देश में बढ़ती गरीबी
 इलमा अजीम 
लोकसभा चुनावों में इस बार भी गरीबी एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है, लेकिन वहीं दूसरी तरफ भारत के सबसे अमीर एक फीसदी लोगों की कमाई एवं संपत्ति और आर्थिक असमानता अपने ऐतिहासिक उच्चतम स्तर पर है। वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैब ने अपनी रिपोर्ट में यह जानकारी दी है। थॉमस पिकेटी, लुकास चांसल और नितिन कुमार भारती द्वारा लिखी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के सबसे अमीर एक प्रतिशत लोगों के पास देश की कुल संपत्ति का करीब 40.1 फीसदी हिस्सा है। वहीं देश की कुल आय में उनकी हिस्सेदारी करीब 22.6 प्रतिशत है। यह अब तक का सबसे ऊंचा स्तर है। यहां तक कि इसने अमेरिका जैसे विकसित देशों के अमीरों को भी पीछे छोड़ दिया है। रिपोर्ट के अनुसार सबसे अमीर लोगों ने सांठगांठ वाले पूंजीवाद और विरासत के जरिए बनाई गई संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा हड़प लिया है और वे बहुत तेज गति से अमीर हो रहे हैं। पिछले तीन दशकों से भारत में आर्थिक असमानता तेजी से बढ़ी है। इसी बीच केंद्र सरकार का ऋण भी बढ़ा है, लेकिन गरीबी अपनी जगह बरकरार है। केंद्र सरकार ने इकोनॉमी को बूस्ट देने के नाम पर 2019 में कॉर्पोरेट टैक्स को घटाने का ऐलान किया था। इस ऐलान के बाद घरेलू कंपनियों को जो कॉर्पोरेट टैक्स पहले 30 फीसदी की दर से देना होता था वो घटकर 22 फीसदी हो गया है। जाहिर है इस तरीके से भी उद्योगपतियों को ही लाभ हुआ है। कोरोना संकट के तुरंत बाद लोगों को न केवल अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा था बल्कि बड़ी संख्या में कामगारों और मजदूरों का पलायन भी हुआ था। ऊपर से 2020 में बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भी सीमित मात्रा में रिक्रूटमेंट की थी। इससे हमारे युवाओं को भारी निराशा का सामना करना पड़ा था। सीएमआईई के अनुसार, भारत में बेरोजगारी दर मार्च 2024 में 7.4 प्रतिशत से बढक़र अप्रैल 2024 में 8.1 प्रतिशत हो गई है। महंगाई एवं बेरोजगारी आज भी भारतीय नागरिकों के लिए बड़े मुद्दे बने हुए हैं। भारत में जनसंख्या नियंत्रण एवं स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण, स्वच्छता और रोजगार जैसे क्षेत्रों में तेजी से सुधार और लोगों के जीवनस्तर में उत्थान द्वारा ही सामाजिक असमानता पर काबू पाया जा सकता है। इसके लिए सरकारों को निरंतर आर्थिक विकास के लिए नीतियों और कार्यक्रमों को विकसित करना और लागू करना होगा।

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