सेहत पर संकट

इलमा अजीम 
देश की खाद्य श्रृंखला को सुनिश्चित करने के क्रम में हरित क्रांति में पंजाब ने जो योगदान दिया, उसकी कीमत किसानों और आम नागरिकों को चुकानी पड़ रही है। ये रासायनिक पदार्थ हमारे पेयजल व खाद्य पदार्थों में मिलकर गंभीर रोगों के वाहक बन रहे हैं। लेकिन पंजाब के इस महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद उसके पानी के संकट का समाधान तलाशने की कोई गंभीर पहल होती नजर नहीं आती। जिसका नतीजा यह हुआ कि प्रदूषित पानी की चपेट में आकर लोग कैंसर व अन्य गंभीर रोगों के शिकार बन रहे हैं। सीसा, निकल, यूरेनियम व मैंगनीज से दूषित पानी के उपयोग से कैंसर समेत कई अन्य गंभीर रोगों का खतरा बढ़ जाता है। लगातार गहराते इस संकट को नीति-नियंताओं को गंभीरता से लेना चाहिए। लेकिन हमारे राजनेताओं की प्राथमिकताओं में आम आदमी के स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे शामिल ही नहीं रहे हैं। भूजल को जहरीला बनाने वाली फैक्ट्रियों व डिस्टिलरियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं होती क्योंकि वे राजनीतिक दलों की आय के स्रोत भी रहे हैं। विडंबना देखिये कि भूजल में अनुपचारित अपशिष्ट डालने पर जीरा डिस्टलरी के खिलाफ ग्रामीण पिछले दो साल से आंदोलन कर रहे हैं। जो बताता है कि जनता से जुड़े गंभीर सरोकारों को भी सत्ताधीश नजरअंदाज करते हैं। दो साल से चला आ रहा आंदोलन बताता है कि जनता हालात बदलने के लिये प्रतिबद्ध है, लेकिन शासन-प्रशासन की उदासीनता समस्या के समाधान की राह नहीं दिखाती। बीते वर्ष पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने डिस्टिलरी को बंद करने की बात कही थी और इस बाबत एक रिपोर्ट भी मांगी थी। बताते हैं कि रिपोर्ट में भूजल में जहरीले प्रदूषण की पुष्टि भी हुई थी। दूसरी ओर केंद्रीय और पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों के खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई शुरू कर दी है। लेकिन अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है। इस दिशा में एक ईमानदार पहल की सख्त जरूरत है, जो नागरिकों के जीवन की रक्षा में सहायक बने। 

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