केवल राजनीति पर क्यों उठे सवाल...
- अतुल मलिकराम (लेखक और राजनीतिक रणनीतिकार)
आज कल एक शब्द बड़ा प्रचलित हो चला है, जो आपने भी अक्सर सुना होगा, नेपोटिज़्म, या हिंदी में कहें तो भाई-भतीजावाद । आज हर क्षेत्र और स्तर पर आपको इसका असर देखने को मिल जाएगा। लेकिन इस आरोप से सबसे ज्यादा राजनीति बदनाम है। हालाँकि ज्यादा दूर ना जाए ; आप अपने आस-पास ही देखें तो आपको इसके उदाहरण बड़ी आसानी से देखने को मिल जाएँगे। ऐसे में मेरे मन में अक्सर यह सवाल उठता है कि जब यह चलन हर स्तर और हर क्षेत्र में हैं तो फिर क्यों इस आरोप से केवल राजनीति या राजनेता ही बदनाम हैं.....?
भले ही यह शब्द आजकल कुछ ज्यादा ही चलन में है। लेकिन यह प्रथा सालों से हमारे देश में है। तभी तो पुराने समय में राजा का बेटा राजा बनाता था और शिक्षक का बेटा शिक्षक। यह तो हमारी प्राचीन सभ्यता का सामाजिक चलन रहा है। आज भी एक व्यापारी अपनी अगली पीढ़ी को अपने व्यापर में ही शामिल करना चाहता है या एक डॉक्टर अपनी संतान को भी डॉक्टर बनाने की चाह रखता है। यह एक सामान्य मनोविज्ञान है कि कोई व्यक्ति जिसने बड़ी मेहनत से किसी क्षेत्र में सफलता पाई, एक विरासत खड़ी की, वह इसे आगे बढ़ाने के लिए बेशक किसी परिचित और विश्वसनीय हाथों में सौपना चाहेगा। यह सामान्य इंसानी सोच है। आप भी मेरी इस बात से सहमत होंगे इसलिए हमें यह मान लेना चाहिए कि थोड़ा-बहुत नेपोटिज्म हम सबके अंदर भी है। लेकिन यह आपराधिक नहीं होना चाहिए। अगर आप बिना किसी योग्यता के अपने सगे सम्बन्धी को उच्च पद दे रहे हैं या अपनी पहचान के दम पर उसे आगे बढ़ने का कोई अवसर दिलवा रहे हैं, तो यह बिलकुल गलत है। इसका खुलकर विरोध होना चाहिए।
लेकिन आज के समय में राजनीति इससे सबसे ज्यादा बदनाम है। हाँ इसका एक कारण यह हो सकता है कि राजनीति में भाई-भतीजावाद के उदाहरण बहुतायत में मिल जाते हैं। एक परिवार की कई पीढ़ियों के राजनीति में सक्रिय रहने के कारण यह हमारी सोच बन गई है और राजनीति को नेपोटिज्म का गढ़ मान लिया गया है। परंतु, अगर हम अन्य क्षेत्रों पर नजर डालें तो वहाँ भी स्थिति बहुत अलग नहीं है। मनोरंजन उद्योग में भी अक्सर देखा गया है कि फिल्मी हस्तियों के बच्चे आसानी से अवसर प्राप्त करते हैं। खेलों में, कई बार खिलाड़ी अपने परिवारिक संबंधों के आधार पर चयनित हो जाते हैं। व्यापार में, बड़े व्यापारिक घरानों के वारिस बिना किसी विशेष योग्यता के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन हो जाते हैं। बस बात इतनी है कि इनमें से कुछ क्षेत्र छुपे हुए हैं या छोटे हैं, जहां लोगों का ध्यान नहीं जाता। लेकिन राजनीति का क्षेत्र हर किसी की नजर में है इसलिए इसके बारे में हमें पता चल जाता है।
यहाँ मैं भाई-भतीजावाद की पैरवी नहीं कर रहा हूँ, लेकिन केवल एक क्षेत्र विशेष को निशाना बनाने वाली विचारधारा का भी समर्थन नहीं करता हूँ। वैसे भी क्षेत्र कोई भी हो मैं योग्यता के आधार पर ही अवसर या पद मिलने का पक्षधर हूँ। लेकिन राजा का बेटा योग्य होने के बावजूद भी केवल भाई-भतीजावाद के आरोप के डर से राजा न बनें, यह भी अन्याय ही होगा। हमें यहाँ यह भी समझना होगा कि कोई चलन सही या गलत नहीं होता। गलत होती है उसके पीछे की सोच। कोई केवल अपना स्वार्थ देख रहा है और केवल अपनों के हित का सोच रहा है तो यह सरासर गलत है। लेकिन उस काम के पीछे देश और समाज का कल्याण और सद्भावना छुपी है तो यह गलत नहीं होगा ।
इसी संदर्भ में, नेपोटिज्म एक ऐसी समस्या है जो समाज के हर क्षेत्र में मौजूद है। इसे केवल राजनीति से जोड़ना और अन्य क्षेत्रों को नजरअंदाज करना समस्या को और बढ़ावा देने जैसा है। क्योंकि जब हम भाई-भतीजावाद को केवल एक क्षेत्र तक सीमित कर देते हैं, तो हम इस महत्वपूर्ण मुद्दे की जड़ तक नहीं पहुँच पाते। हमें समझना होगा कि जब तक हम हर क्षेत्र में समान रूप से नेपोटिज्म के खिलाफ आवाज नहीं उठाएंगे, तब तक इसका समाधान संभव नहीं है। समाज में योग्य व्यक्तियों को उचित अवसर देने के लिए हमें हर क्षेत्र में पारदर्शिता और निष्पक्षता को प्राथमिकता देनी होगी। इस प्रकार ही हम एक समतावादी और योग्यता-आधारित समाज की स्थापना कर सकते हैं।
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