अवैध शराब की तिजारत अपराध को दावत

- प्रताप सिंह पटियाल
इतिहास साक्षी रहा है कि मदिरा की तिजारत, खपत व मांग में कभी कमी नहीं आई है। मद्यपान का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। सुरापान का प्रचलन समाज में हर वर्ग के लोगों में व्यापक रहा है। आचार्य चार्वाक जैसे महान् दार्शनिक ने सदियों पूर्व अपने श्लोकों में सुरापान का उल्लेख किया था। मदिरा की नशीली तासीर को कई शायर व फनकार अपने अंदाज में बयान करते आए हैं। ‘हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी सी जो पी ली है’- अकबर इलाहाबादी के इन अल्फाज को पाकिस्तान के मशहूर गायक ‘गुलाम अली’ ने अपनी आवाज से बयान करके सुरा प्रेमियों को नसीहत देकर चेताया था। जाहिर है मदिरा का सेवन हो, अवैध तिजारात हो या देर रात तक खुली रहने वाली मधुशालाओं में आब-ए-तल्ख बोतलों में सजी हो, मदिरा हंगामा जरूर मचाती है।
वर्तमान में आब-ए-तल्ख के घोटाले को लेकर देश की राजधानी चर्चा का मरकज बन चुकी है। देश में चुनावों का दौर चल रहा है। आबकारी विभाग व अन्य सुरक्षा एजेंसियों द्वारा अवैध शराब को कब्जे में लेने की खबरें समाचारपत्रों की सुर्खियां बन रही हैं। मद्यपान के प्रति निगाह-ए-नाज के जज्बात रखने वाला मदिरा प्रेमी वर्ग सुरापान को आब-ए-हयात मानता है, चूंकि आब-ए-तल्ख सुरा प्रेमियों को एक काल्पनिक दुनिया के हसीन ख्वाब दिखाती है। मदिरा की तिजारत को हमारी हुकूमतें अर्थतंत्र की मजबूती का जरिया मानती हैं। अल्कोहल पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी से राज्य सरकारों को एक बड़ा राजस्व हासिल होता है। इसलिए सियासी निजाम शराब को नशा नहीं मानता। मगर शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य का संतुलन बिगाडऩे वाली शराब किस हद तक अपना दुष्परिणाम दिखाती है, यह छिपा नहीं है। गत ग्यारह अप्रैल 2024 को हरियाणा के महेंद्रगढ़ में एक निजी स्कूल वैन के भीषण हादसे का शिकार होने से आठ मासूम छात्रों की मौत हो गई, क्योंकि स्कूल वैन का चालक शराब के नशे में धुत था। अवैध शराब के जहरनुमां कारोबार ने कई घरों के चश्म-ओ-चिराग बुझाकर लाखों लोगों की शब-ए-महताब को जुल्मत में तब्दील कर दिया है। 22 मार्च 2024 को पंजाब के संगरूर जिले में बीस से ज्यादा लोगों की मौत का कारण जहरनुमां शराब बनी। संगरूर में जहरीली शराब से हुई मौतों के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग व चुनाव आयोग भी हरकत में आ गए।
जहरीली शराब देश में एक मुद्दत से मौत का तांडव मचा रही है। लेकिन नशे के अजाब से उपजे मातम को शांत करने के लिए पीडि़तों के आब-ए-चश्म पर मुआवजे व सियासी आश्वासनों का मरहम लगा कर मसले को रफा दफा किया जाता है। चश्म-ए-पलक की रौशनी छीनकर चश्मों की सौगात बांटने की कोशिश होती है। शराब तस्करी पर प्रशासन व सुरक्षा एजेंसियों की नाकामी को छुपाने के प्रयास किए जाते हैं।
