बने राष्ट्रीय नीति
 इलमा अजीम 
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने जेनेटेकली मोडिफ़ाइड यानी जीएम सरसों की भारत में व्यावसायिक खेती करने की सरकारी मंजूरी के खिलाफ याचिका पर खंडित फैसला दिया। जहां न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना का आकलन था कि जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति यानी जीईएसी की 18 और 25 अक्तूबर, 2022 को सम्पन्न जिस बैठक में इसकी मंजूरी दी गई, वह दोषपूर्ण थी क्योंकि उसमें स्वास्थ्य विभाग का कोई सदस्य नहीं था और कुल आठ सदस्य अनुपस्थित थे। दूसरी ओर, न्यायमूर्ति संजय करोल का मानना था कि जीईएसी के फैसले में कुछ गलत नहीं है। उन्होंने जीएम सरसों फसल को सख्त सुरक्षा उपायों का पालन करते हुए पर्यावरण में छोड़ने की बात जरूर की। हालांकि, दोनों न्यायाधीश इस बात पर एकमत थे कि केंद्र सरकार को जीएम फसलों पर एक राष्ट्रीय नीति तैयार करनी चाहिए। अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष जाएगा।



वैसे जीईएसी आनुवंशिक रूप से संवर्धित फसलों के लिए देश की नियामक संस्था है। लेकिन दो जजों की पीठ ने निर्देश दिया कि चार माह के भीतर केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय जीएम फसल के सभी पक्षों के परामर्श से जीएम फसलों पर राष्ट्रीय नीति तैयार करे जिनमें कृषि विशेषज्ञों, जैव प्रौद्योगिकीविदों, राज्य सरकारों और किसान प्रतिनिधियों सहित हितधारक शामिल हों। किसी से छुपा नहीं कि भारत में खाद्य तेल की जबरदस्त मांग है। साल 2021-22 में 116.5 लाख टन खाद्य तेलों का उत्पादन करने के बावजूद भारत को 141.93 लाख टन का आयात करना पड़ा। अनुमान है, अगले साल 2025 -26 में यह मांग 34 मिलियन टन तक पहुंच जाएगी। हमारे खाद्य तेल के बाजार में सरसों तेल की भागीदारी 40 फीसदी है। दावा किया गया कि यदि सरसों उत्पादन में जीएम बीज का इस्तेमाल करेंगे तो फसल 27 प्रतिशत अधिक होगी, जिससे तेल आयात खर्च कम होगा। हमारे देश में अभी तक कानूनी रूप से केवल बीटी कपास एकमात्र जीएम स्वीकृत फसल है। बीते 17 सालों में कपास के बीज दावों पर खरे उतरे नहीं। बीटी बीज देशी बीज की तुलना में बहुत महंगा है और इसमें कीटनाशक का इस्तेमाल करना ही पड़ा। फसल ज्यादा नहीं, लेकिन हर साल बीज खरीदना मजबूरी हो गई। विकसित देशों में भी ऐसे बीजों से उर्वर क्षमता व पौष्टिक तत्व कम हुए हैं। अदालतें जब जीएम बीजों पर कोई फैसला देंगी तो जीनोम एडिटेड प्लांट्स के नाम से ये बीज बाजार में बिक रहे होंगे। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार गठित होने वाली कमेटी में इस नई तकनीक को यूरोपियन यूनियन की तरह जीएम ही मानना होगा।

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