जरूरी मुद्दों से भटकाव
इलमा अजीम 
लोकसभा चुनाव में चौथे चरण के मतदान के साथ ही 543 उम्मीदवारों में से 379 का भाग्य मतपेटियों में बंद हो गया। विपक्षी दलों का काउंटर-नैरेटिव संवैधानिक लोकतंत्र और उसके मूल्यों की रक्षा पर केंद्रित है। लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा लगता है कि दोनों पक्षों के शोर-शराबे वाले चुनाव-अभियान ने वास्तविक मुद्दों को दबा दिया है। तर्क-वितर्क की जगह आक्षेपों और निंदा ने ले ली है। खुद से ऊपर उठ पाने में असमर्थ नेताओं द्वारा संचालित लोकतांत्रिक संवाद की विकृति एक कमजोर लोकतंत्र की पुष्टि करती है। सत्ता की खोज में अपने लक्ष्यों के प्रति बहुत कम सम्मान और राजनीतिक आदर्शवाद के उपहास से लोकतंत्र की आड़ में व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति का साधन ही दिखलाई देता है। अगर भाजपा और विपक्षी दल सच में ही इस चुनाव को एक लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण क्षण मानते हैं तो उन्हें मुख्य मुद्दों पर जनता का ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इंडिया गठबंधन में कई स्वर सम्मिलित हैं। लेकिन उसके अभियान की सफलता उसके मंतव्यों की स्पष्टता से ही तय होगी। अपने मुख्य एजेंडे पर ध्यान केंद्रित करने और प्रत्येक मतदाता को उससे अवगत कराने के अलावा वह वैकल्पिक नेतृत्व के महत्वपूर्ण प्रश्न से बच नहीं सकता है। चाहे सरकार कोई भी बनाए, जीत उनकी होनी चाहिए जिनकी राजनीति न्याय और मानवीय गरिमा पर आधारित लोकतंत्र को कायम और मजबूत करती हो। यह चुनाव समानतापूर्ण नागरिकता की स्वतंत्रता को सुदृढ़ करने और यह सुनिश्चित करने के बारे में है कि 

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