हीट वेव में तेजी बड़े वैश्विक संकट की आहट
- डॉ. शशांक द्विवेदी
पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ता जा रहा है। दुनियाभर में भीषण गर्मी का प्रकोप जारी है। कहीं बहुत ज्यादा गर्मी के कारण जंगलों में आग लग रही है तो कहीं लोगों को पानी की कमी से जूझना पड़ रहा है। भारत के भी कई राज्यों में गर्मी और उमस से लोग बेहाल हैं। अपने ठंडे मौसम के लिए पहचाने जाने वाले यूरोप और अमेरिका भी एेतिहासिक गर्मी का सामना कर रहे हैं। इसी बीच संयुक्त राष्ट्र ने एक डराने वाली चेतावनी जारी की है। यूएन के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन के कारण अकेले दक्षिण एशिया में तीन-चौथाई बच्चे खतरनाक गर्मी की चपेट में हैं, जिनकी संख्या करीब 46 करोड़ है।
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष यानी यूनिसेफ के मुताबिक, मौजूदा समय में दुनिया में सबसे ज्यादा तापमान दक्षिण एशिया में है। जलवायु परिवर्तन के भयंकर असर के कारण इस क्षेत्र के तापमान में असामान्य रूप से बढ़ोतरी हो रही है। इस बढ़ते हुए तापमान का सबसे ज्यादा असर बच्चों पर पड़ रहा है। एक अनुमान के मुताबिक, दक्षिण एशिया में 18 साल से कम उम्र के 76 फीसदी बच्चे भीषण तापमान वाले इलाकों में रहते हैं। इनकी तादाद करीब 46 करोड़ है। यूनिसेफ के मुताबिक, अगर वैश्विक स्तर पर बात की जाए तो हर तीन में से एक बच्चा भीषण गर्मी से प्रभावित है। दरअसल, बच्चों में जलवायु परिवर्तन के साथ अपने शरीर के तापमान को ढालने की क्षमता कम होती है।
विशेषज्ञों के अनुसार जलवायु परिवर्तन इस हीटवेव की मुख्य वजह है। वहीं ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (जीएचजी), जो कोयले, गैस और तेल जैसे जीवाश्म ईंधन को जलाने से होता है, वो हीट वेव को अधिक गर्म और खतरनाक बना रहा है। वैश्विक तापमान उबाल पर है। आंकड़ों से साफ है कि दक्षिण एशिया में कराेड़ों बच्चों का जीवन हीट वेव और बहुत ज्यादा तापमान के कारण जोखिम में पड़ गया है। यूएन की ओर से जारी चेतावनी के मुताबिक, भारत समेत अफगानिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव और पाकिस्तान में जलवायु परिवर्तन के असर के कारण बच्चे ही सबसे ज्यादा जोखिम में हैं। अनुमान है कि दक्षिण एशिया के इन देशों में हर साल कम से कम 83 दिन 35 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान रहता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, बच्चे अपने शरीर को इतने ज्यादा तापमान के मुताबिक ढालने में सक्षम नहीं होते हैं।
यूएन के अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की अप्रैल में आई रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में हर साल कामकाज के दौरान करीब 19,000 लोग गर्मी के चलते मारे जा रहे हैं। आसान भाषा में समझें तो एक ऐसा बिंदु आता है जब शरीर खुद को ठंडा नहीं कर पाता है। असल में पानी की कमी से बॉडी डिहाइड्रेशन का शिकार हो जाती है। जब शरीर में पानी की कमी होती है तो पानी के साथ कई जरूरी मिनरल और विटामिन की कमी भी हो जाती है। इस वजह से बॉडी के कई ऑर्गन जैसे किडनी, लंग्स और हार्ट डैमेज हो सकते हैं और उस वजह से लोगों की मौत हो सकती है।
ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हिमालय के ग्लेशियर 10 गुना तेजी से पिघल रहे हैं। ‘तीसरा ध्रुव’ नाम से जाना जाने वाला हिमालय अंटार्कटिका और आर्कटिक के बाद ग्लेशियर बर्फ का तीसरा सबसे बड़ा सोर्स है। वैज्ञानिकों के अनुसार 400 से 700 साल पहले के मुकाबले पिछले कुछ दशकों में हिमालय के ग्लेशियर 10 गुना तेजी से पिघले हैं। यह गतिविधि साल 2000 के बाद ज्यादा बढ़ी है। साइंस जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुए एक शोध के अनुसार इससे एशिया में गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु नदी के किनारे रहने वाले करोड़ों भारतीयों पर पानी का संकट आ सकता है।
ब्रिटेन की लीड्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अनुसार, आज हिमालय से बर्फ के पिघलने की गति ‘लिटल आइस एज’ के वक्त से औसतन 10 गुना ज्यादा है। लिटल आइस एज का काल 16वीं से 19वीं सदी के बीच का था। इस दौरान बड़े पहाड़ी ग्लेशियर का विस्तार हुआ था। वैज्ञानिकों की मानें, तो हिमालय के ग्लेशियर दूसरे ग्लेशियर के मुकाबले ज्यादा तेजी से पिघल रहे हैं।
हर साल गर्मी के रिकॉर्ड टूट रहे हैं। कथित विकास की अंधी दौड़ में शामिल दुनिया क्या खौलती गर्मियों से स्वयं को बचा पायेगी। वैज्ञानिकों के मुताबिक पिछले साल उत्तरी गोलार्ध में इतनी गर्मी पड़ी कि करीब 2,000 साल का रिकॉर्ड टूट गया। 2023 को धरती पर अब तक सबसे गर्म वर्ष कहा गया। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस भी इसे ‘वैश्विक उबाल का दौर’ कह चुके हैं। 2024 में भी भीषण गर्मी अब तक एशिया के कई देशों को झुलसा चुकी है।
भारत में भी भीषण गर्मी का कहर जारी है। देश के कई इलाके हीट वेव की चपेट में हैं। इस बीच मौसम विभाग ने देश में हीट वेव को लेकर चेतावनी जारी की है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार, उत्तर-पश्चिम भारत समेत मैदानी इलाकों में भीषण लू की स्थिति जारी रहने की संभावना है। पारंपरिक जीवाश्म ईंधन के बहुत ज्यादा इस्तेमाल के कारण ग्लोबल वार्मिंग ने हीट वेव को ज्यादा गर्म और ज्यादा लंबा बना दिया है। इसके अलावा तूफान और बाढ़ जैसी दूसरी मौसम की चरम स्थितियों को भी तेज कर दिया है।


कुल मिलाकर दुनिया हानिकारक गैसों के उत्सर्जन के कारण भयंकर समस्याओं का सामना कर रही है। इस दशक में दुनिया को प्रदूषण को बेहद कम करना होगा। अगर ऐसा नहीं किया गया तो आने वाले समय में हालात ज्यादा खराब हो जाएंगे। भीषण गर्मी और हीट वेव, धरती के तापमान में असंतुलन और जलवायु परिवर्तन की वजह से हो रहा है, जिसका दायरा अब वैश्विक हो गया है।
जमीनी सच्चाई यह है कि बड़े पैमाने पर ग्लेशियरों का पिघलना और दुनिया भर में हीट वेव बहुत बड़े वैश्विक खतरें की आहट है, जिसको अनदेखा नहीं किया जा सकता। कथित विकास की बेहोशी से दुनिया को जागना पड़ेगा।
(लेखक मेवाड़ यूनिवर्सिटी में डायरेक्टर हैं)

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