अव्यक्त अजन्मा भगवान शंकर ही इस सुष्टि रचना के मूल कारक, पालक और संहारक-
मेरठ। शास्त्री नगर डी ब्लॉक स्थित परशुरामेश्वर महादेव मन्दिर परिसर में श्रीशिव महापुराण के तीसरे दिन दण्डी स्वामी ध्रुवानंद तीर्थ महाराज ने अपने प्रवचन में बताया कि अव्यक्त अजन्मा भगवान शंकर ही इस सुष्टि रचना के मूल कारक, पालक और संहारक हैं।
महर्षि वेद व्यास जी द्वारा रचित शिव महापुराण की तात्विक विवेचना करते हुए स्वामी जो ने शिव के कल्याणकारी स्वरूपों विभिन्न अवतारों और ज्योतिर्लिंग की महिमा के बारे में बताया कि काम पर विजय केवल शिवकृपा से ही संभव हैं। काम के आने से काम, क्रोध और लोभ भी आते है, इन विकारों के कारण ही बुद्धि का नाश होता हैं।नारद जैसे महाज्ञानी भी जब भगवान से विमुख हुए तब वे भी काम, क्रोध और लोभ से ग्रसित हो गये। हम भी जब इन विकारो से पीडित हो तो हमें भी भगवान शंकर की शरण में जाना चाहिए। पूजा पद्धति के विषय में जानकारी देते हुए स्वामी जी ने बताया कि कुछ स्वार्थ परस्त श्रद्धालुओं ने पूजा करने के तरीके भी बदल दिये हैं भगवान शंकर की पूजा करते समय भांग धतूरा नहीं चढ़ाया जाता। लेकिन न मालूम क्यों लोग इसे ही भगवान शंकर को अर्पित करते हैं। कार्यक्रम से पूर्व पं विवेक शर्मा, पं. खुशीराम शर्मा, पं. व्रजेश दीक्षित तथा पुनीत त्यागी द्वारा महाराज जी को पुष्प अर्पित करते हुऐ व्यास पीठ का आशीर्वाद प्राप्त किया। ब्राह्मण कल्याण परिषद के अध्यक्ष पं. डॉ अशोक कुमार शर्मा ने बताया कि कथा के चौथे दिन 7 नवम्बर को शिव विवाह का प्रसंग सुनाया जायेगा।कार्यक्रम को सफल बनाने में पं आशुतोष कौशिक, पं गौरव शर्मा, पं. राजीव शर्मा. ठा. अजय सिंह, पं. दीपक तिवारी, आचार्य प्रदीप सेमवाल, आचार्य राकेश बसलियाल का विशेष सहयोग रहा।
No comments:
Post a Comment