आदर्श पहल होनी चाहिए 
 इलमा अजीम 
दिल्ली में पानी संकट होने से पूरी दुनिया में भारत को लेकर अच्छा संदेश नहीं जाएगा। भविष्य में ऐसे संकटों को रोकने और कुदरत के इस बहुमूल्य संसाधन के समान वितरण को सुनिश्चित करने के लिये एक आदर्श पहल होनी चाहिए। भीषण गर्मी में देश की राजधानी में जल संकट को सुलझाने के बजाय राजनीतिक बयानबाजी की जा रही है। जिस समस्या को सुलझाने के लिये शासन-प्रशासन को सजग होना चाहिए था, उसको लेकर शीर्ष अदालत को निर्देश देने पड़ रहे हैं। कोर्ट ने दो राज्यों की सरकारों को निर्देश दिए हैं कि दिल्ली के लिये अतिरिक्त पानी का सुचारू प्रवाह सुनिश्चित हो। निस्संदेह, गर्मी के मौसम में जीवनदायी पानी को लेकर राजनीति तो नहीं ही होनी चाहिए। वैसे तो देश के कई राज्यों में नदियों के जल बंटवारे को लेकर लंबे समय से विवाद जारी हैं, विवाद सुलझाने को कई प्राधिकरण भी बने हैं, लेकिन कम से कम पेयजल संकट के दौरान राजनीति नहीं की जानी चाहिए। जानलेवा गर्मी के बीच दिल्ली जल संकट को दूर करने के लिये अदालत के हस्तक्षेप के बाद राज्यों में सहयोग तथा जल संसाधनों के तर्कसंगत प्रबंधन की जरूरत महसूस की जा रही है। दरअसल, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आबादी के लगातार बढ़ते दबाव के बीच जल संकट हर साल गर्मियों में गहरा जाता है। राष्ट्रीय राजधानी अपनी जल आपूर्ति के लिये पड़ोसी राज्यों पर ही निर्भर रही है। जिसके मूल में जल प्रबंधन में संवेदनहीनता व अक्षमता भी उजागर होती है। दिल्ली सरकार भी सारे साल प्रयास करने के बजाय सिर्फ गर्मियों में संकट पैदा होने पर हाथ-पांव मारती नजर आती है।  जरूरत इस बात की है कि नदी बोर्ड जल प्रबंधन के लिए सबके सहयोग से पारदर्शी दृष्टिकोण अपनाया जाए। निस्संदेह, गर्मी के मौसम में पर्याप्त पानी न मिलना जन स्वास्थ्य के लिये भी खतरा है। जिसके लिये जल प्रबंधन स्थायी और न्यायसंगत ढंग से करने की आवश्यकता महसूस की जा रही है।  दिल्ली सरकार की शिकायत पर जहां सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल सरकार को अतिरिक्त पानी देने तथा हरियाणा सरकार को जल प्रवाह बाधा मुक्त बनाने को कहा है, वहीं दिल्ली के लोगों से कहा है कि वे पानी की बर्बादी रोकें। जल प्रबंधन को लेकर दृष्टिकोण राजनीति से मुक्त तथा सहयोगात्मक होना चाहिए। जो नागरिकों की जरूरतों के लिये प्राथमिकता का मार्ग सुनिश्चित करे। 

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