जल ही जीवन
इलमा अजीम 
भीषण गर्मी के इस दौर में परंपरागत जल स्रोत प्राणियों के संकट मोचक बन सकते हैं। इनको संभालने की जरूरत है। दरअसल, जल संकट लगातार गंभीर होता जा रहा है। जल संरक्षण के प्रयासों को गति देने और भूजल दोहन की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए ठोस प्रयासों की जरूरत है। जल संकट का आए दिन सामना करने वाले प्रदेशों में प्रभावी जल प्रबंधन करना होगा। देश में आबादी जिस रफ्तार से बढ़ रही है उसी गति से पानी की मांग भी बढ़ रही है। लेकिन चिंता की बात यह है कि जल की मांग के अनुरूप उपलब्धता घटती जा रही है। भूजल के अंधाधुंध दोहन के साथ-साथ दूसरे जल संसाधनों में जलप्रबंधन का अभाव जगजाहिर है। जलवायु परिवर्तन के दौर में पूरी दुनिया के लिए जल संकट एक गंभीर चुनौती है। जल संरक्षण के प्रयासों को गति देने और भूजल दोहन की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए ठोस प्रयासों की जरूरत है। जल संकट का आए दिन सामना करने वाले प्रदेशों में प्रभावी जल प्रबंधन करना होगा। भावी पीढिय़ों को सुरक्षित करने के लिए भू-गर्भ आधारित पानी पर निर्भरता कम कर परंपरागत जल स्रोतों को संरक्षित करने और पुनर्जीवित करने की दिशा में काम करना होगा।  देश में एक ओर जहां अनावृष्टि के कारण बड़ा भू-भाग सूखा एवं अकाल की चपेट में रहता है, वहीं कई हिस्से अतिवृष्टि की वजह से बाढ़ की चपेट में आते रहे हैं। एक तथ्य यह भी है कि पृथ्वी का 71 प्रतिशत हिस्सा पानी से ढका हुआ है। लेकिन कुल उपलब्ध जल का 97 फीसदी भाग सागरों में है, जो खारा है। यह पानी न तो पीने के काम आ सकता है और न ही सिंचाई के। केवल 3 प्रतिशत पानी ही इस्तेमाल करने योग्य है। इसमें भी 2.4 प्रतिशत ग्लेशियरों में है। एक तरह से केवल 0.6 प्रतिशत जल ही नदियों, झीलों आदि में है।भूजल कम होने के यों तो कई कारण हैं लेकिन बड़ी वजह यह है कि हमारे शहर अब कंकरीट के जंगल बनते जा रहें है। इस बात पर गौर करना है कि आखिर हम अपने उपलब्ध जल-संसाधनों को संरक्षित रखने और पानी के संतुलित उपयोग को लेकर गंभीर कब होंगे? यह गंभीरता इसलिए भी जरूरी है क्योंकि देश में भूमिगत जल स्रोतों से 70 प्रतिशत पानी हमारे किसान सिंचाई के लिए काम में लेते हैं। अपनी जरूरतों को पूरी करने की दौड़ में हम जाने-अनजाने तेजी से भूगर्भीय जल का दोहन करने में जुटे हैं। इससेभूजल स्तर लगातार नीचे गिरता जा रहा है, जबकि भूजल का रिचार्ज उस अनुपात में नहीं हो पा रहा। भू-क्षरण को कम करना हमारे हाथ में है। इसके लिए बड़े भूखण्डों एवं भवनों में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम की अनिवार्यता को सख्ती से लागू कराना होगा। 

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