आर्थिक तंगी के कारण कई लोग शराब माफिया के प्रलोभन में आकर सस्ते दामों पर मिलने वाली नकली शराब खरीद लेते हैं। अवैध शराब ही मौत का कारण बनती है। गुरबत में जीवनयापन करने वाले लोग अदालतों में कानूनी लड़ाई लडऩे में असमर्थ होते हैं। इसी कारण सैकड़ों लोगों को मौत की आगोश में सुलाने वाले नशे के सरगना कानूनी दांवपेंच से बच निकल कर अपनी नशे की सल्तनत को बेखौफ होकर चलाते हैं। देश में नशा उन्मूलन के नाम पर कई विशेष दिवस मनाए जाते हैं। नशा मुक्ति केन्द्रों का संचालन भी हो रहा है। वहीं मयखानों की संख्या में भी रिकार्ड वृद्धि दर्ज हो रही है। शादी समारोहों में होने वाला फसाद व सडक़ों पर कहर मचाती तेज रफ्तार से बढ़ती दुर्घटनाएं, घरेलू हिंसा तथा सामाजिक परिवेश में बढ़ती आपराधिक गतिविधियों के पीछे ज्यादातर पसमंजर मद्यपान का ही है। त्योहार, पर्व के अवसर पर मदिरा की डिमांड जोर पकड़ लेती है। कई राज्यों के चुनावों में नशे का समूल नाश भी एक अहम मुद्दा बनता है। नशे की गिरफ्त में जा रहे मुल्क के मुस्तकबिल युवा वर्ग पर चिंता व्यक्त की जाती है, मगर मदिरा के इस्तेमाल के बिना इंतखाबी तश्हीर की दर्जा-ए-हरारत अधूरी रहती है। भारत का शराब उद्योग दुनिया में सबसे बड़े उद्योगों में से एक है। देश के कुछ राज्यों में शराबबंदी जरूर हुई है, लेकिन हकीकत में कोई भी राज्य तथा अवाम ईमानदारी से शराब निषेध के पक्ष में नहीं है। इसलिए कई राज्यों में मद्यनिषेध के प्रयास असफल हुए।
शराबबंदी का एक लंबा सफर तय करने वाले राज्य गुजरात में सुरा प्रेमी सन् 2018 से गुजरात उच्च न्यायालय के समक्ष कई याचिकाएं दर्ज करके शराबबंदी को चुनौती पेश कर रहे हैं। एक देश एक कानून का हवाला देकर शराब निषेध कानून को राज्य से रुखसत करने की मांग हो रही है। सुरा प्रेमियों की दलील है कि शराब पीने को भी ‘राइट टु प्राइवेसी’ के तहत बुनियादी अधिकार माना जाए। याचिकाओं में यह भी तर्क है कि ‘गुजरात निषेध अधिनियम 1949’ राज्य में मदिरा की अवैध तिजारत रोकने में अप्रभावी है। बिहार राज्य में भी शराबबंदी को न्यायालय में चुनौती मिल चुकी है, लेकिन भारत में शराब राज्य का अपना विषय है।
संविधान के अनुच्छेद 47 के तहत प्रत्येक राज्य को मादक पेय व स्वास्थ्य के लिए हानिकारक दवाओं के सेवन पर प्रतिबंध का अधिकार है। राजस्व जुटाने के लिए किसी सूबे को आब-ए-तल्ख की दारुल हुकूमत बनाकर लोगों को नशे की दलदल में उतार देना कितना उचित है, इस मुद्दे पर मंथन होना चाहिए। स्मरण रहे सुरा प्रेमियों की ख्वाहिश के आगे बेबस होकर अमरीका तथा सोवियत संघ जैसे देशों ने शराबबंदी के फैसले रद्द कर दिए थे। बहरहाल कई परिवारों की बर्बादी का अस्बाब बन चुकी जहरीली मदिरा की अवैध तिजारत शराब माफियाओं के लिए फायदेमंद बिजनेस बन चुकी है।


 शराब की तस्करी व अवैध बिक्री मुल्क में अस्थिरता का तनाज़ुर पैदा कर रही है। लिहाजा समाज में अमन कायम करने के लिए सैकड़ों लोगों की मौत का कारण बन रही जहरीली शराब का अवैध कारोबार नेस्तनाबूद करना होगा। देश पर हुक्मरानी करने वाली सियासी व्यवस्था को समझना होगा कि इकोनॉमी की सेहत सुधारने वाली मदिरा की बेहताशा तिजारत सभ्य समाज में संगीन वारदातों को दावत दे रही है। युवावेग को बर्बाद करने वाले नशे पर अंकुश लगना चाहिए।

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