड़ा ही महत्वपूर्ण कारण यह भी रहा है कि चीन इस समय अभूतपूर्व विपरीत आर्थिक हालात का सामना कर रहा है। पिछली कुछ तिमाहियों से चीन की अर्थव्यवस्था लगातार धीमी पड़ रही है। चीन की विकास दर घटी है।
22 अक्टूबर को जारी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2024-25 में चीन की विकास दर गिरावट के साथ 4.8 फीसदी होगी, जबकि भारत की विकास दर 7 फीसदी होगी। चूंकि भारत में चीनी निवेश के लिए नियम कड़े हैं और चीन भारत के बाजार में बढऩा चाहता है, ऐसे में चीन वार्ता के लिए तत्पर हुआ। चीन ने इस बात को भी समझा है कि भारत ने चालू वित्त वर्ष 2024-25 के बजट के माध्यम से मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को मजबूत करते हुए आयात घटाने व निर्यात बढ़ाने के अभूतपूर्व प्रावधान किए हैं, ताकि चीन का भारतीय बाजारों पर जो दबदबा बना हुआ है, उसमें भी कमी आ सके। खास बात यह भी है कि हाल ही में अमेरिका के नए राष्ट्रपति चुने गए डोनॉल्ड ट्रंप के द्वारा अमेरिकी उद्योग-कारोबार को हरसंभव तरीके से आगे बढ़ाने की प्राथमिकता के तहत चीन से आयातों पर 60 फीसदी तक टैक्स आरोपित किए जाने की संभावना और विभिन्न यूरोपीय व अन्य कई देशों के द्वारा चीनी आयातों पर असाधारण आयात प्रतिबंध के परिदृश्य के बीच चीन की आर्थिक चिंताएं बढ़ गई हैं।
इतना ही नहीं, इस समय चीन अमेरिकी निवेशकों की प्राथमिकता खोता जा रहा है।
अमेरिका और चीन में बढ़ते तनाव के माहौल में नई रिपोर्टों में पाया गया कि चीन में कार्यरत अनेक वैश्विक कंपनियां अपना कारोबार चीन से समेटने की तैयारी में हैं। इस तरह जहां अब चीन के लिए भारतीय बाजार जरूरी है, वहीं भारत को भी अपने मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र के लिए चीन से विभिन्न कच्चे माल की सरल आपूर्ति जरूरी है। अब भारत के लिए भी चीन से साथ आर्थिक वार्ता के लाभ हो सकते हैं। ज्ञातव्य है कि चीन 2023-24 में अमेरिका को पीछे छोडक़र भारत का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार बन गया है। भारत दूरसंचार और बिजली संबंधी कलपुर्जों, इलेक्ट्रॉनिक्स, सोलर पैनल और औषधियों समेत कई उच्च प्रौद्योगिकी वाली वस्तुओं के लिए चीन पर निर्भर है। ध्यान देने वाली बात है कि सीमा पर तनाव के बावजूद चीन के साथ भारत का व्यापार लगातार बढ़ता रहा है और संतुलन पूरी तरह चीन के पक्ष में झुका हुआ है।
हाल ही में प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष 2024-25 के पहले छह महीनों यानी अप्रैल से सितंबर 2024 के दौरान भारत का चीन के साथ अब तक का सर्वाधिक व्यापार घाटा दर्ज किया गया है। इस अवधि में चीन से आयात बढक़र 56.29 अरब डॉलर हो गया। जबकि चीन को सिर्फ 6.91 अरब डॉलर का निर्यात किया गया। यदि हम पिछले संपूर्ण वित्त वर्ष 2023-24 में चीन के साथ भारत के व्यापार को देखें तो पाते हैं कि चीन से आयात 101.75 अरब डॉलर हुआ था। जबकि चीन को निर्यात 16.66 अरब डॉलर रहा तथा चीन के साथ व्यापार घाटा 85.09 अरब डॉलर रहा है।
