पीएम और राहुल को चुनावी भाषणों पर चुनाव आयोग का नोटिस 

दोनो पर भाषण में नफरत फैलाने का आरोप , 29तक देना होगा जवाब 

नई दिल्ली।   गुरूवार को चुनाव आयोग ने  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के भाषणों पर नोटिस जारी किया। यह नोटिस आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायतों पर लोक प्रतिनिधित्व कानून 1951 के सेक्शन 77 के तहत इश्यू किया गया है। आयोग ने भाजपा अध्यक्ष नड्डा और कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे से 29 अप्रैल सुबह 11 बजे तक जवाब मांगा है।

चुनाव आयोग को  पीएम  मोदी और राहुल गांधी के भाषण में आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायत की गई थी। शिकायत में कहा गया कि ये लीडर्स धर्म, जाति, समुदाय और भाषा के आधार पर लोगों को बांटने और नफरत फैलाने का काम कर रहे हैं। गत 21 अप्रैल पीएम मोदी ने को राजस्थान के बांसवाड़ा में कहा था कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो लोगों की संपत्ति को ज्यादा बच्चे वालों में बांट देगी। साथ ही  पीएम ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की उस टिप्पणी का भी जिक्र किया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का है।  कांग्रेस ने शिकायत करते हुए   इस बयान को विभाजनकारी, दुर्भावना से भरा और समुदाय विशेष को टारगेट करने वाला बताया। पार्टी ने कहा- चुनाव आयोग ‘संपत्ति का बंटवारा’ वाले बयान पर एक्शन लें।  पीएम के संपत्ति जब्त करने वाले बयान के खिलाफ कांग्रेस और सीपीआई -एम ने अलग-अलग शिकायत दर्ज कराई थी।

वही राहुल गांधी ने गत 18 अप्रैल को केरल की चुनावी सभा में गरीबी बढ़ने की बात कही थी। उन्होंने यह भी कहा था कि 22 लोग भारत के 70 करोड़ लोगों से ज्यादा अमीर हैं। साथ ही उन्होंने कहा था कि अगर उनकी सरकार आती है तो एक झटके में गरीबी खत्म हो जाएगी। जिस पर  भाजपा ने नीति आयोग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि मोदी सरकार के कार्यकाल में करीब 25 करोड़ लोग गरीबी रेखा से ऊपर उठे हैं। राहुल गरीबी बढ़ने का झूठा दावा कर रहे हैं।चुनाव आयोग के नोटिस में राहुल गांधी की स्पीच पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से जवाब मांगा है।

चुनाव आयोग ने दोनों पार्टियों के अध्यक्षों को जिम्मेदार माना

ये शिकायतें मिलने के बाद इलेक्शन कमीशन ने स्टार प्रचारकों की फौज उतारने के लिए पहली नजर में पार्टी अध्यक्षों को ही जिम्मेदार ठहराया है। आयोग ने कहा, "अपने प्रत्याशियों के कामों के लिए राजनीतिक दलों को ही पहली जिम्मेदारी उठानी चाहिए, खासतौर पर स्टार कैंपेनर्स के मामले में। ऊंचे पद पर बैठे लोगों के चुनावी भाषणों का असर ज्यादा गंभीर होता है।"

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के तहत जारी हुए नोटिस

भारत में लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने वाले कैंडिडेट्स के लिए कुछ नियम तय किए गए हैं। इन्हें 1951 में बनाए गए लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में डिफाइन किया गया है। इनमें एक हिस्सा चुनावी आचार संहिता का है। चुनाव के समय हर कैंडिडेट को इसका पालन करना होता है। किसी भी जगह आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायत मिलने पर चुनाव आयोग एक्शन लेता है।

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