उठते सवाल
इलमा अजीम 
पुणे में धनी बाप के नशेड़ी बेटे ने दो मेधावी इंजीनियरों को विदेशी कार से कुचल कर उनका घर उजाड़ दिया। और हमारी व्यवस्था ने आनन-फानन में उसको जमानत भी दे दी। वाह! क्या रसूख है उसके परिवार का। कहां तो कोई मामूली धारा में भी जमानत के लिए एड़ियां घिसता रहता है और उधर
अमीर बाप के इस बिगड़ैल बेटे ने आनन-फानन में जमानत हासिल कर ली। उस घटना ने तमाम सवालों को भी जन्म दिया। दुस्साहस देखिये कि दो करोड़ रुपये से अधिक महंगी विदेशी कार को सड़क पर यह किशोर दो सौ किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ा रहा था। उसे पुणे की सड़कों में रोकने वाला कोई नहीं था। दो परिवारों के उम्मीदों के चिराग बुझ गए और किशोर न्यायालय ने अभियुक्त को कुछ निर्देश देकर ही छोड़ दिया । सोशल मीडिया पर यह विषय रोष का विषय बना रहा है कि किशोर न्याय बोर्ड ने जमानत देते वक्त उसे महज दुर्घटना पर निबंध लिखने, 15 दिन तक ट्रैफिक पुलिस के साथ काम करने तथा मनोचिकित्सक से शराब की लत का इलाज कराने को कहा। इन शर्तों को सुनकर सोशल मीडिया पर गंभीर अपराधों में लिप्त किशोरों को वयस्कों की तरह दंड देने की मांग तेज हुई। फिर जब इस मामले में राजनीतिक प्रतिक्रिया तेज हुई तो अभियुक्त किशोर के अरबपति बिल्डर पिता और नाबालिगों को शराब परोसने वाले होटल के अधिकारियों को गिरफ्तार किया गया। सामाजिक जागरूकता की पहल रंग लायी और चुनावी माहौल में तुरत-फुरत कार्रवाई हुई। मुख्यमंत्री व उप मुख्यमंत्री की सख्त कार्रवाई के निर्देश से लोगों में सकारात्मक संदेश गया। साथ ही पीड़ित पक्ष में भी विश्वास जगा कि कानून काम करता है चाहे आरोपी कितना भी ताकतवर क्यों न हो। निस्संदेह, ऐसे मामलों में अभियुक्तों के साथ शून्य सहिष्णुता का संदेश जाना ही चाहिए। बहरहाल, इस घातक दुर्घटना के बाद सार्वजनिक विमर्श में यह सवाल फिर उठा कि गंभीर अपराधों में किशोरों की संलिप्तता होने पर वयस्कों के कानून के हिसाब से उन्हें सजा क्यों नहीं मिलती। बहरहाल नये सिरे से किशोर न्याय अधिनियम में सुधार की बहस तेज हुई। एक गंभीर आपराधिक घटना के बाद किशोर न्याय बोर्ड द्वारा किशोर को मामूली परामर्श के बाद छोड़ना भी विवाद का विषय बना। सामाजिक व राजनीतिक दबाव के बाद पुणे पुलिस द्वारा की गई तुरंत कार्रवाई समय की जरूरत थी। जो कालांतर भविष्य में ऐसी त्रासदियों को टालने में मददगार हो सकती है। कहा जाने लगा कि अपराध के अनुपात में दंड का निर्धारण किया जाना चाहिए। दरअसल, देश के विभिन्न भागों में भी किशोरों द्वारा तेज रफ्तार वाहन चलाने के तमाम मामले प्रकाश में आते रहते हैं, जिसमें खतरनाक ड्राइविंग के चलते कई किशोरों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। ये घटनाएं यातायात कानूनों को सख्ती से लागू करने और किशोर अपराधियों को दंडित करने के लिये कानूनी ढांचे की समीक्षा की आवश्यकता पर बल देती हैं। निस्संदेह, देश की न्यायिक प्रणाली को इस तरह के मामलों में उचित प्रतिक्रिया देनी चाहिए।

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