जलाशयों के स्तर में गिरावट

 इलमा अजीम 
देश भर के जलाशयों के स्तर में चिंताजनक गिरावट आई है। रिपोर्ट के अनुसार 25 अप्रैल तक देश में प्रमुख जलाशयों में उपलब्ध पानी में उनकी भंडारण क्षमता के अनुपात में तीस प्रतिशत की गिरावट आई है। जो हाल के वर्षों की तुलना में बड़ी गिरावट है। जो सूखे जैसी स्थिति की ओर इशारा करती है। दरअसल, लंबे समय तक पर्याप्त बारिश न होने के कारण जल भंडारण में यह कमी आई है। जिसके चलते कई क्षेत्रों में सूखे जैसे और असुरक्षित हालात पैदा हो गये हैं। दरअसल, भारत के पूर्वी व दक्षिणी क्षेत्रों के लोग इस संकट का सामना कर रहे हैं। वास्तव में लगातार बढ़ती गर्मी के कारण जल स्तर में तेजी से गिरावट आ रही है। इसके गंभीर परिणामों के चलते आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों में पानी की कमी ने गंभीर रूप धारण कर लिया है। देश का आईटी हब बेंगलुरु गंभीर जल संकट से दो-चार है। जिसका असर न केवल कृषि गतिविधियों पर पड़ रहा है बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी भी बुरी तरह प्रभावित हो रही है। जिसका असर तात्कालिक चिंताओं से आगे दूर तक नजर आता है। कृषि क्षेत्र को फिलहाल कई बड़ी जटिल समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। जिसका विभिन्न फसलों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। इसका एक कारण यह भी है कि देश की आधी कृषि योग्य भूमि आज भी मानसूनी बारिश के रहमोकरम पर है। ऐसे में सामान्य मानसून की स्थिति पर कृषि का भविष्य पूरी तरह निर्भर करता है। ऐसे में मौसम विभाग का सामान्य मानसून का पूर्वानुमान आशावाद तो जगाता है लेकिन किसी तरह के किंतु-परंतु समस्या पैदा कर सकते हैं। ऐसे में किसी आसन्न संकट से निपटने के लिये जल संरक्षण के प्रयास घरों से लेकर तमाम कृषि पद्धतियों और औद्योगिक कार्यों तक में तेज करने की जरूरत है। जल भंडारण और वितरण दक्षता में सुधार के लिये पानी के बुनियादी ढांचे और प्रबंधन प्रणालियों में बड़े निवेश की तात्कालिक जरूरत भी है। इसी तरह कृषि पद्धतियों में सुधार के साथ फसल विविधीकरण से पानी की खपत को कम करने के प्रयास होने चाहिए। ताकि सूखे के प्रभाव को कम करने के प्रयास हो सकें। इसके साथ ही जल संरक्षण की परंपरागत तकनीकों को भी बढ़ावा देने की जरूरत है। साथ ही आम लोगों को प्रकृति के इस बहुमूल्य संसाधन के विवेकपूर्ण उपयोग को बढ़ावा हेतु प्रेरित करने के लिए जनजागरण अभियान चलाने की जरूरत है। 

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