नशे और पैसे से प्रभावित होते चुनावी नतीजे !

- संजीव ठाकुर
भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पहले आम चुनाव से लेकर अध्यतन चुनाव में पैसे तथा नशे की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही हैl वैश्विक स्तर पर भी भी इस महत्वपूर्ण कारक का प्रभाव रहा है। आम चुनाव में लोकसभा,विधानसभा के चुनाव से लेकर स्थानीय चुनाव तक सक्षम चुनाव के उम्मीदवार पैसे और नशे की खेप से मतदाता के बड़े गरीब तपके के मतदाताओं को प्रभावित करते आए हैं। मतदान के ठीक 1 दिन पहले रात्रि में मजदूरों की झुग्गी झोपड़ियों में बकरा तथा शराब की पार्टियों तथा रूपयों के साथ अन्य आवश्यक सामग्रियों के वितरण द्वारा मतदाता को प्रभावित करने का प्रयास किया जाता है।
शराब तथा पैसों की लगातार आपूर्ति और वितरण मतदाताओं को प्रभावित करने का मापदंड बनता चला आया है। शराब एवं अन्य नशा देश के नौजवानों को मानसिक शारीरिक और आर्थिक रूप से कमजोर करता रहा है तथा चुनाव के समय इस पर प्रभावी नियंत्रण अत्यंत आवश्यक है इस पर एक राष्ट्रीय कानून तथा संविधान बनाने की बड़ी और प्रभावी आवश्यकता है। आईए एक विश्लेषण में देखते हैं कि नशा किस तरह देश के आर्थिक तथा मानसिक विकास को क्षति पहुंचाता आया है।
देश मे हर तरह के एक सूखे और अन्य नशे से न सिर्फ शारीरिक, मानसिक, सामाजिक संरचना कमजोर होती है, बल्कि परिवार, समाज और देश के आर्थिक तंत्र पर बड़ी चोट लगती हैl वैश्विक स्तर पर यह माना जाता है कि विश्व का हर चौथा युवा नशे की गिरफ्त में है और उसकी सांसे नशे के नियंत्रण में ही हैं। भारत युवा शक्ति का देश है और भारत को नशे की गिरफ्त से बचाकर एक ऊर्जावान युवा शक्ति का बड़ा केंद्र बनाना ही हमारी सार्थकता होगी। विश्वव्यापी नशे की व्यापकता को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने 7 दिसंबर 1987 को एक प्रस्ताव पारित कर हर वर्ष 26 जून को अंतर्राष्ट्रीय नशा व मादक पदार्थ निषेध दिवस मनाने का निर्णय लिया था। ये एक तरफ लोगों को नशे के प्रति चेतना फैलाता है ।वहीं दूसरी तरफ नशे की गिरफ्त में आए लोगों के उपचार की दिशा में महत्वपूर्ण कदम भी उठाता है।
मादक पदार्थों की नशे की लत आज के युवाओं में तेजी से फैल रही है। कई बार फैशन की खातिर दोस्तों के कहने पर लिए गए यह मादक पदार्थ अक्सर युवाओं के लिए जानलेवा साबित होते हैं। युवा तो युवा बच्चे भी फेविकोल,तरल इरेज़र, पेट्रोल की गंध और स्वाद के प्रति आकर्षित होते हैं, और कई बार कम उम्र के बच्चे आयोडेक्स, वोलीनी जैसी दवाओं को सूघकर नशे का आनंद लेते हैं। कुछ मामलों में आयोडेक्स को ब्रेड में लगाकर खाने का नशा भी बच्चों में देखा गया है। और मजाक मजाक में जिज्ञासा बस कोरेक्स, कोडन, अल्प्राजोलम, कैनेबिस जैसी दवाओं को पीकर नशे में झूमते हैं। यह नशीली दवाएं कब बच्चों को तथा गरीब युवाओं को अपने घेरे में ले लेती है पता ही नहीं चलता। तंबाकू, सिगरेट, गांजा, कोकीन, चरस, स्मैक, भांग जैसी नशीली वस्तुओं का आज युवा वर्ग लगातार सेवन कर अपनी जिंदगी से खेलने में लगा हुआ है। पहले इन लोगों को मादक पदार्थों की मुफ्त में लग लगाकर सबको इसका आदी बनाया जाता है,और फिर ऐसी नशे की लत में युवा तथा बच्चे चोरी, डकैती,पॉकेट मारी, घर के पैसे, रुपए, जेवरात चुराने की हरकतें करने लगते हैं,जो न सिर्फ कानूनी अपराध है बल्कि समाज की बहुत बड़ी विसंगति भी है। कई बार बच्चे घर के ही बड़े सदस्यों को देखकर यह नशा करने लगते हैं कि जब बड़े कर रहे हैं तो उन्हें भी यह करने में कोई बुराई नजर नहीं आती है। और फिर इनके द्वारा शुरू होता है असामाजिक कार्यों का सिलसिला धीरे-धीरे युवा नशे की लत में अपराध जगत की ओर बढ़ने लगता है। चिकित्सकीय आधार पर देखा जाए तो हीरोइन चरस कोकीन गांजा जैसे मादक पदार्थों के नशे की गिरफ्त में आकर अपना मानसिक संतुलन खो देते हैं, एवं पागल तथा सुसुप्ता अवस्था में चले जाते हैं, नशे की लत शरीर को सुस्त कर म्रत्यु की ओर ले जाती है। और नशे की लत में मानसिक संतुलन खोकर व्यक्ति बड़े-बड़े अपराध तक कर बैठता है।