धर्म गुरु बनें पथ प्रदर्शक

- लक्ष्मीकांता चावला
पूरा विश्व, विशेषकर भारत देश और भारत देश में भी हिंदू समाज बांग्लादेश में जो कुछ हो रहा है, उसे देखकर बहुत चिंतित है। हृदय नहीं, आत्मा तक विचलित है। जिस प्रकार बांग्लादेश में हिंदू समुदाय को चुन-चुन कर मारा जा रहा है, महिलाओं के साथ दुव्र्यवहार हो रहा है, घर लूटे जा रहे हैं, केवल लूटे ही नहीं जा रहे अपितु लूटने वाले सिर पर लूट का सामान रखे हाथों में कीमती वस्तुएं उठाए ऐसे नाचते-गाते जा रहे हैं, जैसे उन्हें कोई बहुत बड़ी दौलत अनायास मिल गई। जैसे उन्होंने अपने किसी बड़े दुश्मन का नाश कर दिया। याद रखना होगा कि आग आग है। दूर कहीं आग लगी है, यह देखकर निश्चिंत नहीं हो सकते, क्योंकि कोई भी एक चिंगारी आपके घर तक पहुंचकर जला सकती है।
अफगानिस्तान में जो कुछ हुआ, वह भारतीय समाज के लिए बहुत ही दुख और चिंता का विषय रहा। स्थिति यह हो गई कि हमें अपने गुरुद्वारा से श्री ग्रंथ साहिब को सुरक्षित उठाकर लाना पड़ा, जिसमें भारत सरकार का विशेष सहयोग और योगदान रहा। वहां का सिख-हिंदू समाज भी बेबस होकर वहां से आ गया। पाकिस्तान में शायद ही कोई ऐसा सप्ताह जाता होगा जिस दिन हमारी बेटियों पर कट्टरपंथी मुस्लिमों का हमला नहीं होता। बेचारा बेबस बाप चौक चौराहे में छाती पीटता हुआ पुकारता है, दुहाई देता है, उसकी दोनों बेटियों को कोई वापस ले आए, पर अरण्य रौदन की तरह उसकी चीखें कहीं हवा में गायब हो गईं। मंदिर तोड़े गए, गुरुद्वारे अपवित्र किए गए, पर हम भारतीय विवश थे, कुछ न कर पाए। आश्चर्य यह है कि एक सौ करोड़ से ज्यादा हमारा धार्मिक समाज अपने पूजा स्थानों में पाठ पूजा करके अपने परिवार के लिए सौगातें मांगकर सुरक्षा मांग कर मंदिरों, पूजा स्थानों से आ गया। दो आंसू उनके लिए नहीं बहाए जो विधर्मियों के कब्जे में सिसक रही हिंदू बेटियां थीं।

