वैश्विक शांति के लिए भी महत्वपूर्ण है भारत-चीन की पहल
- अशोक मधुप
भारत चीन दोनों ने दावा किया है कि पूर्वी लद्दाख सेक्टर के डेमचोक और देपसांग में दो टकराव बिंदुओं पर भारत और चीन के सैनिकों की वापसी शुरू हो गई है। रक्षा अधिकारियों ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच हुए समझौतों के अनुसार, भारतीय सैनिकों ने संबंधित क्षेत्रों में पीछे के स्थानों पर अपने उपकरण वापस खींचना शुरू कर दिया है। ऐसा होने से पिछले चार साल से अधिक समय से चल रहा सैन्य गतिरोध समाप्त हो गया है। चीन ने भी ऐसा ही दावा किया है। सीमा से सेना की वापसी एक अच्छी पहल है। इससे विवाद वाले देशों में शांति होती है। विकास होता है। अब तक तनाव के दौरान सीमा और सेना पर किया जा रहा व्यय देश के विकास पर खर्च होगा। इतना सब होने पर भी चीन के रवैये को देखकर उस पर यकीन नही किया जा सकता। उसके बहुत सावधान रहने की जरूरत है। सीमा पर विकास कार्य लगातार चलाए रखने होंगे। सीमा तक सेना के अवागमन को सरल करने की प्रक्रिया चलती रहनी चाहिए। सीमा क्षेत्र में सूचना तंत्र विकसित करने का कार्य लगातार चलना चाहिए।
24 अक्टूबर को नई दिल्ली में एक कार्यक्रम में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत और चीन दोनों देश समान और पारस्परिक सुरक्षा के सिद्धांतों के आधार पर “जमीनी स्थिति” बहाल करने के लिए आम सहमति पर पहुंच गए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इसमें “पारंपरिक क्षेत्रों में गश्त और चराई” की बहाली शामिल है। रक्षा मंत्री ने संबंधों में प्रगति का श्रेय “निरंतर बातचीत में संलग्न होने की शक्ति को दिया, क्योंकि जल्द या बाद में, समाधान निकलेगा।”

बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के मौके पर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की और पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर गश्त व्यवस्था पर दोनों देशों के बीच हुए समझौते का स्वागत किया। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि सीमा पर शांति और स्थिरता बनाए रखना दोनों देशों की प्राथमिकता बनी रहनी चाहिए और आपसी विश्वास द्विपक्षीय संबंधों का आधार बना रहना चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत-चीन संबंध न केवल दोनों देशों के लोगों के लिए बल्कि वैश्विक शांति, स्थिरता और प्रगति के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। वहीं विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने 22 अक्टूबर को नई दिल्ली में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि भारत ने चीन के साथ गश्त व्यवस्था पर एक समझौता किया है, जिससे वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर स्थिति मई 2020 से पहले जैसी हो जाएगी।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पेट्रोलिंग (गश्त) को लेकर हुए समझौता का श्रेय भारतीय सेना और कूटनीति को दिया। पूर्वी लद्दाख में देपसांग और डेमचोक क्षेत्रों में दोनों देशों की सेनाओं के बीच शुक्रवार को डिसएंगेजमेंट (सैनिक वापसी) की प्रक्रिया शुरू हुई, जो 29 अक्टूबर तक पूरी हो जाएगी। इसके बाद 30-31 अक्टूबर से गश्त फिर से शुरू की जाएगी।
पुणे में छात्रों के साथ संवाद करते हुए जयशंकर ने कहा कि संबंधों के सामान्य होने में अभी समय लगेगा, क्योंकि विश्वास और सहयोग को दोबारा स्थापित करना लंबी प्रक्रिया है। विदेश मंत्री ने बताया कि हाल ही में रूस के कजान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई द्विपक्षीय बैठक में यह निर्णय लिया गया कि दोनों देशों के विदेश मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बैठक करेंगे और आगे की रणनीति पर विचार करेंगे।