भारत के आयात बाजार में चीन पहले स्थान पर है, तो निर्यात बाजार में चीन पांचवें स्थान पर है। ऐसे में अब भारत को चीन से आर्थिक वार्ता का जो मौका मिलेगा और चीन से आर्थिक रिश्ते सुधरने की जो संभावना है, उसके तहत भारत चीन के साथ कारोबार असंतुलन को कम करने के लिए प्रभावी बात कर सकता है। भारत चीन पर उन वस्तुओं के लिए दरवाजे खोलने को लेकर दबाव बना सकता है, जिनके लिए चीन ने सख्त नियम और गुणवत्ता को आधार बनाकर भारत से निर्यात को हतोत्साहित किया है। इनमें जेनेरिक दवाइयां, छोटी कार, पालिश डायमंड तथा मांस प्रमुखतया शामिल हैं।
ज्ञातव्य है कि भारत 185 से अधिक देशों को सैंकड़ों वस्तुओं का निर्यात करता है। अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देश भी भारत के उत्पादों के खरीददार हैं, लेकिन चीन हमारे उत्पादों की गुणवत्ता का सवाल उठाता है। सख्त नियमों से भारतीय फल और सब्जियां चीनी बाजार में हतोत्साहित की जाती हैं। बहरहाल भारत और चीन के बीच सार्थक वार्ता के बाद भारत को चीन से आर्थिक वार्ता को आगे बढ़ाते समय सावधान और सतर्क रहना होगा। चीन के द्वारा विश्वास तोडऩे के कई मौके भारत भूल नहीं सकता है। विगत दिनों अमेरिका के व्हार्टन बिजनेस स्कूल और अन्य कार्यक्रमों में संवाद के दौरान वित्त मंत्री सीतारमण ने कहा कि हम आंख बंद करके एफडीआई स्वीकार नहीं कर सकते। यद्यपि हमें निवेश की जरूरत है, लेकिन हमें देखना होगा कि यह निवेश किस देश से आ रहा है। हमें कुछ सुरक्षा उपाय भी करने होंगे, क्योंकि भारत ऐसे पड़ोसियों से घिरा है जो बहुत ही संवेदनशील हैं। नि:संदेह हमें चीन से शीघ्रतापूर्वक अच्छे आर्थिक संबंधों की उम्मीद नहीं पालनी चाहिए।
चीन का हृदय परिवर्तन हो गया है, यह कहना जल्दबाजी होगी। ऐसे में चीन पर निर्भरता कम करने के लिए एक व्यापक नीति की जरूरत बनी हुई है। ऐसी नीति जिसमें चीन की तरह भारत के द्वारा भी चीन से आयात होने वाले उत्पादों पर एंटीडंपिंग शुल्क लगाने की रणनीति जारी रखी जाए। जिस तरह हाल ही में यूरोपीय यूनियन और अन्य विकसित देशों के द्वारा चीन से आयात नियंत्रित करने के लिए गैर टैरिफ अवरोध के साथ अन्य आयात प्रतिबंधों को असाधारण रूप से बढ़ाया गया है, उसी तरह भारत के द्वारा संरक्षणवाद के तरीके अपनाते हुए चीन से तेजी से बढ़ रहे आयात और चीन के साथ बढ़ते हुए व्यापार घाटे को नियंत्रित करने के लिए रणनीतिक रूप से आगे बढऩा होगा। घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और आयात नियंत्रित करने से संबंधित उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (पीएलआई) के क्रियान्वयन में तेजी के साथ मेक इन इंडिया और स्वदेशी अपनाओ अभियान को तेजी से बढ़ाना होगा।
मैन्युफैक्चरिंग उत्पादन के लिए नई घरेलू क्षमताएं तैयार करनी होंगी और नए स्रोत तलाश करने होंगे। साथ ही देश की बड़ी कंपनियों को शोध एवं नवाचार के क्षेत्र में भी तेजी से आगे बढऩा होगा।
हम उम्मीद करें कि हाल ही में भारत-चीन के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाने के लिए जो सार्थक वार्ता और उसका क्रियान्वयन शुरू हुआ है, उसके बाद अब सरकार चीन के साथ आर्थिक रिश्तों की डगर पर सावधानी के साथ रणनीतिक रूप से आगे बढ़ेगी।
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