इलमा अजीम
सर्वोच्च अदालत के जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विश्वनाथन ने ‘बुलडोजर न्याय’ पर सुनवाई के दौरान जो महत्वपूर्ण टिप्पणियां की हैं, उनका सारांश है कि कोई व्यक्ति, किसी भी केस में, आरोपित है अथवा सजायाफ्ता भी हो सकता है, किसी का बेटा अडिय़ल या अपराधी हो सकता है, लेकिन किसी भी सूरत में बुलडोजर चला कर उसका घर नहीं गिराया जा सकता। यह लोकतांत्रिक नहीं, मध्यकालीन, कबिलाई इंसाफ है। घर किसी के भी मानवाधिकार से जुड़ा है। यह मौलिक अधिकार भी है। आप ‘न्याय’ के नाम पर किसी का आशियाना नहीं छीन सकते। घर में आरोपी या अपराधी के अतिरिक्त और भी परिजन रहते हैं। वे अचानक सडक़ पर क्यों आएं? उन्होंने तो कोई अपराध नहीं किया। यह अपराध और दंड की किसी भी परिभाषा में नहीं है कि अपराधी के साथ-साथ उसके घरवाले भी सजा भुगतें। यदि निर्माण अवैध है, तो कानूनन कार्रवाई की जानी चाहिए। घर का ध्वस्त करना बिल्कुल भी कानूनन कार्रवाई नहीं है। अब समय आ गया है कि बुलडोजर एक्शन के मद्देनजर दिशा-निर्देश तय किए जाएं, जो देश भर में प्रभावी और लागू हों।’’ न्यायाधीश प्रथमदृष्टया बुलडोजर चला कर घर, मकान, संपत्तियां ढहा देने की सरकारी कार्रवाई को ‘कानूनसम्मत’ नहीं मानते। यह शुरुआती फैसले की बुनियादी सोच है और इसके जरिए शीर्ष अदालत ने ‘बुलडोजर न्याय’ पर हथौड़ा मारा है। अदालत में सुनवाई जारी है और आगामी तारीख 17 सितंबर है। न्यायिक पीठ ने सभी पक्षों के सुझाव मांगे हैं, ताकि अखिल भारतीय दिशा-निर्देश तय किए जा सकें। दरअसल भारत में ‘बुलडोजर कार्रवाई’ की शुरुआत उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने की। 2017 में सत्ता में आने के बाद उन्होंने बुलडोजर को कानून-व्यवस्था के साथ जोड़ दिया, ताकि अपराधी और माफिया खौफ खा सकें। योगी ने कुछ कुख्यात माफियाजनों के घरों, मकानों, संपत्तियों पर बुलडोजर चलवा कर उन्हें ‘मलबा’ बना दिया। उप्र के अलावा गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, असम और मप्र की भाजपा शासित सरकारें भी खूब बुलडोजर चलवा रही हैं। आश्चर्य है कि भारत सरकार को इन कवायदों में कुछ भी ‘अमानवीय’ नहीं लगा और न ही कोई निर्देश दिए गए कि ऐसा करना गैर-कानूनी है। 2020 और 2022 के बीच 12,640 कथित अवैध निर्माणों पर बुलडोजर चलवाए गए हैं। अब तो यह आंकड़ा और भी बहुत बढ़ गया होगा। सवाल है कि इस तरह आंख मूंद कर और विवेक को दफन कर सरकारें बुलडोजर चलवाती रहेंगी, तो बेकसूर होने की स्थिति में क्या मुआवजा देना पड़ेगा? क्या अदालतें मुआवजे के लिए सरकारों को बाध्य करेंगी? सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि आरोपी के घर पर बुलडोजर चलाना न्यायसंगत नहीं है। यहां तक कि दोषी पर भी अगर ऐसी कार्रवाई करनी हो तो उसमें भी कानूनी प्रक्रिया का पूरी तरह पालन किया जाना चाहिए।
