बदलना होगा नजरिया

 इलमा अजीम 
आत्महत्या की प्रवृत्ति आज वैश्विक स्तर पर बड़ी चुनौती बन गई है। यह घटना जीवन के हर क्षेत्र, हर आयु वर्ग और हर समुदाय को स्पर्श करती है। उसके सामाजिक, भावनात्मक और आर्थिक परिणाम होते हैं। ये अनेक स्तरों पर परिवार, परिजन और समुदाय सबको प्रभावित करते हैं। सवाल यह है कि इस जटिल विषय को हम किस नजरिए से देखते हैं, यह उसके प्रति हमारी प्रतिक्रिया को प्रभावित करता है। इसे लेकर चुप्पी तोडऩे और गोपनीयता की जगह खुलापन, समझदारी की दृष्टि और समर्थन का हाथ बढ़ाने की कोशिश से उन लोगों का जीवन सुरक्षित रह सकेगा जो इस प्राणघातक मनोरोग की जद में आ सकते हैं और जिनको मदद की जरूरत है। आत्महत्या को रोका जा सकता है। 



इस अनहोनी को टाला जा सकता है, बशर्ते समय रहते इस दिशा में आगे बढऩे वाले व्यक्ति से मिलने वाले चेतावनी के संकेत पकड़े जा सकें और उचित कार्रवाई की जाए। इसके लिए आत्महत्या के इर्द-गिर्द फैले पसरे आख्यान को बदलना बेहद जरूरी है ताकि नए ढंग से सोचा जा सके और जरूरी पहल को अंजाम दिया जा सके। वस्तुत: व्यक्तियों, संस्थाओं, संगठनों के साथ सरकारों को भी मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्या के विषय में खुले ईमानदार विमर्श की आवश्यकता है। इससे सबकी समझ बढ़ेगी और मानसिक स्वास्थ्य के लिए संसाधन- सहयोग जुटाने में मदद मिलेगी। विभिन्न क्षेत्रों के बीच आपसी सहकार से हम एक मानवीय संवेदना वाला समाज रच सकेंगे, जहां आत्महत्या रोकी जा सके और हर व्यक्ति खुद को मूल्यवान समझ सके। समाज भी उसे ठीक तरह से समझ कर बर्ताव कर सकेगा। आत्महत्या की रोकथाम एक सामूहिक जिम्मेदारी है। यह शिक्षा, खुली बातचीत और एक दूसरे के लिए सहयोग का हाथ बढ़ाने से ही होगा। हम सब मिल कर ऐसी दुनिया बना सकते हैं, जहां मानसिक स्वास्थ्य को महत्व मिले।

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