मौसम की तीव्रता पर नीतिगत फैसले जरूरी
इलमा अजीम 
मौसम की तीव्रता कई तरह से असर डाल रही है। जरूरी है कि इसके लिए नीतिगत फैसले लिए जाएं। गर्मी के बढ़ते तीखेपन से फसलों की उत्पादकता में भी कमी आई है। दरअसल, मौसम की यह तल्खी केवल भारत ही नहीं, वैश्विक स्तर पर नजर आ रही है। एशिया के अलावा यूरोप व अमेरिकी देशों में भी तापमान में अप्रत्याशित बदलाव नजर आ रहा है।विडंबना यह है कि ग्लोबल वार्मिंग के हमारे दरवाजे पर दस्तक देने के बावजूद विकसित व संपन्न देश पर्यावरण संतुलन के प्रयास करने तथा आर्थिक सहयोग देने से बच रहे हैं। बहरहाल, रिकॉर्ड तोड़ते तापमान के दुष्प्रभावों को कम करने के लिये सरकारों को नीतिगत उपायों को लागू करने को प्राथमिकता देनी होगी। अब सरकार रेड अलर्ट व ऑरेंज अलर्ट की सूचना देकर अपने दायित्वों से पल्ला नहीं झाड़ सकती। खासकर ऐसे समय में जब हरियाणा व राजस्थान में पारा पचास पार करके गंभीर चुनौती का संकेत दे रहा है। स्कूल-कालेजों के संचालन, दोपहर की तीखी गर्मी के बीच कामगारों व बाजार के समय के निर्धारण को लेकर देश में एकरूपता का फैसला लेने की जरूरत है। कुछ जगह धारा 144 लागू की गई है, जो इस संकट का समाधान कदापि नहीं है। कभी संवेदनशील भारतीय समाज के संपन्न लोग सार्वजनिक स्थलों में प्याऊ की व्यवस्था करते थे। लेकिन आज संकट यह है कि पानी व शीतल पेय के कारोबारी मुनाफे के लिये सार्वजनिक पेयजल आपूर्ति को बाधित करने की फिराक में रहते हैं। सरकारों को नीतिगत फैसला लेकर विभिन्न फैक्ट्रियों व कार्यस्थलों पर पंखों व शीतल जल की उपलब्धता की अनिवार्यता सुनिश्चित करनी चाहिए। इसके अलावा उन कामगारों का भी ध्यान रखना होगा जो रोज कमाकर घर का चूल्हा जलाते हैं तथा खुले में काम करने को मजबूर होते हैं। उनके लिये छांव व ठंडे पानी की उपलब्धता मौलिक अधिकार जैसी होनी चाहिए। यह संकट आने वाले सालों में लगातार बढ़ेगा। इसलिए गर्मी के मौसम में काम के घंटों का निर्धारण मौसम की अनुकूलता के अनुरूप ही होना चाहिए। 

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