महिला सुरक्षा के बंदोबस्त
इलमा अजीम
कोलकाता के सरकारी आरजी कर मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में महिला डॉक्टर के यौन उत्पीडऩ व हत्या को लेकर देश भर के लोगों में गुस्सा है। घटना की जांच के आदेश दे दिए गए हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने यहां तक कहा है कि वे मामले की जांच सीबीआई को सौंपने के लिए तैयार हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि हमारे यहां कार्यस्थल आखिर इतने असुरक्षित क्यों रहने लगे हैं? अस्पतालों में ऐसी घटनाएं होना ज्यादा गंभीर है। अस्पताल जैसे स्थान पर जहां मरीज खुद डॉक्टरों के भरोसे रहते हैं वहां कोई महिला डॉक्टर हैवानियत का शिकार हो जाए तो कानून-व्यवस्था पर सवाल उठना लाजिमी है। प्रारंभिक जांच में चिकित्सक के साथ बलात्कार की पुष्टि हो गई है। आरोपी को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है।
आरोपी अस्पताल से ही जुड़ा संविदा आधारित सिविक वालंटियर है। लेकिन कहा यह भी जा रहा है कि इस जघन्य काण्ड में कुछ और लोग भी शामिल हो सकते हैं। इसे अस्पताल परिसर में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर बड़ी चूक ही कहा जाएगा। क्योंकि सुरक्षा बंदोबस्त मजबूत होते तो ऐसी वारदात रोकी जा सकती थी। घटना को लेकर देशभर के रेजिडेंट डॉक्टर सोमवार से कार्य बहिष्कार या धरना-प्रदर्शन पर उतर गए हैं। इंडियन मेडिकल एसोसियेशन ने भी आंदोलन की चेतावनी दे रखी है। चिकित्सक समुदाय को भी यह ध्यान रखना होगा कि आंदोलन की वजह से चिकित्सा सेवाएं बाधित नहीं हों। न केवल पश्चिम बंगाल बल्कि देश भर के अस्पतालों के साथ-साथ तमाम कार्यस्थलों पर सुरक्षा बंदोबस्त मजबूत हों, इसकी व्यवस्था करनी ही होगी। समय के बदलाव के साथ बड़ी संख्या में महिलाएं रात्रिकालीन ड्यूटी करने लगी हैं। ऐसी कई घटनाएं सामने आती रही हैं जब ड्यूटी के दौरान या फिर ड्यूटी पर आते-जाते वक्त महिलाएं समाजकंटकों की कुदृष्टि का शिकार हो जाती हैं। कानून व्यवस्था का खौफ होगा तो कार्यस्थल स्वत: ही सुरक्षित होंगे। महिलाओं की सुरक्षा को लेकर लचर इंतजामों का फायदा उठाकर ही यौन अपराधी सक्रिय होते हैं। ऐसे में कामकाजी महिलाओंं को कार्यस्थलों पर ही नहीं, आवागमन के मार्गों पर भी सुरक्षा को लेकर आश्वस्त किया जाना चाहिए।
No comments:
Post a Comment