वैज्ञानिकों ने नवीन शोध अनुप्रयोग के विषय में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर डाला प्रकाश
मेरठ ।वनस्पति विज्ञान के 47 वें अखिल भारतीय सम्मेलन व अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी में अनेक दिग्गज वैज्ञानिकों ने स्मृति व्याख्यान, आमंत्रित व्याख्यानो द्वारा सभी प्रतिभागियों का नवीन शोध व अनुप्रयोगों के विषय में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रकाश में ज्ञान वर्धन किया। आज सम्मेलन के दूसरे दिन प्रोफेसर डेजी आर बतीश चंडीगढ़ ने प्रोफेसर उमाकांत सिन्हा स्मृति व्याख्यान देते हुए घुसपैठी प्रजातियों के कारण होने वाली समस्याओं के विषय में विस्तार से बताया। कहा कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव इन पादपों पर सबसे कम देखा गया है। क्योंकि नई परिस्थितियों व आवास में ढल जाने के बाद ये पौधे स्थानीय प्रजातियों के जीवन के लिए खतरा बन जाते हैं। स्वयं को बदलती परिस्थितियों के लिए अनुकूलित करते रहते हैं। पार्थ नियम लैंटाना आदि कुछ पौधे आयतित कर अथवा लाकर लगाए गए हैं जैसे काला बांसा जो अपने अनुकूलन क्षमता के कारण तेजी से फेल कर स्थानीय पीला बांस व अन्य शोभा पुष्पों वाले पादपो पर दाब बढ़ाकर उन्हें धीरे-धीरे उसे स्थान से समाप्त कर देता है।
प्रोफेसर डीए पाटिल ने प्रोफेसर जी पाणिग्रही के स्मृति व्याख्यान देते हुए बताया कि लगभग सभी पुराने संहिताओं वृक्ष आयुर्वेद निघंटुओं में इन घुसपैठी पौधों की आक्रामकता के विषय में विस्तार से लिखा गया है 16 17 से बढ़ते बढ़ते 200 पादपो तक का वर्णन इन ग्रंथो में मिलता है उन्होंने कहा कि उनके नियंत्रण के विभिन्न उपायों के विषय में यदि समय रहते इन पर नियंत्रण नहीं किया गया तो जलवायु परिवर्तन के प्रभाव स्थानीय फसलों पर अति हानिकारक होंगे जो आर्थिक रूप से भी भारी क्षति पहुंचाएंगे प्रोफेसर एस के सपोरी ने ग्लाइऑक्सलेज एंजाइम पर अपने शोध के विषय में बताया कि किस प्रकार तीन प्रकार के ग्लाइऑक्सलेज पादपो के विभिन्न विकास चक्र को प्रभावित करते हैं। आश्चर्यजनक रूप से यह एंजाइम केवल पादपो में ही नहीं सूक्ष्म जीवों में भी था तथा उनकी वृद्धि विकास में भी भाग ले रहा था ईथायलीन संश्लेषण से होने वाले फलों के पकाने को एक स्तर पर नियंत्रित करने का कार्य जल की कमी को सटने का भी यह कार्य जैवउत्प्रेरक करता है। पशुओं के हार्मोन को पादपो में बनाने में नियंत्रित करने में भी सहायक होता है आने वाले समय में पादप वैक्सीन अन्य दावों के संश्लेषण व नियंत्रण को बल मिलेगा भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण के निदेशक डॉक्टर एए माओ नए भारत भर में किए गए वानस्पतिक सर्वेक्षण के आंकड़ों को बताते हुए जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को बताया डॉ नवीन अरोड़ा ने ऐसे सूक्ष्मजीवों जैव उर्वरक फार्मूला बनाया जो हैदराबाद की एक कंपनी द्वारा देश भर में विक्रय किया जा रहा है इस उर्वरक की कुछ बंदे एक लीटर पानी में मिलाकर डालने से ऊसर भूमि भी उर्वर हो जाती है इसमें लवणीय भूमि में बिना रासायनिक उर्वरक का प्रयोग किया उर्वरक क्षमता तथा पादपो की उत्पादकता बढ़ाने वाले सयू डोमोनाड रहिजोबिया बेसीलस ट्राईकोडरमा आदि का मिश्रण प्रयुक्त किया गया है इससे पादपो में स्ट्रेस के विरुद्ध सहनशील तथा उत्पादन बनाए रखने की क्षमता का आकलन किया गया है प्रोफेसर राम लखन सिंह सिकरवार ने वृक्ष आयुर्वेद का विस्तृत वर्णन करते हुए कहा कि वनस्पतिकी के पिता ऋषि पराशर थे ना कि थियोफ्रास्टस। डॉ राकेश पांडे ने सीनोरहेबड़ाइटीस एलिगेंस निमेटॉड के माध्यम से औषधि सुगंध पादपो के एंटी एजिंग का प्रयोग कर नूरोडीजेनॉरेटिव रोगों पर नियंत्रण करने की विधि बताई मानव मस्तिष्क के सीरोटोनिन व डोपामीन के संतुलन को स्थापित रखने वाले एंजाइम को नियंत्रित करने का कार्य इस निमेटॉड के माध्यम से जा सकता है यह इन अंगों को बहु गुनीत करने का अद्भुत जैविक माध्यम है।
प्रोफेसर सी मनोहराचारी मैं सूक्ष्म जीवों के विषय में हमारे ज्ञान के अधूरेपन में शोध की आवश्यकताओं पर बोल दिया प्रोफेसर क गोस्वामी जी ने बायो मैग्नेटिक प्रभाव द्वारा गुणसूत्र की मॉडलिंग पर विस्तार से बताया राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान से आई वैज्ञानिक डॉक्टर विधु साने मैं जड़ों के र्किटेक्चर में ट्रांस क्रिएशन फैक्टर की भूमिका में जिन एडिटिंग के माध्यम से किए जाने वाले परिवर्तनों की व्याख्या की जिससे जलवायु परिवर्तनों की प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने में सफलता मिलेगी।
कार्यक्रम संयोजक डॉक्टर जितेंद्र सिंह कार्यक्रम सचिव सेशु लवानिया प्रोफेसर शैलेंद्र सिंह गौरव प्रोफेसर शैलेंद्र शर्मा प्रोफेसर बिंदु शर्मा डॉ लक्ष्मण नगर डीआर नितिन गर्ग डॉ दिनेश पवार डॉ अश्वनी शर्मा डॉ अजय शुक्ला डॉ अमरदीप सिंह डॉक्टर प्रदीप पवार डॉ अजय कुमार आदि मौजूद रहे।
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