बी.डी.एम.म्यूनिसिपल गर्ल्स डिग्री कॉलेज, शिकोहाबाद में संपन्न हुआ दो दिवसीय राष्ट्रीय गोष्ठी का आयोजन
संगीत का साहित्य , समाज और इतिहास से संबंध विषय पर व्याख्यान दिए गए।
राष्ट्रीय गोष्ठी में जर्नल का विमोचन एवं शोध पत्रों का हुआ वाचन
शिकोहाबाद(फिरोजाबाद)।बी.डी.एम.म्यू. गर्ल्स डिग्री कॉलेज, शिकोहाबाद में प्राचार्या गीता यादवेन्दु तथा संगीत विभागाध्यक्षा डॉ.मोनिका सिंह के संयोजन में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के द्वितीय दिवस का शुभारम्भ माँ सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलित कर एवं सरस्वती वंदना के साथ किया गया।
सरस्वती वंदना एवं स्वागत गीत की प्रस्तुति में डॉ. चन्द्रा का विशेष सहयोग रहा। संगोष्ठी में पधारे विशिष्ठ विद्वत अतिथिगण डिप्टी डायरेक्टर भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के डॉ. विनोद कुमार एवं पूर्व कुलपति (आगरा विश्वविद्यालय) प्रो. लावण्या कीर्ति सिंह ' काव्या' एवं प्रो. आन्श्वना सक्सेना (आगरा कॉलेज, आगरा) , बनारस से पधारे डॉ. राम शंकर ज, डॉ. मनीष करवडे रहे।अतिथियों का स्वागत महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो. गीता यादवेन्दु द्वारा किया गया।
संगोष्ठी के द्वितीय दिवस के प्रथम सत्र की अध्यक्षता प्रो. आंश्वना सक्सेना ने की। उनका परिचय समाजशास्त्र विभाग की असि. प्रो. डॉ. ममता भारद्वाज द्वारा प्रस्तुत किया गया। उन्होंने अपने बीज वक्तव्य में बताया कि संगीत साहित्य, समाज, इतिहास तीनों से जुडा है यह उसे पोषित करता है। संगीत जीवन है जो संगीत हमारे भीतर है वो ध्वनि और सुर का मिला जुला रूप है और वो हमारे जीवन में व्याप्त है और जहाँ लय बिगडती है वहीं विध्वंस मचा देती है। मुख्य वक्ता प्रो० लावण्या कीर्ति सिंह (पूर्व अध्यक्षा संगीत एवं ड्रामा विभाग, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, बिहार) का परिचय डॉ० मोनिका सिंह द्वारा प्रस्तुत किया गया। उन्होंने विभिन्न रागों और बंदिशों के बारे में बारीकी से समझाया उन्होनें कहा कि जहाँ लक्ष्य की पूर्ति होती है वहीं ईश्वर है। पशुता अज्ञानता से नही है साहित्य, और संगीत की अनुपस्थिति से होती है। हमारे साथ असहज परिस्थितियों का होना आवश्यक है क्योंकि वही हमें सवरने और निखरने का अवसर प्रदान करती हैं। प्रथम सत्र के अध्यक्षीय उद्बोधन में महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो. गीता यादवेन्दु ने 'वैशाली की नगर वधू' एवं 'मारे गये गुलफाम' आदि उपन्यासों के माध्यम से गाने वाली महिलाओं, गणिकाओं एवं तवायफों आदि के प्रति पूर्वाग्रह व संकीर्ण विचारों से अवगत कराया एवं कहा कि संगीत के बिना यह संसार नीरस है। उप प्राचार्य व हिंदी विभाग अध्यक्ष प्रोफेसर शशि प्रभा तोमर ने सत्र समन्वयक की भूमिका निर्वाह किया।सत्र का संचालन डॉ नीलम द्वारा किया गया एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ.नम्रता प्रसाद द्वारा किया गया। द्वितीय सत्र के मुख्य वक्ता डॉ मनीष करवड़े सहायक प्राध्यापक एवं प्रभारी विभाग अध्यक्ष पद (तबला) का परिचय डॉ पिंकी द्वारा किया गया। उन्होंने अपने वक्तव्य में बताया कि मानव हृदय को सबसे ज्यादा झंकृत यदि कोई करता है तो वह संगीत है।गायन वादन एवं नृत्य का समावेश ही संगीत है। गोष्ठी का द्वितीय सत्र शोध पत्र वाचन से संबंधित रहा।इस सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर शशि प्रभा तोमर ने की। सत्र समन्वयक के दायित्व का निर्वाह प्रो. सीमा रानी जैन ने किया। द्वितीय सत्र में उप प्राचार्य प्रोफेसर शशि प्रभात तोमर ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में भोजपुरी मैथिली, संस्कृत, अंग्रेजी व हिंदी साहित्य में संगीत के महत्व पर प्रकाश डाला।
तकनीकी सत्र में ऑनलाइन मोड में 18 प्रतिभागियों एवं ऑफलाइन मोड में 11 प्रतियोगियों ने शोध पत्र का वाचन किया।सत्र का संचालन पल्लवी पांडे ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन श्रीमती सोनिका द्वारा किया गया। इस सत्र में आई.एस.बी.एन पुस्तक एवं इंटरनेशनल पियर रिव्यूड जर्नल का विमोचन किया गया। तृतीय सत्र का प्रारंभ पूजा गुप्ता और वैष्णवी के नृत्य के साथ हुआ।संगीत विभाग की छात्राओं द्वारा लोकगीत की सामूहिक प्रस्तुति दी गई ढोलक पर संगत कानपुर के श्री प्रखर प्रताप सिंह द्वारा की गई।बनारस से पधारे डॉ. रामशंकर जी द्वारा शास्त्रीय गायन की प्रस्तुति दी गई। जिसमें तबला संगीतकार डॉ मनीष रहे ।डॉ. रामशंकर ने संगीत रामायण, केवट प्रसंग, राग नट, भीम पलासी ,राग बिहागड़ा , राग चारु के आदि में भगवान राम की वंदना, तुलसीदास जी की वंदना तत्पश्चात केवट प्रसंग की कुछ बंदिशें प्रस्तुत की । सत्र का संचालन प्रोफेसर सीमा रानी जैन एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ.मोनिका सिंह द्वारा दिया गया। इस सत्र की अध्यक्षता आई.सी.एच.आर.के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. विनोद कुमार ने की ।संगोष्ठी में प्रो.अनुपमा ,प्रो.सुनील बाबू चौधरी, डॉ .संतोष ,प्रो.विनीता, डॉ.कविता समेत महाविद्यालय की समस्त शिक्षिकाएं –शिक्षणेत्तर कर्मचारी, शोधार्थी एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।
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