चुनाव सुधारः बढ़ी हैं उम्मीदें
 इलमा अजीम 
लोकतंत्र में कोई भी निर्वाचित सरकार उसके पूरे कार्यकाल तक जनता के हित में कार्य करती रहे, यही उम्मीद की जाती है। हमारे देश में पंचायत राज संस्थाओं से लेकर लोकसभा तक का कार्यकाल पांच साल के लिए तय है। लेकिन आज के दौर में जो चुनाव प्रक्रिया हमारे देश में है, उसमें लगभग हर साल किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहते हैं। इससे संसाधनों के साथ-साथ देश की प्रशासनिक व्यवस्थाओं पर भी भारी दबाव पड़ता है। बार-बार चुनावी आचार संहिता के तहत सरकार नई योजनाओं की घोषणा नहीं कर पाती और कई बार पहले से शुरू की गई योजनाएं भी रुक जाती हैं। इससे प्रशासनिक ढांचा प्रभावित होता है। चुनाव आयोग की तैयारी, मतदान सामग्री, कर्मचारियों का वेतन, सुरक्षा व्यवस्था और अन्य प्रशासनिक खर्च भी कम नहीं होते। इसीलिए यह कहा जा रहा था कि पूरे देश में एक साथ चुनाव से खर्च में काफी हद तक कटौती हो सकती है।



‘वन नेशन- वन इलेक्शन’ यानी एक देश- एक चुनाव के लागू होने से चुनावी आचार संहिता बार-बार लागू नहीं होगी, जिससे विकास कार्यों में तेजी आएगी और प्रशासनिक स्थिरता बनी रहेगी। केन्द्रीय कैबिनेट की ओर से ‘वन नेशन- वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव को मंजूरी देना भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में अहम कदम है। इसके लागू होने से देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ संपन्न होंगे, जिससे विभिन्न राज्यों में अलग-अलग समय पर होने वाले चुनावों का सिलसिला थम जाएगा। वित्तीय व्यवस्था पर बोझ कम होगा और सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि चुनावों के दौरान लागू होने वाली आचार संहिता से विकास कार्यों में आने वाले अवरोधों को कम किया जा सकेगा। इन्हीं चुनौतियों के समाधान के रूप में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ एक प्रभावी समाधान साबित होगा। यह प्रणाली न केवल देश की लोकतांत्रिक परंपरा को मजबूत करेगी बल्कि बार-बार चुनाव कराने की परिपाटी को भी समाप्त करेगी। 


अमरीका, फ्रांस, स्वीडन, दक्षिण अफ्रीका, फिलीपिन्स जैसे देशों में भी ऐसी ही चुनावी व्यवस्था है, जहां सरकार के विभिन्न स्तरों के लिए चुनाव एक साथ होते हैं। अब हिन्दुस्तान भी ऐसी ही प्रक्रिया का हिस्सा बन सकेगा, यह उम्मीद है। एक देश-एक चुनाव की प्रक्रिया शुरू होती है तो यह लोकतंत्र में क्रांतिकारी बदलाव तो होगा ही, इससे चुनावी सुधारों की दिशा में भी एक नया अध्याय लिखा जाएगा।

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