सर्वोच्च अदालत के जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विश्वनाथन ने ‘बुलडोजर न्याय’ पर सुनवाई के दौरान जो महत्वपूर्ण टिप्पणियां की हैं, उनका सारांश है कि कोई व्यक्ति, किसी भी केस में, आरोपित है अथवा सजायाफ्ता भी हो सकता है, किसी का बेटा अडिय़ल या अपराधी हो सकता है, लेकिन किसी भी सूरत में बुलडोजर चला कर उसका घर नहीं गिराया जा सकता। यह लोकतांत्रिक नहीं, मध्यकालीन, कबिलाई इंसाफ है। घर किसी के भी मानवाधिकार से जुड़ा है। यह मौलिक अधिकार भी है। आप ‘न्याय’ के नाम पर किसी का आशियाना नहीं छीन सकते। घर में आरोपी या अपराधी के अतिरिक्त और भी परिजन रहते हैं। वे अचानक सडक़ पर क्यों आएं? उन्होंने तो कोई अपराध नहीं किया। यह अपराध और दंड की किसी भी परिभाषा में नहीं है कि अपराधी के साथ-साथ उसके घरवाले भी सजा भुगतें। यदि निर्माण अवैध है, तो कानूनन कार्रवाई की जानी चाहिए। घर का ध्वस्त करना बिल्कुल भी कानूनन कार्रवाई नहीं है। अब समय आ गया है कि बुलडोजर एक्शन के मद्देनजर दिशा-निर्देश तय किए जाएं, जो देश भर में प्रभावी और लागू हों।’’ न्यायाधीश प्रथमदृष्टया बुलडोजर चला कर घर, मकान, संपत्तियां ढहा देने की सरकारी कार्रवाई को ‘कानूनसम्मत’ नहीं मानते। यह शुरुआती फैसले की बुनियादी सोच है और इसके जरिए शीर्ष अदालत ने ‘बुलडोजर न्याय’ पर हथौड़ा मारा है। अदालत में सुनवाई जारी है और आगामी तारीख 17 सितंबर है। न्यायिक पीठ ने सभी पक्षों के सुझाव मांगे हैं, ताकि अखिल भारतीय दिशा-निर्देश तय किए जा सकें। दरअसल भारत में ‘बुलडोजर कार्रवाई’ की शुरुआत उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने की। 2017 में सत्ता में आने के बाद उन्होंने बुलडोजर को कानून-व्यवस्था के साथ जोड़ दिया, ताकि अपराधी और माफिया खौफ खा सकें। योगी ने कुछ कुख्यात माफियाजनों के घरों, मकानों, संपत्तियों पर बुलडोजर चलवा कर उन्हें ‘मलबा’ बना दिया। उप्र के अलावा गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, असम और मप्र की भाजपा शासित सरकारें भी खूब बुलडोजर चलवा रही हैं। आश्चर्य है कि भारत सरकार को इन कवायदों में कुछ भी ‘अमानवीय’ नहीं लगा और न ही कोई निर्देश दिए गए कि ऐसा करना गैर-कानूनी है। 2020 और 2022 के बीच 12,640 कथित अवैध निर्माणों पर बुलडोजर चलवाए गए हैं। अब तो यह आंकड़ा और भी बहुत बढ़ गया होगा। सवाल है कि इस तरह आंख मूंद कर और विवेक को दफन कर सरकारें बुलडोजर चलवाती रहेंगी, तो बेकसूर होने की स्थिति में क्या मुआवजा देना पड़ेगा? क्या अदालतें मुआवजे के लिए सरकारों को बाध्य करेंगी? सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि आरोपी के घर पर बुलडोजर चलाना न्यायसंगत नहीं है। यहां तक कि दोषी पर भी अगर ऐसी कार्रवाई करनी हो तो उसमें भी कानूनी प्रक्रिया का पूरी तरह पालन किया जाना चाहिए।
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