जहरीले बोल पर लगे रोक
जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 में धारा 123 है, जिसके तहत धर्म, नस्ल, समुदाय, भाषा और घूस के आधार पर नफरत फैलाने, दुश्मनी करने को ‘भ्रष्ट आचरण’ माना गया है। चुनाव आयोग उस कानूनी प्रावधान के तहत चुनावी उम्मीदवार को दंडित कर सकता है। क्या चुनाव आयोग अपने अधिकारों को भूल गया है? सवाल यह भी है कि क्या हमारे जन-प्रतिनिधि भी अपने पद की गरिमा भूल चुके हैं? गोली, लाठी, जूता, लात, थप्पड़, घूंसा आदि अपशब्दों से कौन-सा वोट बैंक लामबंद होकर किसी पार्टी विशेष के पक्ष में जाता है? इन शब्दों का प्रयोग करना किस किस्म की राजनीति है? यह चिढ़ है, घृणा है, दुश्मनी भी है, लिहाजा हमारे नेता अपशब्दों का खुलकर इस्तेमाल कर रहे हैं। इस रवायत पर या तो चुनाव आयोग नकेल कस सकता है अथवा सर्वोच्च अदालत स्वत: संज्ञान लेकर कोई फैसला सुना सकती है। कहावत है कि कमान से निकला तीर और जुबां से निकले शब्द कभी वापस नहीं हो सकते। हालिया चुनावों में ‘तीर’ तो नहीं हैं, लेकिन जुबां से निकले शब्द बेलगाम, अमर्यादित और अशालीन जरूर हो रहे हैं। तमाम लक्ष्मण-रेखाएं लांघी जा रही हैं। जनप्रतिनिधित्व कानून की धाराएं हैं, आयोग को संवैधानिक अधिकार हासिल हैं, लेकिन आयोग ‘दंतहीन’ बना है। उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बयान से ही मौजूदा जहरीले बोलों को समझने की कोशिश करते हैं कि क्या इन आधारों पर भी चुनावी ध्रुवीकरण होता है?
मुख्यमंत्री ने सोशल मीडिया पर लिखा कि यदि बेटी से छेड़छाड़ की गई, तो उस आदमी का चौराहे पर ही इलाज कर देंगे-दे जूता, दे लात, दे घूंसा, दे डंडा आदि। क्या अब पदासीन मुख्यमंत्री के लिए यही कानूनी कार्यशैली और कानूनी संहिता बन गई है? सिर्फ यही नहीं, नेतागण गोली और लाठी की भाषा भी बोलने लगे हैं। आने वाले वक्त में एके-47 की गोली भी चलने लगे अथवा चुनाव में ग्रेनेड का भी इस्तेमाल किया जाने लगे, तो आश्चर्य मत करना। मप्र के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने यहां तक टिप्पणी की कि ईवीएम का बटन इतनी जोर से दबाना कि राहुल गांधी के गाल पर थप्पड़ पड़े। उप्र सरकार के एक मंत्री ने पूर्व मुख्यमंत्री के बारे में कह दिया कि उनकी सोच और कार्यशैली ‘बंदर’ जैसी है। महाराष्ट्र में शिवसेना (उद्धव) के एक सांसद ने प्रतिद्वंद्वी शिवसेना की महिला उम्मीदवार को ‘आयातित माल’ कह दिया। यह महिला बीते 20-25 सालों से भाजपा के साथ जुड़ी हैं, लेकिन गठबंधन के तहत शिवसेना (शिंदे) के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। क्या कोई महिला ‘माल’ हो सकती है? महाराष्ट्र के ही पूर्व मुख्यमंत्री एवं मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे नारायण राणे ने बकरीद और दीपावली के एक संदर्भ में कह दिया कि आज बाला साहेब होते, तो उद्धव ठाकरे को गोली मार देते! हालांकि बिहार में चुनाव नहीं हैं, लेकिन राजद झारखंड में झामुमो गठबंधन के एक घटक के तौर पर चुनाव लड़ रहा है, फिर भी पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के इस बयान के निहितार्थ समझ के परे हैं-जब भैंस हमें नहीं पटक सकी, तो ये भाजपा वाले क्या पटकेंगे?
एक राजद सांसद ने लाठी-डंडे से हड्डी तोड़ देने की बात कही है। इन जहरीले बोलों और गालीनुमा शब्दों की सूची बहुत लंबी है। देश ‘मौत का सौदागर’ और ‘चौकीदार चोर है’ जैसे जुमलों को नहीं भूला होगा। देश के प्रधानमंत्री मोदी को ‘भस्मासुर’, ‘राक्षस’, ‘सांप’, ‘यमराज’,‘बिच्छू’, ‘बंदर’, ‘अनपढ़’, ‘हिटलर’, ‘कमीना, ‘रावण’’ सरीखी गालियां भी हम भूले नहीं होंगे। सवाल है कि भाषा, मर्यादा, व्यवहार की ऐसी निरंकुशता पर नेतागण क्या वोट मांगेंगे? क्या उन्हें वोट मिलेंगे? ध्यान होगा कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी की जुबान जरा-सी फिसल गई थी, उसी आधार पर अदालत ने उन्हें दो साल की सजा सुना दी। सांसदी भी रद्द कर दी गई थी। फिलहाल सर्वोच्च अदालत ने उस फैसले पर रोक लगा रखी है। नए लोकसभा चुनाव भी हो चुके हैं और अब राहुल गांधी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं।
No comments:
Post a Comment