सख्त बने कानून
इलमा अजीम
बिहार में फिर कई पुल ध्वस्त हो गए। एक सप्ताह के भीतर एक के बाद एक पुलों का गिरना सार्वजनिक निर्माण में व्याप्त भ्रष्टाचार व धांधलियों को बेनकाब करता है। लगातार धड़ाधड़ गिरते पुल न केवल ठेकेदारों बल्कि उन्हें संरक्षण देने वाले राजनेताओं पर भी सवालिया निशान लगाते हैं। आरोप है कि घटिया सामग्री के कारण पुल बनने से पहले गिर गया। बिहार में निर्माण कार्यों में धांधलियों का आलम यह है कि पिछले पांच सालों के दौरान दस पुल निर्माण के दौरान या निर्माण कार्य पूरा होते ही ध्वस्त हो गए। जाहिर है ऊपर से नीचे तक की कमीशनखोरी और जनता की कीमत पर मोटा मुनाफा कमाने वाले ठेकेदारों की मनमानी जारी है। तभी निर्माण कार्य में घटिया सामग्री का उपयोग बेखौफ किया जा रहा है। यदि शासन-प्रशासन का भय होता तो पुल यूं धड़ाधड़ न गिर रहे होते। सवाल ये उठता है कि आजादी के सात दशक बाद भी हम देश की विकास परियोजनाओं की गुणवत्ता की निगरानी करने वाला तंत्र क्यों विकसित नहीं कर पाए? यह जरूरी है कि सार्वजनिक निर्माण गुणवत्ता का हो और उसका निर्माण कार्य समय पर पूरा हो। इन योजनाओं को इस तरह डिजाइन किया जाए, जिससे कई पीढ़ियों को उसका लाभ मिल सके। दरअसल, सार्वजनिक निर्माण की गुणवत्ता की यदि समय-समय पर जांच होती रहे तो ऐसे हादसों से बचा जा सकता था। इन हादसों की वजह यह भी है कि राजनेताओं व दबंगों के गठजोड़ से ऐसे लोगों को ठेके मिल जाते हैं, जिनको न तो बड़े निर्माण कार्यों का अनुभव होता है और न ही गुणवत्ता को लेकर किसी तरह की प्रतिबद्धता होती है। निस्संदेह, यह नागरिकों के जीवन से जुड़ा गंभीर मसला है। इसलिये सरकार और निर्माण कार्य से जुड़ी एजेंसियों को इसे गंभीरता से लेना चाहिए। सार्वजनिक निर्माण में भ्रष्टाचार रोकने के लिये सख्त कानून बनाये जाएं।
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