बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा
इलमा अजीम
बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर दो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। एक पश्चिम बंगाल के दौरे पर गए गृहमंत्री अमित शाह ने तृणमूल कांग्रेस पर जमकर हमला बोलते हुए कहा कि ‘तृणमूल कांग्रेस सरकार पश्चिम बंगाल में घुसपैठियों की मदद कर रही है। अतएव यह घुसपैठ सरकार प्रायोजित है।’ गृहमंत्री ने उत्तर 24 परगना जिले में पेट्रापोल टर्मिनल भवन और मैत्री द्वार के उद्घाटन के समय यह बात कही। दूसरा हैरानी में डालने वाला तथ्य है कि गुजरात के अहमदाबाद से पचास बांग्लादेशियों की गिरफ्तारी हुई है। इन घुसपैठियों ने चंदोला झील में पानी न भरे, इसलिए इसे रोकने के लिए नर्मदा नदी की लाइन कचरे से भर दी।
पूरे अहमदाबाद के डंपिंग यार्ड पिराणा से प्रसंस्कृत कचरे के अवशेष इस झील में डालते गए। फिर वहां अपनी कालोनी बसा दी। इसके बाद अहमदाबाद की क्राइम ब्रांच ने चार माह निरंतर निगरानी रखने के बाद पचास से ज्यादा घुसपैठियों को गिरफ्तार किया, इनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल रहे। हालांकि इस कार्रवाई के शुरू होते ही बस्ती के 60 से 70 प्रतिशत लोग घर खाली करके भाग खड़े हुए थे। इन्हें कार्रवाई की भनक लग गई थी। इससे पता चलता है कि प्रशासन में बैठे लोग इनकी मदद कर रहे हैं। पकड़े गए लोगों में से अनेक हिंदू नामों के साथ कारोबार कर रहे थे। क्राइम ब्रांच ने इस घुसपैठ को 1985, 2011 और 2024 की उपग्रह से ली गईं तस्वीरों को जांच-परखने के बाद इस बड़ी कार्रवाई को अंजाम दिया है। बंगाल की सीमाओं से यह अनियंत्रित घुसपैठ राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता है। ये घुसपैठिए आम लोगों के हक व जमीन-जायदाद पर कब्जे तो कर ही रहे हैं, बंगाल के सीमावर्ती इलाकों में जनसांख्यिकीय घनत्व भी बदल रहे हैं। पूरा देश इस समस्या को लेकर चिंतित है। टीएमसी इन घुसपैठियों को भारतीय नागरिक बनाकर स्थायी रूप से बसाना चाहती है। जबकि मतुआ शरणार्थियों का विरोध करती है। वोट बैंक के तुष्टिकरण के चलते टीएमसी नागरिकता संशोधन कानून का विरोध कर रही है। बंगाल, असम और पूर्वोत्तर राज्यों में स्थानीय बनाम विदेशी नागरिकों का मसला एक बड़ी समस्या बन गया है, जो यहां के सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक जीवन को लंबे समय से झकझोर रहा है। असम के लोगों की शिकायत है कि बांग्लादेश से बड़ी संख्या में घुसपैठ करके आए मुस्लिमों ने उनके न केवल आजीविका के संसाधनों को हथिया लिया है, बल्कि कृषि भूमि पर भी काबिज हो गए हैं।
इस कारण राज्य का जनसंख्यात्मक घनत्व बिगड़ रहा है। लिहाजा यहां के मूल निवासी बोडो आदिवासी और घुसपैठियों के बीच जानलेवा हिंसक झड़पें होती रहती हैं। नतीजतन अवैध और स्थायी नागरिकों की पहचान के लिए सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर एनआरसी यानी राष्ट्रीय नागरिकता पत्रक बनाने की पहल हुई। इस तरह के संवेदनशील मामलों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। जो मसौदा आया है, वह अंतिम नहीं है। जरूरी बदलाव हो सकते हैं, पर घुसपैठ रोकना जरूरी है।
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