अपराध को लुभावना बनाता सोशल मीडिया
- क्षमा शर्मा
हमारे यहां बड़ी संख्या में बच्चे और किशोर सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं। हाल ही में दिल्ली पुलिस ने खुलासा किया कि बहुत से किशोर सोशल मीडिया पर तरह-तरह के हथियारों के साथ फोटो डालते हैं। वे इसे अपना विशेषाधिकार भी मानते हैं।
पुलिस ने ऐसे पचास सोशल मीडिया अकाउंट्स को चिन्हित किया, जिसमें अधिकतर किशोर और बच्चे हैं। इनकी उम्र बीस साल या उससे कम है। ये वीडियोज़ में खुलेआम हथियार लेकर लोगों को धमका रहे हैं। गोलियां चला रहे हैं। चाकू दिखा रहे हैं। पुलिस ने इन्हें दक्षिण दिल्ली के संगम विहार, टिगरी, फतेहपुर बेरी, महरौली, नेब सराय आदि स्थानों से पकड़ा है। पुलिस ने जब इन लोगों के सोशल मीडिया प्रोफाइल्स को स्कैन किया तो पाया कि ये लोग सालों से ऐसा कर रहे हैं। इन पचास लोगों की पहचान करने के लिए पुलिस ने करीब एक हजार सोशल मीडिया अकाउंट्स खंगाले और पाया कि इनमें से कई नकली हथियारों को भी दिखाते हैं व लोगों को डराते हैं।
पुलिस ने जब इनसे पूछताछ की तो पता चला कि ऐसा करके वे रोमांच महसूस करते हैं। इसके अलावा अपने इलाके में अपनी ताकत को दिखाना चाहते हैं। जो वीडियो ये पोस्ट करते हैं, उनमें ऐसे गाने भी होते हैं, जो हथियारों के प्रयोग को बढ़ा-चढ़ाकर ग्लैमराइज करते हैं। लोगों को हथियार रखने और उनका प्रयोग करने के लिए उकसाते हैं। पुलिस के पूछने पर कइयों ने खुश होते और हंसते हुए यह भी कहा कि इससे उनके फालोअर्स भारी संख्या में बढ़ते हैं। कभी यदि इन्हें पकड़ा भी जाता है, तो इनके साथी इनके जेल जाने, अदालतों में पेशी और जेल से बाहर आने के भी वीडियो बनाते हैं। जेल से बाहर आने पर जश्न मनाने के वीडियो भी बनाए जाते हैं और उन्हें पोस्ट किया जाता है। दूसरों का अपमान करने, डराने, धमकाने, मारपीट करने के भी वीडियो पोस्ट किए जाते हैं। इनके अनुसार ऐसे वीडियो इनके इलाके में इनका प्रभाव बढ़ाते हैं। इनमें से कइयों के तीस हजार तो एक के लाखों फालोअर्स तक हैं। ऐसे वीडियो पोस्ट करने के बाद फालोअर्स की संख्या बेतहाशा बढ़ जाती है। और बहुत से युवा इनकी नकल करने की कोशिश भी करते हैं।
यही नहीं, कई तो अपराध करने से पहले भी वीडियो पोस्ट करते हैं। ये अपराध हत्या करने तक के हो सकते हैं। एक युवा ने तो वीडियो में बताया कि वह यह अपराध करने जा रहा है, और कब करेगा इसकी जानकारी भी दी। यह भी कहा कि वह कब तक जेल से बाहर आ जाएगा। इन लोगों को बहुत-से कानूनों के बारे में भी पता है जैसे कि चाकू का प्रयोग करने पर आर्म्स एक्ट नहीं लग सकता। इनमें से अधिकांश वे हैं जिन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। माता-पिता ने भी इनकी कोई खास परवाह नहीं की। पुलिस इन्हें जागरूक करने का अभियान भी चला रही है।
ये सब बातें कितनी भयावह लगती हैं। पुलिस ने जो कारण बताए वे भी गौर करने लायक हैं। जैसे कि इन युवाओं ने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। यानी कि इन्हें लगा कि पढ़ने-लिखने से कोई फायदा नहीं है। फिर समाज में यह भी है कि जिसके पास हथियार हैं, जो मारपीट कर सकता है, उससे लोग यूं ही डरने लगते हैं। आखिर किसे अपनी जान प्यारी नहीं है। यूं भी हमारे तमाम प्रचार माध्यम हिंसा को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाते हैं।
