ईद-उल-अजहा का त्योहार त्याग, समर्पण और स्नेह का प्रतीक-प्रो (डॉ) सरताज अहमद
मेरठ।इस्लाम में प्रमुख रूप से दो बड़े त्योहार मनाए जाते हैं. एक ईद-उल-फित्र तो दूसरा ईद-उल-अजहा. इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, साल के 12वें महीने को जिलहिज्जा कहा जाता है, इस महीने की 10वीं तारीख को ईद उल-अजहा का त्यौहार मनाया जाता है।
इस्लाम में त्याग और समर्पण का काफी बड़ा महत्व है। ईद उल-अजहा का त्योहार त्याग और समर्पण के रूप में हर साल मनाया जाता है।
इस्लाम के अनुसार अल्लाह ने हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम को अपनी सबसे प्यारी चीज को कुर्बान करने का हुकुम दिया। हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने अपने प्यारे बेटे हजरत इस्माइल अलैहिस्सलाम को अल्लाह की राह में कुर्बान करने का इरादा किया ।
हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम का त्याग और हजरत इस्माइल अलैहिस्सलाम का समर्पण अल्लाह को बहुत पसंद आया।
कुर्बानी की इस बेमिसाल यादगार में इस दिन को पूरे विश्व में ईद-उल-अजहा के रुप में मनाया जाता है। इस्लाम के अनुसार कुर्बानी करना हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है, जिसे अल्लाह ने मुसलमानों पर वाजिब कर दिया है।
ईद-उल-अजहा के मौके पर मुस्लिम समाज नमाज पढ़ने के बाद हलाल और स्वस्थ जानवरों की कुर्बानी देते है। कुर्बानी देने का यह सिलसिला तीन दिन तक चलता है। इस त्योहार में मुस्लिम समुदाय के लोग अपनी हैसियत के हिसाब से उन पशुओं की कुर्बानी देते हैं, जो भारतीय कानूनों के तहत प्रतिबंधित नहीं होते।
इस्लाम में कुर्बानी करना हर उस मुसलमान पर फर्ज़ है, जो ज़कात देने की हैसियत रखता है यानि जिस मुसलमान के पास साढ़े सात तोला सोना या फिर साढ़े 52 तोला चांदी है या इसके बराबर नकद धनराशि हैं, तो उस शख्स के लिए कुर्बानी करना जरूरी है। इस्लाम के अनुसार, अगर कोई शख्स हैसियतमंद होने के बावजूद भी अल्लाह की राह में कुर्बानी नहीं करता है तो वह गुनाहगारों में शुमार किया जाता है
मुसलमान समुदाय के लोग अपनी हैसियत के मुताबिक, पालतू, सस्ते या महंगे जानवरों की कुर्बानी कर सकते हैं. जानवरों की कीमत से कुर्बानी का कोई संबंध नहीं है।
कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है. इसमें एक हिस्सा अपने घर के लिए, एक हिस्सा रिश्तेदारों के लिए और एक हिस्सा गरीबों में बांटा जाना अनिवार्य है. गरीबों को कुर्बानी का गोश्त बांटने का मकसद यह है कि बकरीद पर कोई गरीब कुर्बानी के गोश्त से महरूम न रहे और सब लोग खुशियों के साथ यह त्योहार मना सकें ।
इस्लाम में कुर्बानी के कुछ खास नियम भी हैं, जिसका हर मुसलमान के लिए पालन करना जरूरी है ।
कुर्बानी सिर्फ उस हलाल पैसों से की जा सकती है जो पैसे जायज़ तरीके से कमाए गए हों।
कुर्बानी बकरे, भेड़, ऊंट और भैंस पर की जा सकती है।
अगर कोई हलाल जानवर देश या राज्य सरकार द्वारा प्रतिबंधित है तो हलाल जानवरों की भी कुर्बानी नहीं की जानी चाहिए।
कुर्बानी के जानवरो का दिखावा , शो बाजी नहीं होनी चाहिए यह अहंकार की श्रेणी में आता है और अंहकार अल्लाह को पसंद नहीं।
कुर्बानी के समय जानवर बिल्कुल स्वस्थ होना चाहिए। जानवर को किसी तरह की चोट या बीमारी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि बीमार जानवरों की कुर्बानी जायज़ नहीं है।
कुर्बानी के बाद कुर्बानी स्थल की स्वच्छता, सफाई व्यवस्था का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। इसलिए खुद भी स्वच्छता का ध्यान रखें और दूसरे लोगों को भी प्रेरित करें।
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