1857 की लड़ाई में मेरठ के दिग्गजों ने निभाई थी अहम भूमिका : प्रो. असलम जमशेदपुरी

इसमें कोई शक नहीं कि ऐसे नाटक जनमानस में देशभक्ति की भावना जगाते हैं: प्रो. बिंदु शर्मा

उर्दू विभाग, सीसीएसयू और स्वांगशाला द्वारा संयुक्त रूप से देशभक्ति नाटक का आयोजन किया गया।

मेरठ।  'क्रांति दिवस' यानि 10/मई 1857 की पूर्व संध्या पर स्वर्गीय अटल सभागार में उर्दू विभाग एवं स्वांगशाला अभिनय अकादमी द्वारा संयुक्त रूप से आजादी पर आधारित एवं देशभक्ति से ओतप्रोत दो नाटक "जंग ए आजादी 1857" और "पहली जंग आज़ादी" का मंचन किया गया।  दर्शकों द्वारा नाटक को बहुत पसंद किया गया और तालियों की गड़गड़ाहट से अभिनेताओं का उत्साहवर्धन किया गया। नाटक "जंग आज़ादी 1857" का लेखन और निर्देशन भारत भूषण शर्मा ने किया था। नाटक "आजादी की पहली जंग" प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफेसर के.डी. शर्मा द्वारा लिखा गया  और आबिद सैफ़ी द्वारा निर्देशित किया गया।

 कार्यक्रम की शुरुआत दीप जलाकर की गयी़। कार्यक्रम की अध्यक्षता स्वांगशाला एक्टिंग एकेडमी की अध्यक्ष व भवानी डिग्री कॉलेज की प्राचार्या डॉ़. सुधा शर्मा ने की. मुख्य अतिथि के रूप में प्रो. बिंदु शर्मा (विभागाध्यक्ष जुलोजी विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ)  तथा विशिष्ट अतिथि उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री डॉ. मेराजुद्दीन अहमद, पुस्तकालय विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो. जमाल अहमद सिद्दीकी और एम.एस.एम की निदेशक श्रीमती स्मिता शर्मा ने भाग लिया। डॉ. अलका वशिष्ठ ने संचालन का दायित्व निभाया।

नाटक में दिखाया गया है कि कैसे मंगल पांडे ने चर्बी वाले कारतूसों के कारण बैरकपुर में एक ब्रिटिश अधिकारी को गोली मार दी थी और फिर उन्हें कोर्ट-मार्शल कर फांसी दे दी गई थी। सभी छावनियों में कड़ा विरोध शुरू हो गया। 9 मई, 1857 को मेरठ में परेड मैदान में भारतीय सैनिकों ने खुलेआम कारतूसों का विरोध किया, जिसके परिणामस्वरूप इन सैनिकों को कोर्ट-मार्शल कर जेल में डाल दिया गया। सदर क्षेत्र की वेश्या हीराबाई ने यह कहकर सैनिकों का अपमान किया कि या तो हमारी तरह चूड़ियाँ पहन लो। यह सुनकर सैनिकों में सम्मान जाग उठा और फिर अगले दिन 10 मई 1857 को गिरफ्तार सैनिकों को जेल से मुक्त कर दिया गया और ब्रिटिश अधिकारियों पर हमले से भारी हंगामा मच गया। इन दृश्यों को देखकर दर्शकों में देशभक्ति की भावना प्रबल हो जाती है और हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठता है। किरदारों की बात करें तो सुरेंद्र शर्मा, विनोद कुमार बेचैन, सीमा समर, बी.बी. शर्मा, शंभू, उजोल सिंह, देव्यांश शर्मा, अमन पधान, सागर शर्मा, विशेष ठाकुर ने बेहतरीन भूमिकाएं निभाई हैं.

दूसरे नाटक "प्रथम स्वतंत्रता संग्राम" का मंचन एमएसएम, कैरेक्टर थिएटर ग्रुप के एकेडमी यू नट के छात्रों ने किया इस नाटक ने भी जनता में जोश भर दिया और हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा , मोहम्मद साजिद सैफ़ी, अयाज़ अहमद सैफ़ी, आदित्य, प्रशांत, आशीष, निष्ठा, अभय भड़ाना, ज़ैनब, कृष्णा गर्ग आदि ने अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है और दर्शकों को प्रभावित किया है।

इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रोफेसर असलम जमशेद पुरी ने कहा कि 9 और 10 मई 1857 ने भारतीय इतिहास में एक क्रांति ला दी थी। यदि कुछ गद्दार हमारे साथ न आते तो हमें उसी समय आजादी मिल गई होती। 1857 के युद्ध में मेरठ के दिग्गजों ने अहम भूमिका निभाई। अगर उन्होंने अचानक आजादी की लौ न जलाई होती तो संभव था कि इसके लिए इंतजार करना पड़ता। 

प्रो. बिंदु शर्मा ने कहा कि ऐसे नाटक लोगों में देशभक्ति की भावना पैदा करते हैं और इसका प्रमाण यह है कि आज सौ साल बाद भी उन क्रांतिकारियों को याद किया जाता है जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर आजादी की शमा रोशन की और हमें आज़ादी दिलाई है। आजादी के माहौल में सांस लेने का मौका दिया है.

प्राचार्या सुनीति सिंह, अलका सिंह, डॉ. आसिफ अली, डॉ. शादाब अलीम, डॉ. इरशाद अली, नुजहत अख्तर, फरहत अख्तर, लाइबा, शादाब अली, मुहम्मद तल्हा, शाहे जमन, राशिद सैफी, सईद अहमद सहारनपुरी सहित  शहर के अनेक गणमान्य व्यक्ति एवं छात्र- छात्राएं उपस्थित थे।

No comments:

Post a Comment

Popular Posts