जयशंकर ने कहा, "अगर आज हम उस मुकाम पर पहुंचे हैं, जहां हम हैं...तो इसका एक कारण यह है कि हमने अपनी जमीन पर डटे रहने और अपनी बात रखने के लिए बहुत दृढ़ प्रयास किया। सेना देश की रक्षा के लिए बहुत ही अकल्पनीय परिस्थितियों में (एलएसी पर) मौजूद थी, और सेना ने अपना काम किया और कूटनीति ने अपना काम किया।" उन्होंने यह भी बताया कि भारत अब पिछले एक दशक की तुलना में पांच गुना अधिक संसाधन लगा रहा है, जिससे सेना को प्रभावी ढंग से तैनात किया जा सका है।
ओआरएफ में फेलो और चीन मामलों के जानकार कल्पित मणकिकर कहते हैं कि 'ऐसा एक लंबी प्रक्रिया के तहत होता है। दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और दोनों देशों के विदेश मंत्री लगातार मुलाकात करते आ रहे हैं। पिछले चार सालों से बॉर्डर मुद्दों को सुलझाने को लेकर कोशिशें लगातार हो रही है। सेना के कमांडर स्तर पर बातें अलग से होती रही हैं। भारत और चीन दोनों की ओर से इस तरह की कोशिशें की जा रही थी। हालांकि अब जो दिख रहा है, उसके मद्देनजर इस तरह की कोशिशें क्या दिशा लेंगी, इसे लेकर अभी वेट एंड वॉच की स्थिति में ही रहा जा सकता है।
2020 की झड़प के बाद से दोनों देश सीमा पर बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए भी प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, जिसे वास्तविक नियंत्रण रेखा के रूप में भी जाना जाता है। भारत द्वारा उच्च ऊंचाई वाले हवाई अड्डे तक एक नई सड़क का निर्माण चीनी सैनिकों के साथ 2020 में होने वाली घातक झड़प के मुख्य कारणों में से एक माना जा रहा है। अच्छा यह है कि दोनों देश मई 2020 की यथास्थिति पर वापस लौटने पर सहमत ही नही हुए, इस प्रक्रिया के लिए कार्य भी शुरू हो गया।
सीमा विवाद के चार साल के दौरान समाचार आए की चीन सीमा पर नए हवाई अड्डे−सैनिक छावनी उनके लिए बंकर बना रहा है। अपने सीमा से सटे क्षेत्र में गांव विकसित कर रहा है। भारतीय क्षेत्र के स्थानों क नाम बदल रहा है। हालांकि विवाद की अवधि में भारत ने भी सीमा पर सुरक्षा ढांचा विकसित किया है। नए एयरबेस तैयार कर रहा है। ठंडे स्थानों में रहने के लिए सैनिकों को प्रशिक्षित करने के साथ ही उनके लिए बर्फ के दौरान भी रहने के लिए सौलर से गर्म करने वाले उनके टैंट बना रहा है। इस प्रक्रिया को भारत का और तेज करना होगा। सीमा रेखा के सटाकर गांव विकसित करने होंगे तोकि चीन की गतिविधि पर नजर रखी जा सके। एक तरह से चीन की प्रत्येक कार्रवाई का उत्तर उसके कदम ही से आगे बढकर देना होगा।


एक बात और सेना की वापसी के बावजूद सीमा क्षेत्र का विकास कार्य अनवरत चलता रहना चाहिए। सीमा पर विकास कार्य लगातार चलाए रखने होंगे। सीमा तक सेना के अवागमन को सरल करने की प्रक्रिया  चलती रहनी चाहिए। सीमा क्षेत्र में सूचना तंत्र विकसित करने का कार्य लगातार चलना चाहिए। सीमा क्षेत्र के गांव वालों को इसके लिए शिक्षित किया जाना चाहिए कि वे दुश्मन देश की गतिविधि पर नजर रखें। अपने क्षेत्र में तैनात अधिकारियों और सेना को छोटी–बड़ी सब सूचना दें।

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