अंतर्राष्ट्रीय आलू दिवस पर एक दिवसीय गोष्ठी का आयोजन
आलू उगाने के मामले में दुनिया में दूसरे नम्बर पर है, लेकिन उपज के मामले में हम विकसित देशों से काफी पीछे
मेरठ। अंतर्राष्ट्रीय आलू दिवस 2024 के अवसर पर “फसल कटाई, विविधता एवं पोषण की संभावनाएं विषय पर धानुका समूह, आईसीएआर-केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (सीपीआरआई) और मेरठ स्थित सरदार वल्लभभाई कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एसवीपीयूएटी) ने मिलकर एक दिवसीय संगोष्ठी का सफल आयोजन किया। कार्यक्रम में वैश्विक खाद्य सुरक्षा एवं संधारणीयता (सस्टेनेबिलिटी) में आलू की महत्वपूर्ण भूमिका पर विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिष्ठित वक्ताओं ने विचार व्यक्त किये।
कार्यक्रम में भाग लेते हुए धानुका समूह के चेयरमैन डॉ आर जी अग्रवाल ने प्रौद्योगिकी में हुई उन्नति और संधारणीय (सस्टेनेबल) कृषि को बढ़ावा देने में निजी क्षेत्र की भूमिका पर ज्ञानवर्द्धक भाषण दिया। उन्होंने आलू की खेती के तरीकों में हुई नई खोजों के लिए धानुका समूह की पहलों और कृषि उत्पाद बढ़ाने के लिए अनुसंधान संस्थानों के साथ हुए सहयोगों पर प्रकाश डाला। उन्होंने किसानों को कोई भी उपज खरीदने से पहले उसका क्यूआर स्कैन करके जानकारी लेने और बिल के साथ साथ ही खरीदने की सलाह दी।
"भारत आलू उगाने के मामले में दुनिया में दूसरे नम्बर पर है, लेकिन उपज के मामले में हम विकसित देशों से काफी पीछे हैं। स्थिति को सुधारने के लिए किसानों को जानकारी, गुणवत्तायुक्त बीजों की उपलब्धता और खेती की आधुनिक तकनीकों के माध्यम से सूचनाओं तक पहुंच सुनिश्चित करना समय की मांग है। आलू की खेती करने और उपज को बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण दिलवाने हेतु धानुका आईसीएआर-सीपीआरआई और एसवीपीयूएटी के साथ मिलकर काम करेगी," डॉ अग्रवाल ने कहा।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मेरठ के उपकुलपति डॉ के के सिंह ने आलू अनुसंधान में उन्नति की दिशा में आईसीएआर-सीपीआरआई और धानुका ग्रुप के संयुक्त प्रयासों की सराहना करते हुए ज्ञान के आदान-प्रदान और कृषि से जुड़ी भविष्योन्मुखी पहलों के लिए ऐसी संगोष्ठी के महत्व को रेखांकित किया।
इससे पहले आईसीएआर-सीपीआरआई के मोदीपुरम क्षेत्रीय स्टेशन के हैड डॉ आर के सिंह ने संगोष्ठी की शुरुआत करते हुए भारत में आलू की खेती के महत्व को रेखांकित करते हुए संगोष्ठी के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला और आलू के उत्पादन और संधारणीयता (सस्टेनेबिलिटी) को बढ़ाने के लिए नये-नये तरीकों की आवश्यकता पर जोर दिया। संगोष्ठी में न केवल हमारे खाद्य तंत्र में आलू की आवश्यक भूमिका पर जोर दिया गया, बल्कि संधारणीय (सस्टेनेबल) और खाद्य-सुरक्षित भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए अनुसंधानकों, नीति-निर्माताओं और इंडस्ट्री लीडर्स की साझी जिम्मेदारी पर प्रकाश डाला गया।
No comments:
Post a Comment