हालीवुड से लेकर बालीवुड तक बात-बात में मारपीट और हथियारों का प्रयोग मामूली बात है। हम लोग चाहे जितना अहिंसा का जाप करें, लेकिन समाज हिंसा और हिंसक व्यक्ति की पूजा करता है। जैसा कि इन लोगों ने बार-बार कहा कि वे अपने इलाके में प्रभाव बढ़ाना चाहते थे। जाहिर है कि इनकी चाहना यही थी कि लोग इनसे डरें और इनका लोहा मानें। फिर सोशल मीडिया पर वीडियो पोस्ट करके ये रातोरात अपने फालोअर्स भी बना लेते थे और लोकप्रियता के नशे में थे। वैसे भी हिंसा और अपराध लोगों को बहुत आकर्षित करते हैं। वे कार्यक्रम जिनमें हिंसा और सैक्स का बोलबाला होता है, रातोरात चर्चित हो जाते हैं। ऐसी फिल्में भी खूब चलती हैं। यहां तक कि ऐसी किताबें और पत्रिकाएं भी एक जमाने में रिकार्डतोड़ बिक्री करती रही हैं। व्यापार का नियम मुनाफा ही होता है, वह चाहे जैसे कमाया जाए।
राजनीति भी इनसे परे नहीं है। बहुत से अपराधी जेल से ही चुनाव लड़ते हैं और जीत जाते हैं। बहुत से जीतने वालों के नाम ढेर सारे अपराध भी दर्ज हैं।
हर हाल में सफलता चाहिए। सफलता मिलने के बाद कोई यह नहीं देखता कि वह कैसे मिली क्योंकि दुनिया में सफलता के ग्राहक ढेर से हैं और असफलता का कोई नहीं। इसलिए अगर ये किशोर हथियारों, अपराध और मारपीट के जरिए सफलता की सीढ़ियां चढ़ना चाहते हैं, तो यह जरूर सोचना चाहिए कि आखिर ऐसा क्यों है। अपराध इतना लुभावना क्यों है।
दूसरी बात जो पुलिस ने बताई कि इन किशोरों को माता-पिता की देखभाल कभी नहीं मिली। हो सकता है कि माता-पिता का प्यार अगर इन्हें मिला होता, इनकी ठीक से देखभाल की गई होती, माता-पिता ने इन्हें समय दिया होता, इनकी सुनी होती तो शायद ये अपराध और हथियारों को अपना भगवान न मानते। ये भी गौर करने लायक बात है कि यदि इनके रहने के स्थानों पर नजर डालें या इनकी आर्थिक स्थिति को देखें, तो वह भी कोई अच्छी नजर नहीं आती। यानी कि इनके माता-पिता भी मामूली हैं। उनकी आर्थिक स्थिति भी ऐसी नहीं रही होगी कि सारा काम छोड़कर इन पर ध्यान दे सकें। लेकिन यह जरूर है कि जब इन्होंने पढ़ाई छोड़ी थी, उस वक्त घर वालों ने इन्हें ऐसा करने से रोका क्यों नहीं। अगर रोकते तो शायद ये ऐसा न करते।
अगर पुलिस की ही मानें तो न ये अपराध से डरते हैं, न जेल जाने से। बल्कि जेल जाकर भी शायद यह योजना बनाते रहते हैं कि बाहर निकलकर किस अपराध को कब अंजाम देंगे। किसे डराएंगे, किसे धमकाएंगे, किससे मारपीट और वसूली करेंगे।
एक समय वह था, जब लोग हथियारों के होने पर भी उनके सार्वजनिक प्रदर्शन से बचते थे। एक समय यह है कि हथियारों को चलाने और अपराध करने के वीडियो पोस्ट करने में अपने अहं को संतुष्टि मिलती है।
इन किशोरों और युवाओं को देखकर ऐसा तो हो ही सकता है कि माता-पिता को इस बारे में सचेत किया जाए कि वे अपने बच्चों की सही देखभाल करें। वे किस राह पर जा रहे हैं, उस पर नजर रखें। उन्हें कभी डांट से तो कभी प्यार से समझाएं क्योंकि अपराध का रास्ता किसी अच्छी जगह नहीं, अंधेरी गलियों में ही खुलता है, जहां से वापसी असम्भव होती है। कई बार मृत्यु से भी सामना हो सकता है। सोशल मीडिया की लत और रातोरात प्रसिद्ध हो जाने की चाहत, बिना किसी श्रम के, दुखद है।
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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