, नशे की लत का मामला न सिर्फ स्वास्थ्य से जुड़ा होकर बल्कि अपराध जगत से भी जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि जीवन अनमोल है और इस अनमोल जीवन को नशे की लत में नष्ट कर समय से पहले ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ अंतर्राष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस मनाने के साथ-साथ मादक पदार्थों से मुकाबले के लिए विभिन्न देशों द्वारा उठाए गए कदमों तथा इसके मार्ग में उत्पन्न चुनौतियों तथा निवारण का सही सही उपचार भी बताता है। वैसे इतने घातक तथा खतरनाक नशे की लत को केवल 26 जून को नशा निरोधक दिवस बना कर इतिश्री नहीं कर लेना चाहिए, बल्कि इसके विरुद्ध हर देश को एक व्यापक जन अभियान भी चलाना चाहिए। 26 जून का दिन मादक पदार्थों से मुकाबले का प्रतीक बन गया है।और इस दिवस पर मादक पदार्थों के उत्पादन तस्करी तथा सेवन के दुष्परिणामों से बचने के उपायों के बारे में विस्तृत चर्चा भी की जानी चाहिए।
भारत दक्षिण एशियाई देशों के मध्य हीरोइन का बड़ा उपभोक्ता देश बनते जा रहा है। भारत के कई भूभाग पर अफीम की खेती भी की जाती है। पारंपरिक तौर पर किस के बीच पोस्तों से सब्जी बनाकर खाई जाती थी, किंतु कालांतर में इसका उपयोग एक मादक पदार्थ के रूप में आरंभ हुआ जिसने एक बहुत बड़ा खतरनाक रूप ले लिया। एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में 12 से 60 साल की उम्र के लोगों में नशे की लत लगभग 1.6% देखी गई है। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में जिस अफीम की हीरोइन में तब्दील नहीं किया जाता उसका दो तिहाई हिस्सा 5 बड़े देशों में इस्तेमाल होता है इसमे
ईरान 42%, अफगानिस्तान पाकिस्तान 7%,भारत खुद 6% तथा रूस में इसका 5% उपयोग होता है। भारत में 2008 में 17 मि,टन हीरोइन की खबत होती थी,और वर्तमान में भारत में अफीम की खपत 65 से 70 मी,टन प्रति वर्ष होने लगी है। यह विश्व में इस्तेमाल होने वाली अफीम का 6% है। भारत में ही अफीम की 1500 से लेकर 2000 हेक्टेयर में अफीम की अवैध खेती होती है। यह तथ्य वास्तव में देश के लिए और देश के युवा तथा बच्चों के लिए अत्यंत खतरनाक है। इस पर शासन प्रशासन द्वारा कड़ी नजर रख इस पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।
भारत में शराब सेवन करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है साथ ही मध्य पान के कारण 1500 से दो हजार भारतीय आज शराब के नशे में प्रतिवर्ष मरने भी लगे हैं। आज की स्थिति में हर 20 व्यक्तियों में से एक व्यक्ति शराबखोर है।पुरुष तो पुरुष महिलाएं भी आज की स्थिति में मध्य पान की ओर आकर्षित हो रही हैं। विशेषकर उच्च तथा मध्यम वर्गीय परिवारों में महिलाएं शराब का सेवन करने लगी है ।इसमें से कुछ महिलाएं खुलेआम कुछ छुप-छुपकर इसका सेवन करती हैं। महानगरों में बड़े शहरों की कामकाजी महिलाओं के छात्रावासों तथा हॉस्टल में महिलाओं का शराब का सेवन तेजी से बढ़ते जा रहा है
एक सर्वे के अनुसार करीब 20 से 25% महिलाएं शराब खोरी की गिरफ्त में आ चुकी हैं। यूरोपियन देशों में महिलाओं की नशाखोरी की आदत का प्रतिशत 60% से ऊपर है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों की बैठकों सेमिनार तथा मीटिंग में शराब का सेवन एकदम आम बात बन गई है।
यह एक फैशन की तरह महिलाओं के मध्य फैल कर उन्हें नशे की लत में डुबोने लगा है। मनोवैज्ञानिक डॉक्टरों के अनुसार नशा मनुष्य के जीवन के लिए जहर जैसा है, नशे की लत में वैवाहिक जीवन भी टूटने के कगार पर आ जाता है।मनुष्य के शरीर का लीवर, किडनी तथा अन्य अंग खराब होकर मृत्यु की ओर ले जाने को तत्पर रहते हैं। नशे से दूर रखने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर भारत में भी अनेक उपाय किए जा रहे हैं।



 नशा मुक्ति केंद्र तथा नशे के पदार्थों पर चेतावनी आदि लिखने का काम किया जा रहा है। नशा आज युवाओं को पथभ्रष्ट चरित्रहीन और अपराधी बनाने के पीछे एक बड़ा घातक कारण है। नशे की प्रवृत्ति से बचाने के लिए मनुष्य को नशे से हर हाल में दूर रखना होगा अन्यथा आने वाली पीढ़ी राष्ट्रीय चरित्र राष्ट्रीय सम्मान तथा राष्ट्रीय शक्ति को भूलती जाएगी और नशे की लत में युवा अपने कर्तव्य से परे हो जाएगा। जोकि एक बहुत खतरनाक स्थिति होगी।

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