ट्रंप का आना और भारत
इलमा अजीम
यह एक हकीकत है कि ट्रंप एक बार फिर सत्ता में लौटे हैं और भारत तथा दुनिया को इस अप्रत्याशित चरित्र से निपटने के लिये तैयार रहना होगा। यह व्यक्ति एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना अच्छा दोस्त बताता है, वहीं भारत को अमेरिका के व्यापारिक हितों के विरुद्ध नीतियां बनाने वाला बताता है। यहां तक कि अपने चुनाव अभियान के दौरान भी ट्रंप अमेरिकी वस्तुओं पर भारी कर लगाने के लिये भारत की आलोचना कर चुके हैं। साथ ही अमेरिका को फिर से असाधारण रूप से संपन्न बनाने के लिये द्विपक्षीय व्यापार संबंधों में ‘जैसे को तैसा’ की नीति अपनाने का आह्वान किया था। ऐसे में आशंका जतायी जा रही है कि रिपब्लिकन प्रशासन अमेरिका को भारत से होने वाले 75 अरब डॉलर से अधिक के निर्यात पर अधिक टैरिफ लगा सकता है। बहुत संभव है कि मोदी के मेक इन इंडिया अभियान तथा ट्रंप के अमेरिका फर्स्ट नजरिये के साथ टकराव पैदा हो।
अपने पहले कार्यकाल में एच-1बी वीजा में कटौती के प्रयास करने वाले ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में रोजगार आधारित आव्रजन पर प्रतिकूल असर हो सकता है। कूटनीतिक मोर्चे पर नई दिल्ली को उम्मीद होगी कि ट्रंप के साथ मोदी के बेहतर तालमेल के चलते गुरपतवंत सिंह पन्नू मामले में मतभेद सुलझाने में मदद मिले। वैसे भी ट्रंप अमेरिकी न्याय विभाग और एफबीआई पर अविश्वास जताते हुए उन पर पक्षपाती होने के आरोप लगाते रहे हैं। उनका यह दृष्टिकोण इस जटिल मामले में भारत को राहत दे सकता है। वैसे ट्रंप से कुछ भी अप्रत्याशित करने की उम्मीद बनाये रखनी चाहिए। उम्मीद की जा रही है कि सामरिक मुद्दों, हथियारों के निर्यात, संयुक्त सैन्य अभ्यास व तकनीकी हस्तांतरण के मुद्दे पर ट्रंप प्रशासन के साथ भारत का बेहतर तालमेल संभव है।
पिछली पारी में राष्ट्रपति रहते हुए ट्रंप सरकार ने भारत के साथ बड़े रक्षा समझौते भी किए थे। जो फिर होने पर पाक व चीन के मुकाबले भारत को मजबूती दे सकते हैं। फिर भी कयास लगाए जा रहे हैं कि ट्रंप की सत्ता में वापसी भारत के लिये लाभदायक साबित हो सकती है। बहरहाल, ट्रंप की सफलता से अमेरिकी कारोबार जगत खासा उत्साहित है, जिसके चलते अमेरिकी शेयर बाजार खुशी से झूमा है। लेकिन इसके बावजूद हिंद प्रशांत में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका दोनों देशों के रक्षा संबंधों को मजबूती देगी।
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