मौसम के तीव्र बदलाव
 इलमा अजीम 
इस बार अच्छी बारिश की संभावनाओं के बीच अचानक कम समय में ज्यादा बारिश का खतरा भी बना हुआ है। जलवायु परिवर्तन के कारण विशेषज्ञ लगातार ‘एक्स्ट्रीम वेदर’ की आशंका जता रहे हैं। कम समय में काफी ज्यादा बारिश, अचानक सामान्य से ज्यादा गर्मी या कुछ दिनों के लिए अत्यधिक ठंड की स्थिति अब पहले से ज्यादा होने लगी है। तेज गर्मी से बेहाल लोगों को देश भर में समय से करीब छह दिन पहले ही छा गए मानसून के बादलों ने काफी राहत दी है। लेकिन, कई स्थानों से बाढ़ की परेशानी और वर्षाजनित हादसों की खबरें भी आने लगी हैं। असम की बाढ़ में पचास लोग मारे गए तो महाराष्ट्र में पिकनिक मनाने गया पूरा परिवार ही सूखी नदी में पानी आने से बह गया। इसलिए अब यह सवाल जरूरी हो गया है कि ‘एक्स्ट्रीम वेदर’ से पैदा होने वाले हालात के लिए हम कितने तैयार हैं? मौसम संबंधी दुश्वारियों ने निपटने के लिए सरकारी स्तर पर तैयारी तो हर बार होती ही है लेकिन जैसी होनी चाहिए वैसी नहीं हो पाती। अक्सर सांप निकल जाने के बाद लाठी पीटने जैसी स्थिति ही दिखती है। इसलिए समयबद्ध उपाय होने चाहिए। न सिर्फ शहरी विकास योजनाओं के मामलों में बल्कि स्वास्थ्य क्षेत्र में भी यह देखा जाना चाहिए कि क्या हम तैयार हैं? बारिश के मौसम में अस्पताल पहुंचने वालों की संख्या अचानक बढ़ जाती है। यह मौसम संक्रमण फैलने के लिए अनुकूल होता है। कई बार संक्रमण जानलेवा भी हो जाता है। जरूरत का अनुमान लगाकर दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने का मामला हो या दूर-दराज के इलाकों में डॉक्टर और अस्पताल की जरूरत पूरी करने का, इस पर समय रहते ही ध्यान देना होगा। पिछले कुछ सालों में तकनीकी तरक्की ने नए-नए रास्ते खोले हैं। उनका इस्तेमाल कर न सिर्फ कृषि बल्कि स्वास्थ्य क्षेत्र में भी सुविधाओं का उचित विस्तार हो सकता है। डेटा विश्लेषण से देश की व्यापक मैपिंग हो सकती है कि कहां, कैसी जरूरत है और उसके आधार पर उपाय सुनिश्चित किए जा सकते हैं। यह भी देखा गया है कि स्मार्ट शहरों की स्मार्टनेस भी बारिश में धुल जाती है, क्योंकि शहरी योजनाओं में ‘एक्स्ट्रीम वेदर’ से निपटने की सोच शामिल ही नहीं होती। यही वक्त है कि मौसम के तीव्र बदलाव के इस दौर में नई सोच के साथ नए-नए तरीके अपनाए जाएं।

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