अब तो अति हो गई। इंग्लैंंड में, कनाडा में, आस्ट्रेलिया में, यहां तक कि अमरीका में भी हमारे श्रद्धा केंद्रों पर हमले होने लगे। हम खामोश रहे, जिसका परिणाम आज बांग्लादेश में देखने को मिल रहा है, पर आज भी हिंदुस्तान का हिंदू समाज जागा नहीं। बुद्धिजीवी मुसलमान भी खामोश हैं। मुस्लिम धर्म गुरुओं ने एक शब्द न तो कभी उनके लिए बोला जो सिर तन से जुदा की बात करते थे और न ही बांग्लादेश में हिंदुओं पर कहर ढहाने वालों को समझाने के लिए। मुझे उनसे शिकायत करने का अधिकार भी क्या है? मानवीय अधिकार तो है, राष्ट्रीय अधिकार भी है, क्योंकि हम भारत के मूल धर्म के अनुयायी हैं। विश्व के कल्याण की बात करते हैं। आत्मवत सर्वभूतेषू की दुहाई देते हैं, पर दुनिया हमारे इन जयकारों को नहीं सुनती। सीधी सी बात है वीर भोग्या वसुंधरा।
दुखद आश्चर्य यह है कि हमारे भारत में लाखों लाखों ऐसे मंदिर, पूजा स्थान, सभी धार्मिक संप्रदायों के श्रद्धा केंद्र हैं। मैं यहां मस्जिदों की बात नहीं कर रही, लेकिन वैष्णव, शाक्त, शैव, आर्य समाज, निरंकारी, नामधारी, जैन, बौद्ध आदि भक्तों के अनुयायियों के श्रद्धा केंद्र हैं। धन संपदा के अकूत भंडार भी वहां हैं। हम ईश्वर के उस रूप की पूजा करते हैं जो सशस्त्र हैं, राक्षसों का संहारक है। महिषासुर मर्दनी हमारा आदर्श है। हजारों हजारों राक्षसों का संहार करने वाले भगवान श्रीकृष्ण हमारे इष्ट हैं। ‘निशिचर हीन करहूं मही, भुज उठाई प्रण कीन’ की अटल अमिट घोषणा प्रतिदिन सुनने को मिलती है। हमारी प्रात: राम नाम के साथ प्रारंभ होती है और रात्रि विश्राम राम राम कहकर ही किया जाता है।
प्रश्न यह है कि राम का नाम लेने वाले, कृष्ण जी की लीलाओं का गान करने वाले यह क्यों भूल गए कि बचपन में ही श्रीराम जी और श्रीकृष्ण जी ने कितने असुरों का संहार किया था। हम क्यों ऐसे निष्क्रिय हो गए? हमारे मंदिरों से बजरंग बलि और हर हर महादेव की ध्वनि तो गूंजती है, पर शस्त्र उठाकर उनसे मुकाबले के लिए तैयारी बहुत कम लोग दिखाई देते हैं, जो दुनिया के किसी देश में उनका संहार करते हैं जो हिंदू हैं, उनकी हालत वैसी ही है जैसा विभीषण ने कहा था : सुनहू पवनसुत रहनि हमारी जिनी दसनन महू जीभ बिचारी, अर्थात दांतों के बीच जो जीभ की हालत है, वही उसकी है।
आज बांग्लादेश, पाकिस्तान में बसे हिंदू-सिख समाज की हालत भी वही है। शक्ति हमें देनी है। जिन लोगों को हिंदू राष्ट्र के नाम से कष्ट होता है, उनको यह जान लेना चाहिए कि हिंदू राष्ट्र का अर्थ किसी का सिर तन से जुदा करना नहीं, बल्कि हिंदू की रक्षा करना है। पूरे विश्व को हिंसा से बचाना है, पर हम आज स्वयं ही हिंसा का शिकार हो रहे हैं। शिकायत भी किससे की जाए। सेना अपना काम कर रही है। अर्धसैन्य बल प्रचुर मात्रा में हैं, पर हर राष्ट्र की अपनी सीमा है। मेरा प्रश्न उनसे है जो करोड़ों साधु-संत, मठाधीश, कथावाचक, महंत, संत और सबसे ऊपर हमारे परम पूजनीय शंकराचार्य जी जगतगुरु विराजमान हैं। संकट की इस घड़ी में उनका संदेश जगत को क्यों नहीं मिल रहा। हिंदू उनकी ओर आशा भरी नजरों से देख रहा है। क्या हमारे मठ, मंदिर, पूजा स्थान केवल स्वर्ण भंडार इकट्ठा करने और सोने के कलश सजाने के लिए हैं? क्या हमारे यह श्रद्धा केंद्र कभी उनकी रक्षा कर सकेंगे जो प्रतिदिन श्रद्धा के साथ उनकी शरण में जाते हैं।
आज का प्रश्न तो यह है कि संकट की घड़ी में क्या अपनी रक्षा कर सकेंगे? ऐसा लगता नहीं, क्योंकि इस्कान जैसे विशाल संगठन के मंदिर लूटे और जलाए गए। उन्होंने 1971 के युद्ध में लाखों लाखों बांग्लादेशियों को भोजन देकर उनका पालन पोषण किया था, शरण दी थी, पर सुरक्षा वह भी नहीं दे सके। क्या बार बार कश्मीर के मंदिरों का इतिहास दोहराया जाएगा। क्या फिर सोमनाथ के मंदिर का दुखांत दुर्भाग्य से देखने को मिलेगा? मैं जानती हूं कि हमारे देश में, हमारी सरकार, हमारी सुरक्षा पंक्ति मजबूत है, पर जनता मजबूत नहीं होगी तो कैसे बनेगा। अगर हमारे शंकराचार्य सरीखे धर्म गुरु एक आवाज दें तो मंदिर मंदिर में नवयुवक राम जी और कृष्ण जी की तरह शंकर और दुर्गा की तरह शस्त्र शिक्षा लेंगे और जो हमारे जीवन के, आस्था के, धर्म के विरोधी हैं, उनसे रक्षा भी करेंगे और उनको उनकी भाषा में उत्तर भी देंगे। पर अफसोस कल जब बांग्लादेश त्रस्त था, बेटियां सुरक्षा के लिए छिप रही थीं, मर रही थीं, उस समय अपने ही देश के लाखों लोग वे भी थे जो किसी मजार पर, किसी कब्र पर उनके आगे ही नाक रगड़ रहे थे जो गाय को खाते रहे, जो गाय को काटते रहे।
मैं जानती हूं कि अधिकतर कब्रों और मजारों में कोई शरीर नहीं है, केवल ईंट पत्थर का ढांचा करके अंध श्रद्धालु और स्वार्थी समाज के सिर झुकाने के लिए स्वार्थी लोगों ने यह सब ढांचे खड़े कर दिए। हमारा समाज यह भूल गया कि पूरे अरब देशों और मुस्लिम समाज में कब्र पूजा अपराध है।


अरब देशों में कोई पक्की कब्र नहीं, क्योंकि वह उसे भी मूर्ति मानते हैं, पर यहां की हालत तो यह है : ‘जाका गुरु भी अंधलाए चेला खरा निरंध। अंधे अंधा ठेलेया दोनों कूप पड़ंत।।’ संसद में भी दुर्भाग्यपूर्ण दृश्य देखने को मिला, जब वक्फ बोर्ड में संशोधन का विरोध उन्होंने किया जिनके सामने देश नहीं, सत्ता है। जिस भाषा का प्रयोग सलमान खुर्शीद ने किया तथा कुछ अन्य कांग्रेस नेताओं ने किया वह देशवासियों की पीठ में छुरा घोंपने जैसा था, पर उन्होंने वह काम सरेआम किया, उनको तालियां बजाने वाले भी मिल गए।
प्रश्न यह है कि कब तक पिटते रहेंगे, लुटते रहेंगे, अस्मत की चीख पुकार सुनने को मिलेगी, पर हम केवल उस प्रभु का नाम लेंगे जिसने नि_लों के लिए नहीं अपितु कर्मशीलों के लिए यह संदेश दिया था कि जुल्म करना पाप है तो जुल्म सहना भी पाप है। इस पाप से मुक्ति दिलवाएं हमारे देश के धर्म गुरु, अन्यथा जनता को स्वयं ही अपना गुरु बन जाना चाहिए। हिंदुओं की रक्षा करना जरूरी है।

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