स्वास्थ्य-शिक्षा में निवेश
इलमा अजीम 
दुनिया उथल-पुथल के दौर से गुजर रही है। रूस-यूक्रेन संघर्ष तीसरे वर्ष भी जारी है और इसके खत्म होने के कोई संकेत नहीं हैं। इजरायल-गाजा युद्ध में बमबारी से लगभग 40 हजार लोग मारे जा चुके हैं। अमेरिका में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हमले में बाल-बाल बच गए। यूनाइटेड किंगडम के चुनाव में कंजरवेटिव पार्टी 15 साल के बाद सत्ता से बाहर हो गई और लेबर पार्टी को सिर्फ एक तिहाई वोट के साथ लगभग दो तिहाई बहुमत हासिल हुआ। भू-राजनीतिक उथल-पुथल के इस दौर में ही दुनिया की सबसे बड़ी आईटी विफलता-माइक्रोसॉफ्ट विंडोज में तकनीकी समस्या का सामना भी हमें करना पड़ा। माइक्रोसॉफ्ट आउटेज से प्रभावित नहीं होने वाले देशों में चीन, और काफी हद तक भारत शामिल रहे। ऐसे विचित्र तथ्यों में शायद कुछ सूक्ष्म संदेश है! वैश्विक मैक्रोइकोनॉमिक्स की स्थिति यह है कि बड़ी अर्थव्यवस्थाएं अभी भी मुद्रास्फीति से जूझ रही हैं। मौद्रिक सख्ती जारी है, भले ही उद्योग धन की आपूर्ति में वृद्धि और कम ब्याज दरों की मांग करते रहें। ऊंची ब्याज दरों के चलते औद्योगिक और आवास में निवेश उतनी तेजी से गति नहीं पकड़ रहा, जितना रोजगार को समर्थन देने के लिए होना चाहिए। बेरोजगारी की चिंताएं आप्रवासी विरोधी भावनाओं को मजबूत बना रही हैं। इससे संरक्षणवादी भावना भी उत्पन्न हुई है। उथल-पुथल वाले इस वैश्विक परिदृश्य में भारत की अर्थव्यवस्था मजबूती, लचीलापन और स्थिरता लिए हुए है। कोविड के बाद के चार वर्षों में औसत विकास दर लगभग 7.5 और मुद्रास्फीति 4 से 5 प्रतिशत के आसपास रही है। निर्यात का भी प्रदर्शन अच्छा है, विशेषकर सॉफ्टवेयर समेत सर्विस सेक्टर में। डॉलर का स्टॉक भी स्वस्थ स्तर पर है। साथ ही राजकोषीय घाटे का अनुपात भी लगातार कम हो रहा है। उपभोक्ता व्यय सुस्ती के दौर में है। नई फैक्ट्रियां लगाने और उनके विस्तार में निजी निवेश खर्च की भी स्थिति ऐसी ही है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी चुनौतियों का सामना कर रही है। नेशनल सैम्पल सर्वे के नवीनतम आंकड़े इसके गवाह हैं। गरीब समृद्ध हों, इसके लिए न केवल कल्याणकारी कार्यों में खर्च की जरूरत है, बल्कि रोजगार के अवसरों का सृजन भी आवश्यक है। दीर्घकालिक समृद्धि का सबसे महत्त्वपूर्ण निर्धारक पहलू मानव पूंजी, यानी स्वास्थ्य और शिक्षा में निवेश किया जाना है।

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