शिक्षा में नवाचार
 इलमा अजीम

शिक्षा मंत्रालय को राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की इकाई ‘परख’ ने जो रिपोर्ट सौंपी है, यदि उस पर अमल होता है तो भविष्य में स्कूली शिक्षा में एक और नवाचार देखने को मिल सकता है। ऐसा हुआ तो बारहवीं कक्षा के नतीजों में कक्षा 9 से 11 तक की परीक्षाओं के प्राप्तांकों को भी शामिल किया जा सकता है। तर्क यह दिया जा रहा है कि बच्चों के बारहवीं के नतीजों में इससे पूर्व की तीन कक्षाओं में की गई मेहनत भी दिखनी चाहिए। वहीं शिक्षा मंत्रालय ने छठी से आठवीं कक्षा तक ‘बैगलेस डे’ की गाइडलाइन भी जारी कर दी है जिसके तहत साल में कोई भी दस ‘बैगलेस डे’ में पढ़ाई की जगह विद्यार्थियों को वोकेशनल एक्सपर्ट के साथ इंटर्नशिप करनी होगी। स्कूल में बालकों की निरंतर उपस्थिति व पढ़ाई में उनकी उपलब्धियों से जुड़े इस फैसले को शिक्षा में नवाचार से जोडक़र देखा जा सकता है। लेकिन नवाचारों के नाम पर शिक्षा को प्रयोगशाला बना देना भी उचित नहीं कहा जा सकता। अब तक के अनुभव बताते हैं कि कभी परीक्षा प्रणाली तो कभी पाठ्यक्रमों में बदलाव की बातें होती रही हैं तो कभी बच्चों को परीक्षाओं के जाल से मुक्त करने की। लेकिन कहीं इन प्रयासों में राजनीति शुरू हो जाती है तो कहीं शुरू किए गए प्रयागों पर अमल या तो हो ही नहीं पाता या फिर आधा-अधूरा होकर रह जाता है। हैरत की बात यह है कि एक तरफ स्कूली स्तर की परीक्षाओं में अंकों के बजाय ग्रेडिंग सिस्टम को प्राथमिकता दी जाती है, दूसरी तरफ इन्हीं अंकों को बारहवीं के नतीजों का आधार बनाने की बात होती है। शिक्षा मंत्रालय का यह भी मानना है कि ‘बैगलेस डे’ रखे जाने से स्कूलों में पढ़ाई के लिए आनंददायक और तनाव मुक्त वातावरण बनाने में मदद मिलेगी। इस अवधि में विद्यार्थी स्थानीय बढ़ई, माली, कुम्हार आदि वोकेशनल एक्सपर्ट के साथ इंटर्नशिप कर सकेंगे। इससे पहले भी बच्चों पर बस्ते का बोझ कम करने व सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ाने की योजनाएं जिस तरह से लागू हुईं वे खास छाप नहीं छोड़ पाईं। बच्चों को व्यावसायिक शिक्षा देने का विचार भी नया नहीं है। सत्तर और अस्सी के दशक में भी स्कूलों में बच्चों को रोजगारोन्मुख शिक्षा दी जाती थी। लेकिन काफी संसाधन झोंकने के बावजूद यह योजना भी बहुत उपयोगी परिणाम देने में नाकाम ही रही। बार-बार बदलाव के बजाय ऐसी शिक्षण व्यवस्था लागू होनी चाहिए जो खेल-खेल में पढ़ाई के साथ बच्चों की बुनियाद को मजबूत कर सके। उन क्षेत्रों में, जहां संसाधनों की कमी है, वहां तो बुनियाद की इस मजबूती की तरफ विशेष ध्यान देना ही होगा।

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