वंचितों की उम्मीद जगी
इलमा अजीम
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने एक अहम फैसले में यह साफ कर दिया है कि राज्यों को आरक्षण व्यवस्था में कोटे के भीतर भी कोटा बनाने का अधिकार है। यानी राज्य सरकारें अब अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग में भी आरक्षण के लिए अलग-अलग श्रेणियां बना सकती हैं। इस फैसले के बाद इन वर्गों में हाशिए पर पड़ी जातियों को आरक्षण का फायदा मिलने की उम्मीद है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि यह बात भी लगातार उठाई जा रही थी कि समुचित अवसर नहीं मिलने के कारण आरक्षित अजा-जजा वर्ग में भी ऐसी कई जातियां हैं जो सामाजिक और आर्थिक तौर पर पिछड़ेपन से उबर नहीं पा रही हैं। हमारे देश में आरक्षण तय करते समय भी इसी बात की जरूरत महसूस की गई थी कि आरक्षण व्यवस्था से समाज के वंचित और उपेक्षित वर्ग-समुदाय को समाज की मुख्यधारा में आने का मौका मिलेगा। ऐसा हुआ भी। पर इस तरह की आवाजें भी लगातार उठने लगी हैं कि एससी-एसटी वर्ग में कुछ लोगों को ज्यादा फायदा मिल रहा है और कुछ तक आरक्षण व्यवस्था का अंश तक नहीं पहुंच पा रहा है। इसको लेकर इन आरक्षित वर्गों में ही विद्रोह के भाव भी समय-समय पर देखने को मिलते रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले से वर्ष 2004 के अपने पुराने फैसले को पलट दिया है जिसमें कहा गया था कि राज्य सरकारें आरक्षण के लिए अनुसूचित जातियों व जनजातियों की सब-कैटेगरी नहीं बना सकतीं। सुप्रीम कोर्ट ने अब कहा है कि राज्यों को सब-कैटेगरी देने से पहले एससी और एसटी श्रेणियों के बीच क्रीमीलेयर की पहचान करने के लिए एक पॉलिसी बनानी चाहिए। जाहिर है कि फैसले को धरातल पर लागू कराने के लिए राज्यों को काफी काम करने की जरूरत है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही कह दिया है कि सब-कैटेगरी का आधार उचित होना चाहिए। राज्य अपनी मर्जी से या राजनीतिक आधार पर सब-कैटेगरी तय नहीं कर सकें इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक सुरक्षा का अधिकार अपने पास सुरक्षित रखा है। इसके बावजूद राज्यों के लिए सब-कैटेगरी की पहचान करने व उनके लिए आरक्षण की सीमा तय करने का आधार तय करने की बड़ी चुनौती रहने वाली है। आरक्षण की सब-कैटेगरी तय करने के लिए सरकारों के पास संबंधित जाति व वर्ग का समुचित डेटा उपलब्ध होना आसान नहीं होगा। न ही इस तरह का डेटा तय करने का फिलहाल कोई आधार है। ऐसे में पहले जमीनी सर्वे करने की आवश्यकता होगी उसके बाद ही कोटे में कोटे की व्यवस्था का न्यायसंगत पालन हो पाएगा अन्यथा विवाद उठने स्वाभाविक हैं।
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